बेमौसम बारिश से फसल बर्बाद, फिर भी किसान नहीं उठा रहे फसल बीमा योजना का लाभ

बेमौसम बारिश से फसल बर्बाद, फिर भी किसान नहीं उठा रहे फसल बीमा योजना का लाभ

प्रोग्रेसिव ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकींद्र बिष्ट कहते हैं, "बीमा कंपनियां किसी क्षेत्र के मौसम डेटा के आधार पर नुकसान का आकलन करती हैं, जबकि हकीकत में हर किसान को अलग-अलग स्तर पर नुकसान होता है. फील्ड विजिट के बिना सही नुकसान का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता." किसानों का कहना है कि मौसम मापने के लिए पर्याप्त स्टेशन और उपकरण नहीं हैं.

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बेमौसम बारिश से फसल बर्बाद, फिर भी किसान नहीं उठा रहे फसल बीमा योजना का लाभसेब की खेती कर रहे किसानों को हो रहा नुकसान

पिछले कुछ वर्षों में लगातार बदलते मौसम ने फलों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है, खासकर सेब के किसानों को. इसके बावजूद, हिमाचल सरकार द्वारा चलाई जा रही मौसम आधारित फसल बीमा योजना को अपनाने में किसान खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं. राज्य के करीब 2.5 लाख फलों के किसानों में से सिर्फ 66,000 किसानों ने पिछले वित्तीय वर्ष में इस योजना का लाभ उठाया. राजस्व और बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा, यह हैरानी की बात है कि इतने कम किसान इस योजना को अपना रहे हैं. किसानों को इस योजना का लाभ जरूर उठाना चाहिए.

क्यों नहीं जुड़ रहे किसान बीमा योजना से?

बीमा योजना से जुड़े एक अधिकारी का मानना है कि किसानों में इस योजना को लेकर जागरूकता की कमी है. "जैसे-जैसे किसानों को इसके फायदे पता चलेंगे, वैसे-वैसे उनकी भागीदारी बढ़ेगी.

किसानों की अपनी शिकायतें

प्रोग्रेसिव ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकींद्र बिष्ट कहते हैं, "बीमा कंपनियां किसी क्षेत्र के मौसम डेटा के आधार पर नुकसान का आकलन करती हैं, जबकि हकीकत में हर किसान को अलग-अलग स्तर पर नुकसान होता है. फील्ड विजिट के बिना सही नुकसान का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता." किसानों का कहना है कि मौसम मापने के लिए पर्याप्त स्टेशन और उपकरण नहीं हैं. फल, सब्ज़ी और फूल उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने कहा, "किसानों को मौसम डेटा की सटीकता पर भरोसा नहीं है क्योंकि पर्याप्त वेदर स्टेशन मौजूद नहीं हैं."

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हालांकि, एक बागवानी अधिकारी ने बताया कि अब पंचायत स्तर तक मौसम की जानकारी देने के लिए नई प्रणाली बनाई जा रही है. इसके लिए टेंडर जारी हो चुके हैं. जब यह लागू होगी तो डेटा की सच्चाई को लेकर जो परेशानी है, वह दूर हो जाएगा.

क्वालिटी का नुकसान नहीं होता कवर

हिमालयन सोसाइटी फॉर हॉर्टिकल्चर एंड एग्रीकल्चर डेवलपमेंट की अध्यक्ष डिंपल पंजटा ने बताया, "ओलों से सेब की क्वालिटी खराब हो जाती है, और उन्हें बी-ग्रेड में बेचना पड़ता है. इससे दाम काफी गिर जाते हैं, लेकिन बीमा योजना सिर्फ मात्रा के नुकसान को कवर करती है, क्वालिटी के नुकसान को नहीं." कई किसानों का मानना है कि यह योजना बीमा कंपनियों के लिए ज्यादा फायदेमंद है. कई बार किसानों को उतनी ही राशि क्लेम में मिलती है जितना उन्होंने प्रीमियम दिया होता है. जबकि उत्तराखंड में यही योजना किसानों को 3-4 लाख तक का मुआवजा देती है." वहीं बागवानी विभाग का दावा है कि हिमाचल के कुछ इलाकों, जैसे किन्नौर में किसानों को 4 लाख तक का क्लेम भी मिला है.

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सरकार की कमी पर उठा सवाल

एनजीओ चलाने वाले मोहन शर्मा ने बताया, "2014-15 में आरटीआई से पता चला था कि एक क्लस्टर में इस योजना के लिए 1.62 करोड़ रुपये काटे गए, लेकिन क्लेम सिर्फ 20 लाख रुपये के ही दिए गए. जब अगली बार जानकारी मांगी, तो देने से इनकार कर दिया गया."

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