कश्मीर के सेब किसान दूसरे देशों से आयात हो रहे सस्ते सेबों की वजह से संकट के बाग फंसे दिख रहे हैं. भारत में ईरान, वाशिंगटन और दक्षिण अफ्रीकी सेबों का बड़ी मात्रा में आयात होने के कारण कश्मीरी सेबों का दबदबा खत्म होने लगा है. अंग्रेजी अखबार 'द बिजनेस लाइन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशी सेबों की आमद से कश्मीरी सेबों की कीमतों में गिरावट आई है, ऐसे में स्थानीय किसानों को अपने सेब बेहद सस्ते में बेचने पड़ रहे हैं. कश्मीर के सेब किसान सिर्फ आयात ही नहीं, बल्कि वादी के बीहड़ भूभाग और कमजोर बुनियादी ढांचे की वजह से भी संघर्ष कर रहे हैं.
इसके आलावा कश्मीर का संवेदनशील परिवहन नेटवर्क, जो आमतौर पर राजनीतिक अस्थिरताओं और खराब मौसम की मार झेलता रहता है, ये भी सेब को बाजार में ले जाने में बड़ी बाधा बनता है. ऊपर से कश्मीर का खराब मौसम और बार-बार होने वाली ओलावृष्टि, सेब के बागों के लिए सबसे बड़ी दुश्मन है.
सबसे बड़ी समस्या ये है कि कश्मीर के सेब उत्पादक डिमांड में उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए कोल्ड स्टोरेज यूनिट्स पर ज्यादा निर्भर हो रहे हैं. अंग्रेजी अखबार 'द बिजनेस लाइन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 40 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज यूनिट्स, जिनमें से अधिकांश सिडको (SIDCO) लस्सीपोरा में हैं. इन सभी कोल्ड स्टोरेज यूनिट्स की भंडारण क्षमता 2.5 लाख टन से अधिक है. ये कोल्ड स्टोरेज कश्मीर के सेब किसानों अपनी उपज बचाने में अहम रोल निभाते हैं.
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कश्मीर के 35 लाख सेब किसानों की उपज का भंडारण करने के लिए इतने कोल्ड स्टोरेज काफी कम हैं. सीमित कोल्ड स्टोरेज की वजह से मजबूर होकर ज्यादातर सेब उत्पादकों को कम कीमत पर ही जल्द से जल्द अपनी उपज बेचने के अलावा कोई चारा नहीं बचता.
दरअसल, जम्मू-कश्मीर का सेब उद्योग, यहां की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. अपने सेब के दम पर ही कश्मीर वैश्विक फल बाज़ार के नक्शे पर पहुंचा है. सेब ने सदियों से यहां के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को बुना है. यही वजह है कि कश्मीर भारत में सेब का सबसे बड़ा उत्पादक है और वादी के सेब-बागों से हजारों लोगों का घर चलता है. बता दें कि जम्मू-कश्मीर में लगभग 35 लाख किसान यानी कि घाटी की आबादी के 27 प्रतिशत लोग सेब की खेती करते हैं. यही वजह है कि यहां के सेब का निर्यात, कश्मीर के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 8 प्रतिशत से ज्यादा का योगदान देता है.
जैविक और प्रीमियम सेब किस्मों की बढ़ती मांग अब कश्नीर के सेब उद्योग के लिए उम्मीद की नई किरण बन रही है. कश्मीर में जैविक-पारंपरिक सेबों को बढ़ावा देना स्वास्थ्य ही नहीं, घाटी की कृषि विरासत को बचाने और स्थिरता को बढ़ाने के लिए अहम साबित हो सकता है. लेकिन, कश्मीर के किसान जैविक सेब का उत्पादन करने में असमर्थ हैं. कश्मीर में सेब की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक नए समाधान - हनाबी का उपयोग किया जा सकता है. हनाबी का उपयोग सेब की खेती में चूहों के आक्रमण के प्रारंभिक चरण में किया जा सकता है.
इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में हाल ही में सत्ता में आई नेशनल कॉन्फ्रेंस को सेब उद्योग से जुड़े अपने वादों पर काम करना शुरू कर देना चाहिए. नई सरकार को एक मजबूत प्राकृतिक खेती नीति बनानी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से बेहतर खेती के तरीकों, कीट प्रबंधन और कटाई के बाद की देखभाल के माध्यम से कश्मीरी सेब की गुणवत्ता को बढ़ाना चाहिए.
घाटी के सेब किसानों को अपनी फसलों में विविधता लाने या एप्पल जूस, साइडर या सूखे सेब जैसे उत्पादों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि इन किसानों की ताजे सेब की बिक्री पर निर्भरता कम हो सके. बता दें कि मार्च 2021 से मार्च 2026 तक जम्मू-कश्मीर में 5,500 हेक्टेयर में फैले संशोधित उच्च घनत्व वृक्षारोपण योजना, यहां की कृषि पुनरोद्धार के लिए एक उदाहरण का प्रतीक है.
वहीं जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था एक ही राष्ट्रीय राजमार्ग पर टिकी है, जो देश के बाकी हिस्सों से घाटी को जोड़ता है. लेकिन यही महत्वपूर्ण नेशनल हाइवे अक्सर अवरुद्ध ही रहता है और नतीजतन क्षेत्र का व्यापार ठप हो जाता है. लिहाजा, जरूरत है कि इस राजमार्ग को पूरे साल चालू रखने या वैकल्पिक मार्ग बनाए जाएं.
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