जब इंजीनियर बना किसान... राजस्थान में 'सोना' उगलने लगी तीन बीघा बंजर जमीन

जब इंजीनियर बना किसान... राजस्थान में 'सोना' उगलने लगी तीन बीघा बंजर जमीन

कोरोना काल में कई लोगों की नौकरियां चली गईं. यहां तक कि अच्छी कमाई वाले भी बेरोजगार हो गए. इसी में शामिल हैं धौलपुर के किसान शंभू दयाल मीणा जिनका जमा-जमाया कोचिंग सेंटर कोरोना में बंद हो गया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने खेती को कमाई का जरिया बनाया और आज वे बड़ा काम कर रहे हैं.

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जब इंजीनियर बना किसान... राजस्थान में 'सोना' उगलने लगी तीन बीघा बंजर जमीनचेतना सिंह अपने देवर नीरज के साथ काम करती हुई

राजस्थान के धौलपुर जिले के बाड़ी उप खंड के खोरपुरा गांव के रहने वाले इंजीनियर ने अपनी पत्नी के सहयोग से करीब तीन बीघा बंजर पड़ी भूमि पर अंजीर, फालसा, सफेद जामुन, आम, चीकू, लाल कटहल, अमरुद, मोसंबी, संतरा, आंवला, सफ़ेद और लाल चंदन समेत दस वैरायटी के पौधे लगाए हैं. बागों में अब फलों के पौधों में फल आना शुरू हो गए हैं. इस बागवानी को देखने के लिए आस-पास के लोग आ रहे हैं. इस इंजीनियर की खेती पूरे इलाके में चर्चा में आ गई है क्योंकि बंजर जमीन पर ऐसे-ऐसे फलों की खेती हो रही है जिसके बारे में पहले सोचना भी मुश्किल था.  

कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान जब देश में लगे लॉकडाउन के कारण लोगों के रोजगार छिन गए गए थे और लोग घरों में कैद होकर रह गए थे. लोगों के रोजगार धंधे बंद होने से वे अपने गांव और घरों को लौट आए थे. ऐसे में जिनके पास जमीन थी, उन लोगों ने जमीनों पर खेतीबाड़ी कर नए नए प्रयोग शुरू कर अपना रोजगार बना लिया. कोरोना की रफ़्तार कम होने पर जब लॉकडाउन ख़त्म हुआ तो कुछ लोग अपने-अपने रोजगार धंधों में वापस चले गए. लेकिन कुछ लोगों ने कोरोना काल में अपने गांवों में खेतीबाड़ी में नए  प्रयोग कर नया रोजगार बनाया. ऐसे लोग आज गांव में ही रह कर लाखों रुपये कमा रहे हैं.

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इंजीनियर की सफलता की कहानी

हम बात कर रहे हैं धौलपुर जिले के बाड़ी उपखंड के खोरपुरा गांव के रहने वाले केमिकल इंजीनियर और उनकी पत्नी की. केमिकल इंजीनियर शंभू दयाल मीणा पेशे से कोचिंग संचालक और जयपुर में ग्रेविटी फाउंडेशन के नाम से अपना खुद का कोचिंग सेंटर चलाते हैं. कोचिंग सेंटर के संचालन में शंभू दयाल मीणा की पत्नी चेतना सिंह भी सहयोग करती थीं. लेकिन तीन साल पहले जब देश में कोरोना वैश्विक महामारी फैली तो यहां लॉकडाउन लग गया और रोजगार धंधे बंद हो गए थे. कोचिंग सेंटर बंद होने के बाद केमिकल इंजीनियर शंभू दयाल मीणा और उनकी पत्नी चेतना सिंह अपने गांव खोरपुरा लौट आए. 

