सिंगापुर और हांगकांग द्वारा भारतीय मसालों के निर्यात पर रोक लगाए जाने के बाद अखिल भारतीय मसाला निर्यातक मंच (एआईएसईएफ) सतर्क हो गया है. उसने खाद्य सुरक्षा और निर्यात गुणवत्ता मानकों से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए आगे का कदम बढ़ाया है. साथ ही एआईएसईएफ ने भारत से मसाला निर्यात में उच्चतम गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है. मंच ने भारत में मसालों के लिए एथिलीन ऑक्साइड (ईटीओ) उपचार को वैध बनाने के महत्व पर जोर दिया.
एआईएसईएफ के अध्यक्ष संजीव बिष्ट ने कहा कि भारतीय निर्यातकों द्वारा ईटीओ-उपचारित मसालों की आपूर्ति करने में असमर्थता से वैश्विक मसाला बाजार में भारत की स्थिति पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से प्रतिस्पर्धी मूल के लोगों को बाजार हिस्सेदारी का नुकसान हो सकता है. उन्होंने कहा कि एथिलीन ऑक्साइड एक कीटनाशक अणु नहीं है और मसालों सहित कृषि उत्पादों में रोग संबंधी रोगाणुओं की अनुपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए एक स्टरलाइज़िंग एजेंट के रूप में कार्य करता है. इसे अमेरिका, कनाडा और सिंगापुर सहित कई देशों में अलग-अलग अधिकतम अवशेष स्तर के साथ उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया है.
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संजीव बिष्ट ने कहा कि गलत धारणाओं के विपरीत, ईटीओ स्टरलाइज़ेशन को कई ग्राहकों द्वारा पसंद किया जाता है क्योंकि यह गर्मी उपचार जैसे वैकल्पिक तरीकों के विपरीत, मसालों के आंतरिक गुणों, जैसे वाष्पशील तेल और स्वाद को संरक्षित करता है.यूएस-ईपीए के अनुसार, ईटीओ से उपचारित मसालों में चिंता का जोखिम नहीं होता है. एथिलीन का चयापचय करते समय मानव शरीर द्वारा एथिलीन ऑक्साइड का उत्पादन किया जाता है. इसके अलावा, यह पकने की प्रक्रिया के दौरान पौधों द्वारा प्राकृतिक रूप से भी उत्पादित होता है, जो इसकी सुरक्षा और प्राकृतिक घटना को उजागर करता है.
इसके अकावा ईटीओ एक वाष्पशील कार्बनिक यौगिक है जो पर्यावरण में तेजी से नष्ट हो जाता है. उपचार के कुछ दिनों के भीतर अवशेषों का स्तर कम हो जाता है. 11 जनवरी 2012 को प्रकाशित यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (ईएफएसए) का अध्ययन पुष्टि करता है कि हवा में इसका आधा जीवन केवल 38 दिन है. दरअसल, बीते 29 अप्रैल को खबर सामने आई थी कि एथिलीन ऑक्साइड की अधिक मात्रा पाए जाने की वजह से सिंगापुर और हांगकांग ने भारतीय मसालों की निर्यात पर रोक लगा दिया है.
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