भारत में चाय और कॉफी की मांग हमेशा बनी रहती है. यहां के लोग सुबह उठते ही चाय या कॉफी पीना पसंद करते हैं. यही कारण है कि यहां इन चीजों कि मांग हमेशा बनी रहती है. देश में सबसे अधिक चाय का उत्पादन असम राज्य में होता है. वहीं कॉफी की बात करें तो भारत में सबसे अधिक कॉफी का उत्पादन कर्नाटक राज्य में होता है, जो कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 70 परसेंट हिस्सा है. वहीं इन दिनों छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में कॉफी की खेती की जा रही है. क्या है पूरी कहानी, आइए जानते हैं.
बस्तर का इलाका जो पहले पथरीली ज़मीन और खेती के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता था, अब यहां के किसानों और महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरा है. दरभा, डिलमिली और बस्तानार जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में जहां पहले खेती की कोई खास संभावना नहीं थी, वहीं अब इन इलाकों में कॉफी की खेती एक नया आय का स्रोत बन चुकी है. यह बदलाव उद्यानिकी कॉलेज के प्रयासों से संभव हुआ है, जिसने यहां के किसानों को कॉफी की खेती के फायदे समझाए और उन्हें इसके लिए उन्हें बढ़ावा दिया.
बस्तर की जमीन जो पहले सिर्फ कोदो, कुटकी और रागी जैसी पारंपरिक फसलों के लिए जानी जाती थी, अब कॉफी की खेती के लिए भी जानी जा रही है. मोटे अनाजों की खेती से पहले सीमित आय होती थी, लेकिन अब कॉफी की खेती ने किसानों की जीवनशैली को बदल दिया है. किसान अब कॉफी के बीज निकलकर उन्हें सुखाते हैं और फिर उन बीजों को जगदलपुर के उद्यानिकी कॉलेज में भेजते हैं. यहां पर इन बीजों की प्रोसेसिंग होती है, जिसमें ड्रायर, मिक्सर और ग्राइंडर का उपयोग करके स्वादिष्ट कॉफी पाउडर तैयार किया जाता है.
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कॉफी पाउडर तैयार होने के बाद इसे ‘बस्तर ब्रांड’ के नाम से पैकेटों में सील करके बाजार में बेचा जाता है. यह पाउडर सी-मार्ट और हरिहर जैसे सरकारी आउटलेट्स तक पहुंचाया जाता है. इसके बाद बस्तर के इन इलाकों में लोग इस ब्रांड को पहचानने लगे हैं और इसकी लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ रही है. इससे न केवल किसानों को फायदा हो रहा है, बल्कि पूरे क्षेत्र में एक नई व्यावसायिक गतिविधि शुरू हो गई है.
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बस्तर की महिलाएं इस नई फसल की खेती में प्रमुख भागीदार बन रही हैं. शुरू में उद्यानिकी कॉलेज के वैज्ञानिकों ने महिलाओं को समूहों में बांटकर उन्हें कॉफी की खेती के लिए प्रेरित किया. इसने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का एक शानदार अवसर दिया है. पहले बीड़ी बनाने के लिए तेंदुए के पत्ते इकट्ठा करने जैसे कामों से उनकी कमाई बहुत कम थी. अब कॉफी की खेती ने उन्हें एक नया रोजगार और आय का स्रोत दिया है.
नक्सल प्रभावित इलाकों में जहां पहले आर्थिक गतिविधियां न के बराबर थीं, अब वहां कॉफी की खेती ने एक सकारात्मक बदलाव ला दिया है. यह न केवल महिलाओं को बल्कि पुरुषों को भी एक नई दिशा दे रहा है. जब महिलाएं खेती के काम में सक्रिय हुईं, तो पुरुष भी उनके साथ जुड़ने लगे, जिससे पूरे समुदाय में एक सहयोग और विकास की भावना पैदा हुई.
‘बस्तर कॉफी’ ब्रांड ने इस क्षेत्र में एक नए विकास की दिशा दिखाई है. बस्तर की पथरीली ज़मीन पर कॉफी की खेती ने किसानों की आय में वृद्धि तो की ही है, साथ ही साथ पूरे क्षेत्र में व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ी हैं. उद्यानिकी कॉलेज के प्रयासों से न सिर्फ कृषि में नवाचार हुआ है, बल्कि इससे महिलाओं और आदिवासी समुदाय के लिए आत्मनिर्भर बनने का रास्ता भी खुला है. यह एक उदाहरण है कि कैसे विज्ञान और कड़ी मेहनत से कठिन परिस्थितियों में भी बदलाव लाया जा सकता है.
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