जलवायु परिवर्तन से रबी सीजन में खेतों की नमी बनाए रखना बड़ी चुनौती, समाधान के लिए अपनाएं ये उपाय

जलवायु परिवर्तन से रबी सीजन में खेतों की नमी बनाए रखना बड़ी चुनौती, समाधान के लिए अपनाएं ये उपाय

रबी सीजन में फसलों की बेहतर उपज के लिए खेतों में नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है, लेकिन हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन ने इस प्रक्रिया को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है. बढ़ते तापमान, सूखा जैसी समस्याओं ने किसानों के सामने नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. ऐसे में रबी फसलों के उत्पादन को बनाए रखने के लिए खेतों की नमी को संरक्षित करना बेहद जरूरी हो गया है. आइए जानते हैं कि इस चुनौती से निपटने के लिए कौन-कौन से उपाय और तकनीकें अपनाई जा सकती हैं.

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जलवायु परिवर्तन से रबी सीजन में खेतों की नमी बनाए रखना बड़ी चुनौती, समाधान के लिए अपनाएं ये उपायजलवायु परिवर्तन के कारण रबी फसलों में नमी बनाए रखना एक नई चुनौती है

बदलते जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र में कई समस्याएं उभर रही हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख है तापमान में बढ़ोतरी. तापमान में वृद्धि से न केवल वातावरण गर्म हो रहा है, बल्कि खेतों की नमी तेजी से वाष्पित हो रही है, जिससे फसलों की वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इसके चलते किसानों को अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. तापमान में वृद्धि के कारण खेतों की मिट्टी से नमी जल्दी-जल्दी उड़ने लगती है, जिससे मिट्टी की जलधारण क्षमता कमजोर हो जाती है. नमी की कमी के कारण पौधों की जड़ें पर्याप्त रूप से पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पातीं, जिससे उनकी वृद्धि बाधित होती है. इस स्थिति में पौधों को जल तनाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी बढ़वार धीमी हो जाती है और उपज में कमी आ जाती है.

विशेष रूप से उन क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है, जहां पहले से ही जल की कमी है. इस समस्या से निपटने के लिए अधिक पानी का उपयोग कर रहे हैं ताकि खेतों में नमी बनाए रखी जा सके. हालांकि, सीमित जल संसाधनों के कारण यह समाधान लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है. अधिक पानी के उपयोग से सिंचाई की लागत बढ़ रही है. रबी सीजन में फसलों की बेहतर उपज के लिए खेतों में नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है. इसके लिए हाइड्रोजेल मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई का उपयोग, जैविक खादों का प्रयोग और फसल चक्र जैसे उपायों को अपनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है.

खेतों में नमी बनाए रखने के लिए हाइड्रोजेल का प्रयोग 

हाइड्रोजेल एक सुपरएब्जॉर्बेंट पॉलिमर है जो मिट्टी में नमी को बनाए रखता है, जिससे सिंचाई की जरूरत कम हो जाती है और पौधों की वृद्धि में मदद मिलती है. हाइड्रोजेल की सबसे खास बात यह है कि यह पानी को सोखकर धीरे-धीरे पौधों के जरूरत के अनुसार छोड़ता है. इससे न केवल मिट्टी की नमी लंबे समय तक बनी रहती है, बल्कि पानी का वाष्पीकरण भी कम होता है. रबी फसलों में तामपान बढ़ने और गर्मियों और सूखे के दौरान हाइड्रोजेल खेतों में नमी बनाए रखने में बेहद प्रभावी उपाय हो सकता है.

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हाइड्रोजेल बारीक कंकड़ों जैसा होता है, जिसे फसल की बुवाई के समय ही बीज के साथ खेतों में मिलाया जाता है. जब फसल की पहली सिंचाई की जाती है, हाइड्रोजेल पानी को सोखकर 10 मिनट में ही फूल जाता है और जैल में बदल जाता है. यह जेल गर्मी या तापमान से सूखता नहीं है क्योंकि यह पौधों की जड़ों से चिपका रहता है. पौधा अपनी जरूरत के अनुसार जड़ों के माध्यम से हाइड्रोजेल से पानी सोखता रहता है. गन्ने के पौधों की जड़ों में मिट्टी के साथ मिलाकर प्रयोग कर सकते हैं, ताकि पानी और पोषक तत्व सीधे जड़ों तक पहुंच सकें. ड्रिप सिंचाई प्रणाली के माध्यम से हाइड्रोजेल का उपयोग भी किया जा सकता है. 

हाइड्रोजेल से फसलों की कम लागत में अधिक उपज 

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने धान, मक्का, गेहूं, आलू, गन्ना, सोयाबीन, सरसों, प्याज, टमाटर, फूलगोभी, गाजर, गन्ना, हल्दी, जूट समेत अन्य फसलों में हाइड्रोजेल का इस्तेमाल करके पाया है कि इसके उपयोग से फसल की उपज बढ़ती है और इससे पर्यावरण या फसलों को कोई नुकसान नहीं होता है.
  • हाइड्रोजेल मिट्टी की पोरसिटी बढ़ाता है. मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और हवा और पानी का प्रवाह बेहतर होता है, जिससे पौधों की जड़ें गहराई तक पहुंचती हैं और पौधों को जरूरी पोषण मिलता है.
  • हाइड्रोजेल न केवल पानी बल्कि पोषक तत्वों को भी अवशोषित करता है और उन्हें धीरे-धीरे पौधों को उपलब्ध कराता है, जिससे पौधे लंबे समय तक पोषण प्राप्त करते हैं. इस तरह पोषक तत्वों की लीचिंग कम हो जाती है. फसलों को कम उर्वरकों की जरूरत होती है.
  • जल की कमी होने पर हाइड्रोजेल पौधों को जरूरी नमी प्रदान करता है, जिससे फसलो में जल तनाव कम हो जाता है. इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और उनकी उत्पादकता बढ़ती है.
  • सूखे के समय हाइड्रोजेल पौधों को धीरे-धीरे पानी उपलब्ध कराता है, जिससे फसलें सूखा सहन कर सकती हैं और उनका विकास बाधित नहीं होता.
  • हाइड्रोजल के इस्तेमाल से कम सिंचाई जल की जरूरत होती और पोषक तत्वों का पौधे सही उपयोग कर लेते हैं. कम लागत खर्च में बेहतर पैदावार मिल जाती है.

रबी फसलों में नमी बनाए रखने के दूसरे उपाय

.खेतों में जैविक मल्चिंग करने से मिट्टी की सतह ठंडी रहती है और नमी वाष्पीकरण की दर कम होती है.
.जैविक खाद और कम्पोस्ट के प्रयोग से मिट्टी की जलधारण क्षमता में सुधार होता है, जिससे नमी लंबे समय तक बनी रहती है.
.फसल चक्र और इंटरक्रॉपिंग से जल वाष्पीकरण को कम करने और मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए इंटरक्रॉपिंग तकनीक का उपयोग किया जा सकता है. विशेषकर गन्ने जैसी फसलों में यह काफी लाभकारी है. 
.जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न तापमान वृद्धि और नमी के वाष्पीकरण की समस्या से निपटने के लिए उचित तकनीकों का उपयोग न केवल किसानों की उत्पादकता बढ़ाएगा, बल्कि जल संसाधनों के संरक्षण में भी सहायक होगा.

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