इस साल दार्जिलिंग की विश्व प्रसिद्ध फर्स्ट फ्लश चाय का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है. इससे मार्केट में इसकी कीमत में बढ़ोतरी होने की संभावना जताई जा रही है. कहा जा रहा है कि इस साल दार्जिलिंग की पहाड़ियों पर लंबे समय तक बारिश नहीं हुई है. ऐसे में सूखा की वजह से इस प्रीमियम चाय के उत्पादन में गिरावट आने की आशंका है. ऐसे पहली फ्लश चाय की तुड़ाई आम तौर पर मार्च के मध्य में शुरू होती है और मई के पहले सप्ताह तक जारी रहती है. बागवानों के मुताबिक, इस साल फसल में करीब एक सप्ताह की देरी हुई है.
द बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में दार्जिलिंग चाय का कुल उत्पादन 60 लाख किलोग्राम से थोड़ा अधिक था, जो अब तक का सबसे कम उत्पादन है. वहीं, 2022 में 60.9 लाख किलोग्राम काढ़ा पैदा हुआ था. खास बात यह है कि दार्जिलिंग चाय को दुनिया की सबसे महंगी चाय के रूप में जाना जाता है. अपनी बेहतरीन क्वालिटी और कीमत के कारण यह प्रीमियम चाय दार्जिलिंग चाय उत्पादकों के वार्षिक राजस्व का लगभग 40 प्रतिशत है.
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इस साल पहली फ्लश चाय के लिए स्थिति बहुत गंभीर है. क्योंकि दार्जिलिंग कई वर्षों में सबसे खराब सूखे में से एक का सामना कर रहा है. लंबे समय तक बारिश न होने से मध्य और निचली ऊंचाई वाली क्षेत्रों में चाय की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है. जबकि, अधिक ऊंचाई वाली क्षेत्रों में चाय के बगान पर सूखा का कम असर देखने को मिला है. भारतीय चाय निर्यातक संघ के अध्यक्ष अंशुमन कनोरिया ने कहा कि एक सप्ताह के भीतर बारिश की जरूरत है. अगर 7 दिन में बारिश नहीं होती है तो स्थिति और खराब हो जाएगी.
दार्जिलिंग चाय उद्योग में पिछले एक दशक से अधिक समय से उत्पादन में धीरे-धीरे गिरावट देखी जा रही है. 2011 में, चाय का उत्पादन 90.14 लाख किलोग्राम था, जबकि 2016 में यह 80.13 लाख किलोग्राम था. उद्योग के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और मजदूरों की दिक्कत की वजह से दार्जिलिंग चाय के उत्पादन में गिरावट आ रही है. इससे बागवानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है.
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कई बागवानों ने हाल के वर्षों में अपने बगीचे बेच दिए. वहीं, बागान मालिकों ने कहा कि मौजूदा सूखे की स्थिति दार्जिलिंग चाय उद्योग की समस्या बढ़ाएगी. विशेष रूप से, यूरोप और जापान इस प्रीमियम चाय के लिए दो बड़े विदेशी बाजार हैं, जो भारत में भौगोलिक पहचान (जीआई) टैग पाने वाला पहला उत्पाद है.
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