तमिलनाडु के किसानों के लिए खुशखबरी है. उनके खाते में जल्द ही फसल मुआवजे की राशि पहुंच जाएगी. क्योंकि राज्य सरकार ने कावेरी डेल्टा के किसानों को राहत के रूप में 16.85 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है. वहीं, सरकार के इस फैसले से किसानों के बीच खुशी की लहर है. कहा जा रहा है कि 22,533 किसानों को सीधे फायदा पहुंचेगा. दरअसल, नागापट्टिनम, मयिलादुथुराई, तिरुवरुर और तंजावुर के चार डेल्टा जिलों में की गई गणना के अनुसार, लगभग 12,484 हेक्टेयर में उपज का नुकसान 33 प्रतिशत से अधिक था.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 13 फरवरी को जारी जीओ के अनुसार राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से धनराशि जारी की जाएगी. किसानों को प्रति हेक्टेयर 13,500 रुपये की राहत मिलेगी. चार जिलों में से, नागापट्टिनम सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ, क्योंकि 21,816 किसानों द्वारा 12,125 हेक्टेयर में धान की खेती बर्बाद हो गई. जिले के किसानों को कुल 16.73 करोड़ रुपये की राहत मिलेगी.
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तिरुवरुर में कुल 623 किसानों को 285 हेक्टेयर से अधिक धान के नुकसान के लिए कुल 38.47 लाख रुपये मिलेंगे, जहां उपज का नुकसान 33 फीसदी से अधिक था. सरकारी आदेश में कहा गया है कि तंजावुर जिले में 77 किसानों को कुल 7.52 लाख रुपये मिलेंगे, जबकि मयिलादुथुराई जिले में 17 किसानों को कुल 2.38 लाख रुपये की राहत मिलेगी. गौरतलब है कि कर्नाटक द्वारा कावेरी जल न छोड़े जाने के कारण जिन किसानों की फसल बर्बाद हो गई थी, उनकी मांगों के बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 5 अक्टूबर, 2023 को 13,500 रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजे की घोषणा की थी.
वहीं, कुछ देर पहले खबर सामने आई थी कि थूथुकुडी जिले में किसानों ने सरकार से फसल मुआवजे की मांग की है. किसानों ने सरकार से 45,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा मांगा है. उनका कहना है कि सरकार को किसानों को मुआवजे के रूप में आर्थिक मदद करनी चाहिए, ताकि उनकी दयनीय स्थिति में सुधार हो. वे मुआवजे के पैसे से दूसरी फसलों की सही तरीके से खेती कर सकें.
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गुरुवार को कलक्ट्रेट परिसर में कलेक्टर जी लक्ष्मीपति की अध्यक्षता में बाढ़ के बाद आयोजित पहली शिकायत निवारण बैठक में किसानों ने यह मांग उठाई है. किसानों ने राज्य सरकार से दिसंबर 2023 की बाढ़ से हुई फसल क्षति के लिए प्रति एकड़ 45,000 रुपये का मुआवजा देने का आग्रह किया है. इस दौरान किसानों ने आरोप लगाया कि बाढ़ में तबाह हुई कृषि भूमि की बहाली में देरी से खेती फिर से शुरू करने में बाधा आ सकती है.
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