गांव लौटने पर शंभूदयाल मीणा का उनके पिता रिटायर्ड पोस्टमास्टर और पूर्व सरपंच हाकिम सिंह मीणा ने उनका हौसला बढ़ाया. शंभूदयाल मीणा ने अपने पिता हाकिम सिंह और अपनी पत्नी चेतना सिंह से सलाह मशविरा करने के बाद खाली पड़ी करीब तीन बीघा बंजर जमीन पर कोरोना काल के दौरान बागवानी करने की तैयारी शुरू कर दी. 

बागवानी में कमाया बड़ा नाम

बागवानी के लिए शंभू दयाल मीणा और उनकी पत्नी चेतना सिंह ने जयपुर में तैनात कस्टम इंस्पेक्टर विकास कुमार मीणा और अपने पिता हाकिम सिंह के सहयोग से आंध्र प्रदेश की राजमुदड़ी नर्सरी से ऑर्डर देकर अंजीर, फालसा, सफेद जामुन, आम, चीकू, लाल कटहल, अमरुद, मोसंबी, संतरा, आंवला, सफ़ेद और लाल चंदन समेत दस वैरायटी के एक सौ पचास पौधे मंगवाए. इसके बाद खाली जमीन की मिट्टी में पशुओं के गोबर से तैयार खाद को मिलाकर बागवानी शुरू कर दी. 

चेतना सिंह ने बताया कि कस्टम इंस्पेक्टर विकास कुमार मीणा उनके पति शंभू दयाल मीणा के मित्र हैं और बागवानी की तैयारी में सबसे ज्यादा सहयोग विकास कुमार मीणा ने किया है. मीणा को बागवानी और पौधों की वैरायटी के बारे में काफी जानकारी है. कस्टम इंस्पेक्टर विकास कुमार ने समय-समय पर आकर केमिकल इंजीनियर शंभू दयाल मीणा और उनकी पत्नी चेतना सिंह को पौधों के बारे में जानकारी दी. पौधों में कौन सी खाद कब डालनी है, इसकी भी जानकारी देते रहे. इसके चलते आज बंजर भूमि पर बागवानी के पौधे तैयार हो चुके हैं और उनमें फल आना भी शुरू हो चुके हैं.

खेती में दोस्तों ने की मदद

बागवानी में शंभू दयाल मीणा के छोटे भाई नीरज कुमार मीणा ने भी सहयोग किया है. तीन साल बाद आज बाड़ी के छोटे से गांव खोरपुरा में फलों की बागवानी तैयार है जिसे देखने के लिए आसपास के लोग पौधों को देखने आ रहे हैं. चेतना सिंह ने बताया कि लगाए गए 150 पौधों में से 85 प्रतिशत बड़े हो गए हैं और उनमे फल आना शुरू हो चुका है.

केमिकल इंजीनियर शंभू दयाल मीणा की पत्नी चेतना सिंह ने एमए. बीएड की पढ़ाई की है. उन्होंने संस्कृत में एमए किया है. चेतना सिंह जयपुर में ग्रेविटी फाउंडेशन के नाम से अपने पति के कोचिंग सेंटर में सहयोग करती थीं. चेतना सिंह ने बताया कि कोरोना काल में उनको काफी परेशानी का समाना करना पड़ा था और कोचिंग सेंटरों में नुकसान होने के कारण उनको अपने गांव खोरपुरा लौटना पड़ा था. 

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चेतना सिंह ने बताया कि काफी मेहनत के बाद आज बागवानी में पौधों में फल आना शुरू हो गए हैं. अभी पौधों में जो फल आ रहे हैं, उसे बेचा नहीं जा रहा है. शंभू दयाल मीणा और उनकी पत्नी चेतना सिंह फलों को गांव के लोगों को बांट देते हैं. परिजनों में इन नए फलों को बांटा जा रहा है. उत्पादन बढ़ने पर बाजार में बेचने की तैयारी है. चेतना सिंह ने बताया कि मिट्टी का परीक्षण कर कौन-कौन से पौधे लग सकते हैं, इसकी भी टेस्टिंग की जा रही है.(उमेश की रिपोर्ट)

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