कपास एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है. व्यावसायिक जगत में यह 'व्हाइट गोल्ड' के नाम से जानी जाती है. लेकिन इससे अच्छी कमाई के लिए जरूरी है कि फसल अच्छी हो. अच्छी फसल के लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कपास के सही जमाव के लिए न्यूनतम 16 डिग्री सेल्सियस तापमान, फसल बढ़वार के समय 21-27 डिग्री सेल्सियस तापमान और पर्याप्त फलन के लिए दिन में 27 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. इसी तरह रात में ठंडक का होना आवश्यक है. गूलरों के फटने के लिए चमकीली धूप व पालारहित मौसम आवश्यक है.
अमेरिकी कपास की प्रजातियों की बुवाई देसी प्रजातियों से कुछ पहले की जाती है. पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में इसकी बुवाई आमतौर पर गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल-मई में की जाती है. अप्रैल-मई में बुवाई करना अधिक लाभकर रहता है. कपास की बुवाई के लिए बीज को पंक्तियों में बोना अच्छा रहता है. पक्तियों में बुवाई के लिए सीडड्रिल या देसी हल के पीछे कुंड में बीज बोया जाता है.
अमेरिकन कपास का 15-20 किलो प्रति हेक्टेयर, संकर किस्मों का 2-2.5 और देसी कपास का 15-16 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है. अमेरिकन या देसी कपास के लिए 60×30 सेंटीमीटर तथा संकर प्रजातियों के लिए 90×60 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी रखनी चाहिए.
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सिंचित क्षेत्रों के लिए फसलचक्र जैसे कपास-सूरजमुखी, कपास-मूंगफली, कपास-बरसीम, उत्तर भारत में कपास-मटर, कपास-ज्वार और कपास-गेहूं तथा दक्षिण भारत में कपास-ज्वार, कपास-मूंगफली, धान-कपास और कपास-धान फसलचक्र मुख्य हैं. उत्तरी भारत में कपास के बाद गेहूं की फसल लेने के लिए कपास की जल्दी पकने वाली प्रजाति और गेहूं की देर से बोने वाली प्रजाति बोनी चाहिए.
एफ. 286, एल.एस. 886, एफ. 414, एफ. 846, एफ. 1861, एल. एच. 1556, पूसा 8-6, एफ. 1378, एच. 1117, एच.एस. 45, एच. एस. 6, एच. 1098, गंगानगर अगेती, बीकानेरी नरमा, गुजरात कॉटन 12, गुजरात कॉटन 14, गुजरात कॉटन 16, एम.सी.यू. 5, एम.सी.यू. 7, एम.सी.यू. 9 और सुरभि अमेरिकन कपास की किस्में हैं.
एल.डी.एच. 11, एल.एच. 144, धनलक्ष्मी, एच.एच.एच. 223, सी.एस.ए.ए. 2, उमा शंकर, राज.एच. एच. 116, जे.के.एच.वाई. 1, जे.के. एच.वाई. 2 (जीरोटिलेज), एन.एच. एच. 44, एच एच वी 12, एच. 8, डी.एच. 7, डी.एच. 5, एच. 10 आदि संकर प्रजातियां हैं, जिन्हें उत्तरी, मध्य एवं दक्षिण क्षेत्र के लिए नोटिफाई किया गया है.
आर.सी.एच. 308, आर.सी.एच. 314, आर.सी.एच. 134, आर.सी.एच.317, एम.आर.सी. 6301 और एम.आर.सी. 6304 बीटी कपास की किस्में हैं. जबकि एच. 777, एच.डी. 1, एच. 974, एच.डी. 107, डी.एस.5, एल.डी. 694, एल.डी. 327, एल.डी. 230, एल.डी. 491, पी.एयू., 626, मोती, डी.एस. 1, डी.एस. 5, एच.डी. 123, आर.जी. 8, लोहित यामली, माल्जरी आदि देसी कपास की किस्में हैं. जो भारत के सभी क्षेत्रों में उगाई जाती हैं.
कपास की खेती के लिए कम से कम 50 सेंटीमीटर बारिश का होना आवश्यक है. कपास के लिए उपयुक्त मिट्टी में अच्छी जलधारण एवं जल निकास क्षमता होनी चाहिए. जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हों वहां बलुई और बलुई दोमट मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है. इसके लिए आदर्श पी-एच मान 5.5 से 6.0 है, लेकिन इसकी खेती 8.5 पी-एच मान तक वाली मिट्टी में भी की जा सकती है.
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