जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ खरीफ और रबी फसलों के ऊपर ही नहीं पड़ा है, बल्कि बागवानी को भी प्रभावित किया है. मौसम में परिवर्तन आने के चलते कुंबम पनीर अंगूर, ऑथूर पान के पत्ते, शोलावंधन पान के पत्ते और कन्नियाकुमारी मैटी केले के उत्पादन में गिरावट की आशंका बढ़ गई है. कहा जा रहा है कि अगर इनकी पैदावार में गिरावट आती है, तो किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. खास बात यह है कि कुंबम पनीर अंगूर, ऑथूर पान के पत्ते, शोलावंधन पान के पत्ते और कन्नियाकुमारी मैटी केले को हाल ही में जीआई टैग दिया गया था.
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, पहले किसानों को औसत से कम बारिश होने को लेकर चिंता थी. लेकिन अब ऑफ सीजन की बरसात किसानों को परेशान कर रही है. किसानों को लग रहा है कि अगर ऑफ सीजन में जरूरत से ज्यादा बारिश होती है, तो उत्पदान में गिरावट आ जाएगी. किसान एसबी पेरुमल का कहना है कि जीआई टैग मिलने से ग्लोबल मार्केट में मैटी केले की मांग और महत्व दोनों बढ़ेगा. लेकिन जलवायु परिवर्तन हमारी उपज के लिए चुनौती बन रहा है. उन्होंने कहा कि जिले में जीआई टैग मिलने की वजह से मैटी केले के प्रति किसानों की रुचि बढ़ गई थी. वे इस बार बड़े पैमाने पर इसकी खेती करने की तैयारी में थे. उन्हें लग रहा था कि विशेष पहचान मिलने से इसकी पूरे देश में डिमांड बढ़ेगी.
ये भी पढ़ें- मिजोरम में सत्ता बनाने की ओर बढ़ रही ZPM पार्टी क्या है और कब बनी? कांग्रेस से है पुराना नाता, जानिए पूरा इतिहास
कुंबम अंगूर उत्पादक किसान आरपीपी नंथाकुमार का कहना है कि अंगूर की फसल पानी के प्रति बहुत संवेदनशील होती है. जरूरत से ज्यादा बारिश होने पर इसके पौधे सड़ने लगते हैं. ऐसे में अगर ऑफ सीजन में अधिक बारिश होती है, तो फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि जीआई टैग मिलने से किसानों में खुशी की लहर है. अब हम लोग कुंबम अंगूर को विदेशों में भी निर्यात करने की प्लानिंग कर रहे हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन किसानों के सामने परेशानी खड़ा कर सकता है.
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर के कृषि व्यवसाय निदेशक ई.सोमसुंदरम ने बताया कि किसानों को अब खेती में रसायनों के उपयोग में बदलाव करने की जरूरत है. मिट्टी को बार-बार रसायनों के संपर्क में लाने से इसकी धारण क्षमता और अन्य पोषक तत्व नष्ट हो सकते हैं. जिसका असर पौधों के ऊपर पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि इन जीआई टैक प्राप्त फसलों को जलवायु के अनुकूल बनाने के लिए समाधान ढूंढना बहुत ही मुश्किल है. क्योंकि इससे पौधे की आंतरिक विशेषताओं जैसे गंध, रंग और स्वाद प्रभावित हो सकता है.
ई.सोमसुंदरम ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के पहले चरण के रूप में हम गुणवत्ता बढ़ाने और मिट्टी को पुनर्जीवित करने के लिए पर्याप्त समय देने के लिए प्रति वर्ष फसल की संख्या कम करने की प्रभावशीलता का अध्ययन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जलवायु, मिट्टी, फसल और क्षेत्र के लिए उपयुक्त अनुकूलित तकनीकों को विकसित करने के लिए पहले से ही अध्ययन चल रहे हैं, जो संभवतः जलवायु स्थिति को बेहतर ढंग से संभालने में मदद करेंगे.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today