चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक कार्यशाला में रबी सीजन की फसलों को लेकर किसानों के फायदे के लिए 19 सिफारिशें की हैं, जिसमें से कुछ में बारे में हम आपको बता रहे हैं. इनमें गेंहू, बसंत कालीन मक्का, मसूर, जई और औषधीय फसल बाकला की किस्मों की बात की गई है. साथ ही धान-गेहूं फसल चक्र में पराली मैनेजमेंट, गन्ने की फसल में चोटी बेदक और कंसुआ कीट की रोकथाम को लेकर किसानों को सलाह भी दी गई है. दावा किया गया है कि इन सिफारिशों को अगर किसान अपनाते हैं तो उनकी खेती अच्छी होगी. सबसे पहले गेहूं और मक्का की किस्मों पर बात करते हैं.
डब्ल्यू एच 1402: गेहूं की यह बौनी किस्म सूखा सहनशील एवं अगेती बिजाई के लिए उपयुक्त है. डब्ल्यू एच 1402 की औसत पैदावार 20.1 क्विंटल प्रति एकड़ व उत्पादन क्षमता 27.2 क्विंटल प्रति एकड़ है. यह किस्म रोगों के प्रति अत्यंत ही प्रतिरोधी है और क्वालिटी में भी बेहतर है.
आईएमएच 225: यह मक्का की पीले दाने व मध्यम अवधि वाली एकल संकर किस्म है, जो बसंत ऋतु में 115-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यह किस्म राष्ट्रीय स्तर पर मक्का की मुख्य बीमारियों और कीटों के प्रति अवरोधी और मध्यम अवरोधी पाई गई है. इसकी औसत पैदावार 36-38 क्विंन्टल प्रति एकड़ है.
आईएमएच 226: यह मक्का की हल्की नारंगी दाने और मध्यम अवधि वाली एकल संकर किस्म है, जो बसंत ऋतु में 115-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यह किस्म मुख्य बीमारियों और कीटों के अवरोधी व मध्यम अवरोधी पाई गई है. इसकी औसत पैदावार 34-38 क्विंन्टल प्रति एकड़ है.
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एलएच 17-19: मसूर की इस छोटे दाने वाली किस्म भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में काश्त के लिए जारी किया गया है. मध्यम अवधि वाली यह किस्म 6.0 - 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार देती है.
आर. एच. 1975: सरसों की इस किस्म की सिफारिश जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरी राजस्थान के सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए की गई है. यह किस्म 145 दिनों में पक कर 10.5-11.5 क्विंवटल प्रति एकड़ औसत पैदावार देती है. इस किस्म में तेल की औसत मात्रा 39.3 प्रतिशत है.
एच एफ ओ 906: एक कटाई वाली चारा जई की इस किस्म की हरियाणा के लिए सिफारिश की गई है. यह किस्म 262.00 क्विंटल प्रति एकड़ हरे चारे की पैदवार देती है.
हरियाणा बाकला 3: इस किस्म की औसत उपज 9.5 क्विंटल प्रति एकड़ है और इसकी अधिकतम उपज 20 क्विंटल प्रति एकड़ है. इसमें प्रोटीन की मात्रा 28 प्रतिशत होती है. इसकी खेती हरियाणा के सिंचित और अर्ध सिंचित क्षेत्रों में की जा सकती है.
कृषि वैज्ञानिकों ने धान-गेहूं फसल चक्र में पराली प्रबंधन के लिए स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम लगे हुए कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा धान की कटाई के बाद पराली को मिट्टी में मिलाने के साथ-साथ गेहूं की बिजाई के लिए सुपर सीडर के इस्तेमाल की सलाह दी है. इस मशीन से गेहूं की बिजाई करने पर परंपरागत विधि की तुलना में 43 प्रतिशत ईंधन, 36 प्रतिशत श्रम और 40 प्रतिशत बिजाई लागत की बचत होती है.
इसके अलावा कृषि वैज्ञानिकों ने गन्ने की फसल में चोटी बेदक और कंसुआ कीट की रोकथाम के लिए अप्रैल अंत से मई के प्रथम सप्ताह तक क्लोरेनट्रानिलीपरोल 18.5 प्रतिशत एस सी (कोराजन / सीटीजन) 150 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर पीठ वाले पंप से मोटा फुव्वारा बनाकर फसल के जड़ क्षेत्र में डालकर हल्की सिचाई करने की सलाह दी है.
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