भिंडी एक ऐसी फसल है जो न सिर्फ अन्य कई सब्जियों से पौष्टिकता में आगे है बल्कि किसानों को इसका दाम भी अच्छा मिलता है. आजकल औसतन 40 रुपये प्रति किलो के दाम पर इसकी बिक्री हो रही है. इसलिए इसकी खेती उगाने और खाने वालों दोनों के लिए फायदे का सौदा है. ऐसे में अगर आप इसकी खेती के बारे में जानना चाहते हैं तो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने इसका जो तौर-तरीका बताया है उसे अपनाइए. खेती के बारे में बताने से पहले हम यह बता देना चाहते हैं कि इसमें कौन-कौन से पोषक तत्व मिलते हैं. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार भिंडी में कैल्शियम, प्रोटीन, आयरन, कैरोटीन, थायमिन, नायसिन और एस्कॉर्बिक आदि आदि की अच्छी मात्रा पाई जाती है. जिससे यह सेहत के लिए फायदे वाली सब्जी बन जाती है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार भिंडी को लगभग सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है. अधिक उत्पादन के लिए उचित जल निकास एवं जीवांशम युक्त 6 से 6.8 पीएच मान वाली दोमट मृदा सर्वोत्तम रहती है. भिंडी की फसल की यदि अप्रैल-मई में बुआई हुई है, तो इसकी तुड़ाई जून में होती है. तापमान अधिक होने के कारण सिंचाई प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिए. बरसाती भिंडी की फसल की बुआई का यह उपयुक्त समय है.
भिंडी की प्रजातियों में पूसा भिंडी-5, काशी लालिमा, काशी वरदान, काशी चमन, काशी सृष्टि, जेओएच-05-9, काशी क्रांति, जेओएल-2के-19, ओएच-597, जेओएच-0819 पूसा ए-4, पूसा सावनी, पूसा मखमली, वर्षा उपहार, परभनी क्रांति, आजाद भिंडी, अर्का अनामिका, पंजाब-7, पंजाब-8, आजाद क्रांति, हिसार उन्नत, काशी प्रगति व उत्कल गौरव आदि प्रमुख हैं.
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एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 8-10 किलोग्राम बीज, 60X30 सेंटीमीटर की दूरी पर बुआई करने के लिए पर्याप्त होता है. खेत की तैयारी के समय 25-30 टन सड़ी गोबर की खाद या 10 टन नाडेप कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं. भिंडी की फसल में बुआई के समय 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें. फसल तुड़ाई के बाद यूरिया 5-10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से डालें तथा उसके बाद सिंचाई करें.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार तापमान को ध्यान में रखते हुए माईट, जैसिड और हॉपर की निरंतर निगरानी करते रहें. इस मौसम में भिंडी की फसल में हल्की सिंचाई कम अंतराल पर करें. खरपतवार के लिए बुआई के 30-60 दिनों के दौरान कुल 2-3 निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है. जहां पर खरपतवारों की अधिक समस्या हो वहां बुवाई से पहले प्रति हेक्टेयर 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर खरपतवारनाशी फ्लूक्लोरालिन 1.5-2.0 लीटर का छिड़काव करें.
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