मुजफ्फरपुर जिले को "भारत की लीची राजधानी" के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह बड़ी मात्रा में लीची का उत्पादन करता है, और शाही लीची को सबसे प्रीमियम किस्म माना जाता है. फल आमतौर पर मई और जून के बीच काटा जाता है और देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में निर्यात किया जाता है. कहा जाता है कि मुजफ्फरपुर जिले की अनूठी जलवायु और मिट्टी की स्थिति शाही लीची के असाधारण स्वाद और गुणवत्ता में योगदान करती है. फल स्थानीय किसानों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है, जो पीढ़ियों से इसकी खेती कर रहे हैं.
मुजफ्फरपुर की मशहूर शाही लीची लाल होने लगी है यानी पकने लगी है. इसकी कटाई मई के दूसरे सप्ताह से शुरू होगी. ऐसे में लीची के फलों पर संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. फलों को कीटों से बचाने के लिए उचित नमी और छिड़काव की जरूरत होती है.
लीची को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. विकास दास ने बताया लीची के फलों पर मुख्य रोग एस्परगिलस प्रजाति, कोलेटोटिकम ग्लियोस्पोरिडीस, अल्टरनेरिया अल्टरनेटा आदि के कारण होता है. इस रोग का प्रकोप तब होता है जब फल परिपक्व होने लगता है. सर्वप्रथम रोग के प्रकोप से छिलका मुलायम हो जाता है तथा फल सड़ने लगते हैं. फल का छिलका भूरा से काला हो जाता है. फलों के परिवहन एवं भण्डारण के समय इस रोग के फैलने की सम्भावना अधिक होती है.
फल तुड़ाई के 15 से 20 दिन पहले पौधों पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें. फल तुड़ाई के दौरान फलों को यांत्रिक क्षति होने से बचाएं. बचाव के लिए मैन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें.
रोग की तीव्रता ज्यादा हो तो रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू पी या क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत डब्ल्यू पी 2 ग्राम लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए.
लीची के फल की गुणवत्ता कई कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है, जैसे कि विविधता, बढ़ती परिस्थितियों, कटाई की तकनीक और भंडारण के तरीके.
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