कर्नाटक सरकार ने मक्का खरीद की लिमिट बढ़ाईकर्नाटक में मक्का किसानों के लिए खुशखबरी है. कई दिनों के इंतजार के बाद प्रदेश सरकार ने रविवार को सपोर्ट प्राइस स्कीम के तहत हर किसान के लिए मक्का खरीदने की लिमिट 20 क्विंटल से बढ़ाकर 50 क्विंटल कर दी. यह फैसला बंपर फसल के बाद गिरते मार्केट प्राइस से किसानों के बढ़ते गुस्से को देखते हुए लिया गया है.
सरकारी ऑर्डर के बाद जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि मक्का खरीद की नई लिमिट फार्मर रजिस्ट्रेशन और यूनिफाइड बेनिफिशियरी इंफॉर्मेशन सिस्टम (फ्रूट्स) डेटाबेस में जमीन के दायरे से जुड़ी होगी.
बयान में कहा गया है, "फ्रूट्स सॉफ्टवेयर में दर्ज किसानों के पास जितनी जमीन है, उसके आधार पर हर किसान से 50 क्विंटल तक मक्का 2,400 रुपये प्रति क्विंटल के सपोर्ट प्राइस पर खरीदा जाएगा, जिसकी कैलकुलेशन 12 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से की जाएगी. डिस्टिलरी के पास मौजूद PACS के जरिए खरीदने को प्राथमिकता दी जाएगी." सपोर्ट प्राइस 2,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बना रहेगा.
यह बदलाव किसानों के विरोध के बाद किया गया है, जिन्होंने कहा था कि उनके साथ "गलत बर्ताव" हो रहा है क्योंकि कीमतें गिरकर 1,800-1,900 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं, जो केंद्र के 2,400 रुपये के MSP से काफी कम है. यह प्रोडक्शन में अच्छी रिकवरी के बाद हुआ है.
कर्नाटक ने 2024-25 में 66 लाख टन मक्का की फसल काटी, जो पिछले साल के 56 लाख टन से ज्यादा है. पिछले पांच सालों में, रकबा लगातार बढ़ा है, जबकि खराब मौसम की वजह से पैदावार में उतार-चढ़ाव आया है.
एग्रीकल्चर डेटा से पता चलता है कि रकबा 2020-21 में 17.2 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 19.7 लाख हेक्टेयर हो गया, जबकि इसी समय में पैदावार 3,689 kg/ha से घटकर 2,855 kg/ha हो गई. अच्छे मॉनसून ने 2024-25 में पैदावार को 3,489 kg/ha तक बढ़ाने में मदद की.
एग्रीकल्चर के एडिशनल डायरेक्टर सीबी बालारेड्डी ने TOI को बताया, "मक्का और सूरजमुखी दो ऐसी फसलें हैं जिनमें हाइब्रिड का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. यह फसल मौसम और कीड़ों के असर को ज्यादा झेल सकती है."
किसानों का कहना है कि बढ़ती पैदावार का मतलब बेहतर कीमतें नहीं हैं. किसान नेता कुरुबु शांतकुमार ने कहा, "पैदावार में कमी ज्यादा बारिश या सूखे जैसे हालात की वजह से हो सकती है. हाइब्रिड वैरायटी में कीड़े ज्यादा चिंता की बात नहीं हैं." उन्होंने आगे कहा कि 10 लाख टन के बंपर सीजन के बावजूद, "बिचौलिए कीमतें घटाकर Rs 1,800-1,900 कर रहे हैं, जबकि केंद्र का MSP Rs 2,400/क्विंटल है."
एक्सपर्ट्स का कहना है कि मार्केट लिंकेज अभी भी मुख्य कमी है. यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, GKVK के लोहितास्वा ने कहा, "प्रोडक्शन बढ़ रहा है, लेकिन असली मुद्दा उपज की खरीद के लिए मजबूत मार्केट का न होना है."
उन्होंने कहा कि इंपोर्ट, ज्यादा घरेलू प्रोडक्शन और रुकी हुई सेंट्रल खरीद की वजह से कीमतें MSP से नीचे चली गई हैं, जिससे राज्य ने सेंटर से इंपोर्ट रोकने और पोल्ट्री और इथेनॉल इंडस्ट्री के लिए खरीद को सपोर्ट करने की रिक्वेस्ट की है.
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