झारखंड समेत देश के अधिकांश राज्यों में इस वक्त कड़ाके की ठंड पड़ रही है. ऐसे मौसम में सब्जियों में पाला मारने का खतरा बना रहता है. झारखंड में पाला मारने से सब्जियों की खेती को काफी नुकसान होता है. खास कर आलू की खेती इससे सबसे अधिक प्रभावित होती है. इससे किसानों को काफी नुकसान होता है. यही कारण है कि पाला से खेत में लगी फसलों को बचाने के लिए राज्य के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा एडवाइजरी जारी की जाती है. किसानों के लिए सलाह दी जाती है जिसका इस्तेमाल करके किसान अपने फसलों को पाला से बचा सकते हैं.
किसानों के लिए जारी किए गए सलाह में कहा गया है कि आमतौर पर इस मौसम में रात के तापमान में काफी गिरावट आ जाती है इसलिए फसलों में पाला मारने का डर बना रहता है. इसलिए किसान खेत में नमी बनाए रखने के लिए नियमित तौर पर सिंचाई करते रहे. इसके अलाव अगर संभव हो तो खेत के आस-पास चारों तरफ सूरज डूबने के बाद धुंआ करें इसके साथ ही निकाई गुड़ाई करके खेत की मिट्टी की नमी बनाए रखें.
जो किसान धान की कटाई के बाद गेंहू की खेती करना चाहते हैं वो जल्द से जल्द गेंहू की पिछली किस्म की बुवाई करें. बीज की रोपाई करते समय किसान बीज दर सामान्य से कुछ अधिक 50 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ का इस्तेमाल करें. लगाने से पहले इसके फफूंदनाशी से उपचारित करें. गेहूं लगाते समय कतार से कतार की दूरी 18 सेमी और पौधा से पौधा की सात सेमी रखें. फसल में खर-पतवार नियंत्रण के लिए 20-25 दिनों बाद खेत से निकाई गुड़ाई जरूर करें. वहीं जौ की खेती करने वाले किसान इसकी सिंचित किस्म की जल्द से जल्द बुवाई करें. प्रति एकड़ 40 किलो बीज का इस्तेमाल करें.
जिन किसानों नें 20-30 दिन पहले आलू लगाया है वह किसान पौधौं में मिट्टी चढ़ाकर यूरिया का भुरकाव करें. यूरिया के भुरकाव से पहले खर-पतवार के नियंत्रण के लिए सिंचाई जरूर कर लें. इसके अलावा इस मौसम में आलू के पौधों पर अंगमारी रोग लगता है. जिसके कारण पौधे के निचले हिस्सों की पत्तियों में चमकदार धब्बा बनता है जिसके बाद यह उपर की पत्तियों में होता है और पत्तियां सिकुड़ कर गिरने लगती है. इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर किसान तुरंत फफूंदनाशक का छिड़काव करें. इसके अलावा मटर, सरसों में भी इस वक्त फफूंद जनित रोग लगने की संभावना बनी रहती है इसलिए इसका ध्यान देते रहे हैं.
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