देश में इस वक्त आम का मौसम है. मतलब ये मौसम आम का है और अलग-अलग किस्मों के आम से बाजार भरे पड़े हैं. तो वहीं देश के शोध संस्थानों में आम की नई वैरायटियां भी विकसित हो रही हैं, लेकिन इन सबके बीच झारखंड की पहचान रहा बीजू आम अब खत्म होने के कगार पर आ गया है. इसके कई कारण हैं. असल में एक दशक पहले एक समय ऐसा था, जब झारखंड के स्थानीय बाजारों में बीजू आम दबदबा था और इसकी मांग भी खूब थी, लेकिन अब वक्त से साथ इसकी मांग में भी कमी आई है और बाजार में इसका शेयर भी घटा है. अब सिर्फ गांव देहातों में लगने वाले हाट बाजारों में बीजू आम बिकता है. गांवों में इसके स्वाद के दिवाने लोग इसे खाना खूब पसंद करते हैं.
झारखंड का गुमला जिला बीजू आम उत्पादन के लिए राज्य में पहले नंबर पर आता था. इसके अलावा रांची, खूंटी, लोहरदगा और चतरा में भी आम के खूब पेड़ हैं, लेकिन इसके बावजूद बीजू आम के उत्पादन में लगातार कमी आ रही है. इस बारे में बताते हुए कृषि विज्ञान केंद्र बिशुनपुर के वैज्ञानिक अटल पांडेय बताते हैं कि पिछले 10 वर्षों में आम के उत्पादन में काफी गिरावट दर्ज की गई है. उन्होंने जलवायु परिवर्तन को इसका सबसे बड़ा कारण बताया है. उन्होंने कहा कि झारखंड में पिछले 10 सालों में मौसम में काफी बदलाव हुआ है.
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में काफी फेरबदल हुआ है. इसके कारण अब बसंत ऋतु में भी आम के मंजर सभी पेड़ों में नहीं आ पाते हैं. इसके अलावा बेमौसम बारिश तेज हवा और ओलावृष्टि आम का उत्पादन घटने की बड़ी वजह है. ओलावृष्टि के कारण आम के मंजर और छोटे टिकोरे भी झड़ जाते हैं. इसके अलावा अत्यधिक धूप और तापमान के कारण भी फल सूख कर गिर जाते हैं. इसके कारण उत्पादन में कमी आती है. एक अन्य कारण का जिक्र करते हुए अटल पांडेय ने कहा कि मौसम में परिवर्तन के कारण मैंगो प्लांट हॉपर का प्रकोप बढ़ गया है. बीजू आम के पेड़ बड़े होते हैं और आमतौर पर लोग इसके रखरखाव पर कम ध्यान देते है इसिलए प्लांट हॉपर के कारण काफी नुकसान होता है.
एक बीजू आम के पेड़ में औसतन पांच से आठ क्विंटल फल का उत्पादन होता था, लेकिन अब वहीं उत्पादन घट कर तीन से चार क्विंटल पर आ गया है. अटल पांडेय बताते हैं कि बीजू आम ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए अतिरिक्त आय का एक जरिया है. उन्होंने कहा कि अगर इस आम की प्रोसेसिंग की व्यवस्था की जाए तो ग्रामीणों को और लाभ हो सकता है. इस आम से अमावट, आमचूर और बेहतरीन आचार बनाया जा सकता है. इसके अलावा बीजू आम की फ्रूटी काफी स्वादिस्ट होती है.
अटल पांडेय ने बताया कि अगर सरकारी पहल की जाए तो बीजू आम को प्लांट हॉपर से बचाने के लिए सकारात्मक प्रयास किए जा सकते हैं. सड़क किनारे और गांवों के आम के पेड़ों में ड्रोन या मोटर चालित स्प्रेयर से छिड़काव किया जा सकता है. गुमला जिले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जिले में पांच से आठ हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बीजू आम के पेड़ हैं.
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