कीवी फल, जो आज पूरी दुनिया में खाया जाता है, मूल रूप से चीन से आया है. लेकिन कीवी का व्यावसायिक उत्पादन न्यूजीलैंड में किया जाता है. इस फल का काफी आर्थिक महत्व है. ऐसे में भारत ने न्यूजीलैंड के कीवी फल पर 30 प्रतिशत आयात शुल्क कम करने के अनुरोध पर सहमति जताई है. इसके अलावा, न्यूजीलैंड ने भारतीय आम और केले के लिए बाजार की सुविधा दी है. सूत्रों की मानें तो न्यूजीलैंड ने सेब जैसे फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी के आदान-प्रदान पर सहयोग करने के भारत के अनुरोध पर भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है.
सूत्रों की मानें तो अक्टूबर में न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान इस समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है. ‘बिजनेसलाइन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक आधिकारिक सूत्र ने कहा कि, आयात शुल्क में पर्याप्त कटौती नहीं की जा सकती है क्योंकि भारतीय किसान प्रभावित हो सकते हैं. वहीं, कीवी का क्षेत्रफल लगभग 6,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है.
ये भी पढ़ें:- मिलावटी नमक की घर में करें जांच, अभी आजमाएं ये देसी नुस्खा
इसके अलावा एक प्रमुख फल आयातक ने कहा कि भारत के तरजीही व्यापार समझौते के कारण चिली से आने वाले कीवी फलों पर 15 प्रतिशत शुल्क लगता है. नतीजतन, न्यूजीलैंड की तुलना में इसकी कीमत में बढ़त है. 2023-24 में भारत का कीवी आयात 43,270 टन था, जो 2022-23 में 50,920 टन से कम है.
कीवी फल में मौजूद गुणों की वजह से देश और दुनिया में इसकी बहुत ज्यादा मांग है. भूरे रंग के छिलके वाला कीवी भीतर से मुलायम और हरे रंग का होता है. इसके भीतर काले रंग के छोटे-छोटे बीज भी मौजूद होते हैं. जो काफी लाभकारी होते हैं. कीवी फल में भरपूर मात्रा में विटामिन सी, विटामिन ई, फाइबर, पोटेशियम, कॉपर, सोडियम और एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है.
कीवी के फल को डेंगू के इलाज के लिए रामबाण माना गया है. इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट त्वचा को धूप और प्रदूषण से होने वाले नुकसान से बचाने में कारगर हो सकते हैं. साथ ही यह शरीर में प्लेटलेट्स बढ़ाने का भी काम करता है. कीवी में सेरोटोनिन नामक यौगिक होता है, जो अच्छी नींद लाने में मदद कर सकता है.
कीवी के पौधे को रोपने के लिए कलम तैयार की जाती है. इसके लिए कीवी की एक वर्ष पुरानी तना होनी चाहिए, जिसमें दो से अधिक गांठे हों. इसे दिसंबर से जनवरी में तैयार किया जाता है. वहीं, कीवी की बागवानी लगाने के दो तरीके हैं. पहला, टी-बार लाइन तकनीक में लाइन की दूरी 4 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5-6 मीटर होनी चाहिए. दूसरी तकनीक पेरगोला विधि है. इसमें लाइन से लाइन की दूरी 6 मीटर, पौधे से पौधे की दूरी 6 मीटर होती है. पौध लगाने के लिए गड्ढे खोदने चाहिए. इन गड्ढों में एक तिहाई भाग गोबर की खाद, एक किलो नीम की खली और 20 ग्राम फ्यूराडान 10-जी को मिट्टी में पूरी तरह से भरना चाहिए. फिर पौधों की रोपाई करनी चाहिए.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today