राजस्थान के किसान दिल्ली के जंतर-मंतर पर सरसों सत्याग्रह करने जा रहे हैं. छह अप्रैल को प्रस्तावित सरसों सत्याग्रह की अनुमति के लिए किसानों के एक समूह ने दिल्ली पुलिस उपायुक्त को पत्र लिखा है. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व में करीब सौ लोग सत्याग्रह में शामिल होंगे. सत्याग्रह सुबह 11 से शाम चार बजे तक किया जाएगा. सरसाें सत्याग्रह की जानकारी देते हुए रामपाल जाट कहते हैं कि सरसों उत्पादक किसान अपनी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी कम मूल्य पर बेचने को विवश हो रहे हैं. इसलिए सरकार का ध्यान इस ओर दिलाने की सख्त आवश्यकता है. रामपाल ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र लिखा है.
इस साल रबी सीजन में सरसों का बंपर उत्पादन हुआ है, लेकिन इसके रेट काफी कम है. फिलहाल राजस्थान की अलग-अलग मंडियों में सरसों 4500 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल तक ही बिक रही है, जबकि 2021-22 में किसानों को सरसों के दाम 7444 रुपये प्रति क्विंटल तक रेट मिली थे. एक ही साल में सरसों पर प्रति क्विंटल तीन हजार रुपये तक की गिरावट आई है. इससे किसानों को बहुत आर्थिक नुकसान हो रहा है.
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किसान नेता रामपाल जाट आरोप लगाते हुए कहते हैं कि सरसों के दाम जिस अनुपात में गिरे हैं, उस अनुपात में सरसों तेल का दाम उस अनुपात में कम नहीं हुआ, बल्कि तेल के भाव लगभग स्थिर बने हुए हैं. उन्होंने कहा कि किसानों को तो भाव गिरने से अपनी उपज के कम दाम प्राप्त हो रहे हैं. वहीं उपभोक्ताओं को तेल के दाम लगभग उतने ही चुकाने पड़ रहे हैं. इससे साबित हो रहा है कि सरसों के दाम गिरने का लाभ बिचौलियों को मिल रहा है. यह देश के किसानों एवं उपभोक्ताओं के साथ लूट है
2017-18 में अपरिष्कृत (कच्चा) एवं परिष्कृत (रिफाइंड) पाम आयल पर आयात शुल्क 45% था. परिष्कृत पाम आयल पर अतिरिक्त 5% सुरक्षा शुल्क भी था. इसीलिए किसानों को पिछले वर्षों की अपेक्षा अधिक दाम मिले थे. आयात शुल्क में निरंतर गिरावट के क्रम में अक्टूबर 2021 में इसे शून्य कर दिया गया. इस कारण विदेशों से आने वाले पाम आयल की मात्रा बढ़ गई. इतना ही नहीं, सरसों का तेल आयात भी 2021-22 के बाद बढ़ना शुरू हो गया. यही वजह है कि किसानों को एक क्विंटल पर तीन हजार रुपये तक कम मिल रहे हैं.
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बता दें कि भारत में खाद्य तेलों के आयात में एक दशक में सात लाख 60 हजार 500 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं. वर्ष 2021-22 में दूसरे देशों को खाद्य तेल मंगाने पर एक लाख 41 हजार 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. राष्ट्रीय पाम मिशन के लिए 11040 करोड़ रुपये भी स्वीकृत किये गये हैं.
किसान नेता रामपाल जाट कहते हैं कि सरसों के दाम कम होने के पीछे जहां आयात-निर्यात नीति मुख्य कारक है. वहीं, भारत सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद नीति भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से वंचित करने के लिए जिम्मेदार है. क्योंकि इसके अनुसार कुल उत्पादन में से 75% उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीद की परिधि से बाहर किया हुआ है. सरकार एक दिन में एक किसान से 25 क्विंटल से अधिक खरीद नहीं करती है. साथ ही वर्ष भर में खरीद की अवधि अधिकतम 90 दिन ही रखी गई है.
किसान नेता रामपाल जाट खरीद के लिए 90 दिन का समय निर्धारित होने का गणित समझाते हुए कहते हैं कि 90 दिन की गणना खरीद शुरू करने की घोषणा के दिन से की जाती है, जबकि इस दौरान छुट्टियां, बारदाना नहीं होने, खरीद केंद्र पर सही व्यवस्था नहीं होने, कर्मचारी आदि की हड़ताल भी शामिल है. दरअसल, किसानों से उपज खरीद का वास्तविक समय 60 से 70 दिन ही रह जाता है. इसीलिए किसानों को भारत सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के अनुसार भी दाम प्राप्त नहीं होते हैं.
रामपाल जाट कहते हैं कि इन्हीं सब मांगों को लेकर हम भारत सरकार तक किसानों की बातें पहुंचाना चाहते हैं. इसीलिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर 101 किसान सरसों सत्याग्रह करने जा रहे हैं.
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