पंजाब में मक्के की इस वैरायटी पर रोक लगाने की तैयारी, तेजी से घटता जलस्तर बनी वजह

पंजाब में मक्के की इस वैरायटी पर रोक लगाने की तैयारी, तेजी से घटता जलस्तर बनी वजह

कृषि विभाग के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पहले आलू और मटर की खेती करने वाले किसान अब मुनाफे के लिए वसंत मक्के की खेती कर रहे हैं. लेकिन अधिक मुनाफे ने गेहूं उत्पादकों को भी आकर्षित किया है. इस बदलाव के कारण गेहूं के अवशेष जलाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है. इस मौसम में 11,000 से अधिक मामले सामने आए हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण में योगदान मिला है.

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पंजाब में मक्के की इस वैरायटी पर रोक लगाने की तैयारी, तेजी से घटता जलस्तर बनी वजहपंजाब में मक्के की खेती पर लग सकता है ब्रेक. (सांकेतिक फोटो)

पंजाब में तेजी से गिर रहे भूजल स्तर को लेकर राज्य सरकार सतर्क हो गई है. कहा जा रहा है कि प्रदेश में भूजल स्तर के दोहन को कम करने के लिए कृषि विभाग वसंतकालीन मक्के की खेती पर रोक लगा सकती है. इसके लिए उसने वसंतकालीन मक्के की खेती पर कड़े प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है. खास बात यह है कि कृषि विभाग ने यह कदम उन रिपोर्टों के बाद उठाया गया है, जिनमें वसंत और गर्मियों में मक्का की खेती के बढ़ते चलन के कारण भूजल स्तर में खतरनाक गिरावट को जिम्मेदार ठहराया गया है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि निदेशक जसवंत सिंह ने मार्च और अप्रैल के दौरान शुरू होने वाली ग्रीष्मकालीन मक्के की खेती के तेजी से विस्तार और भूजल भंडार पर इसके प्रभाव पर अपनी चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि हमने इस गंभीर मुद्दे को सरकार के सामने उठाया है. इस मामले को संबोधित करने के लिए जल्द ही एक बैठक आयोजित की जाएगी. हमने मौजूदा फसल पैटर्न के प्रभाव को उजागर करने के लिए पीएयू, लुधियाना और विभाग से विस्तृत डेटा मांगा है. हमने मक्का की बुवाई के समय को आगे बढ़ाने और विनियमित करने सहित कड़े कदम उठाने का प्रस्ताव दिया था.

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20 जिलों में जल संकट की स्थिति

जसवंत सिंह ने कहा कि ग्रीष्मकालीन मक्के की खेती हमारे भूमिगत जल संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मक्के की खेती मुख्य रूप से सिलेज के लिए की जाती रही है, जो मवेशियों और मुर्गियों के लिए एक सुपरफूड है. इस चारे की बहुत मांग है और इसे गुजरात, राजस्थान, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश को आपूर्ति की जाती है. विभाग के कृषि विशेषज्ञों ने संकेत दिया है कि मार्च-अप्रैल में शुरू होने वाले नए फसल पैटर्न ने भूमिगत जल की कमी को काफी हद तक बढ़ा दिया है. पंजाब के 23 में से 20 जिले जल-संकट की स्थिति का सामना कर रहे हैं, इसलिए स्थिति की गंभीरता को कम करके नहीं आंका जा सकता.

पंजाब में मक्के का रकबा

हालांकि, वर्तमान में, राज्य में 1.46 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में वसंत और ग्रीष्मकालीन मक्का की खेती की जाती है, जबकि खरीफ मक्का के लिए केवल 90,000 हेक्टेयर क्षेत्र है, जिसके लिए चार सिंचाई चक्रों की आवश्यकता होती है. पीएयू की प्रमुख मक्का प्रजनक सुरिंदर कौर संधू ने एक नए फसल पैटर्न के उभरने पर चिंता व्यक्त की. संधू ने कहा कि शुष्क महीनों के दौरान उच्च वाष्पीकरण स्तरों के कारण इसे 18 से अधिक सिंचाई चक्रों की आवश्यकता होती है, जो इसे धान की तुलना में अधिक हानिकारक बनाता है. पिछले 4-5 वर्षों में वसंत मक्का की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है, जो मवेशियों के चारे की बढ़ती मांग और अनुकूल बाजार मूल्यों के कारण है.

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