जमशेदपुर से करीबन 100 किलोमीटर दूर झारखंड बंगाल की सीमा पर बसैया गांव काजू बागान के नाम से जाना जाता है. यहां हजारों की तादाद में काजू के पेड़ हैं और ग्रामीण पेड़ से काजू तोड़कर अपनी जीविका चलाते हैं. जंगल जाने में हाथियों का डर तो है लेकिन जान जोखिम में रखकर ये लोग बड़े-बड़े डंडे के साथ जंगल में जाते हैं और काजू तोड़कर लाते हैं. इसे घर में लाकर सुखाते हैं और मात्र 70 से 100 रुपये के बीच बेच देते हैं. व्यापारी महाजन बंगाल से आकर इसे खरीद कर ले जाते हैं. झारखंड में कहीं भी काजू का प्रोसेसिंग प्लांट नहीं है. इस कारण ग्रामीणों को अपनी उपज को बंगाल में बेचना पड़ता है, वह भी औने पौने दाम में.
बसैया गांव चारों तरफ से जंगलों के बीच में बसा है. इस जंगल की खासियत यह है कि इसमें करीबन 25000 से ज्यादा काजू के पेड़ हैं जिसका दायरा 7 से 10 किलोमीटर में फैला हुआ है. इस गांव का जंगल का इलाका बंगाल और उड़ीसा की सीमा को छूता है.
यह पूरा इलाका जंगल से घिरा है जिसमें हाथी बड़ी संख्या में है. इन हाथियों के खतरे के बीच गांव के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर जंगल जाते हैं और वहां से काजू के फल को तोड़कर लाते हैं. फल को तोड़कर लाने के बाद उसे अच्छा से साफ करके उसे अपने-अपने घरों में को सुखाते हैं. इसके बाद बंगाल से खरीदार उनके गांव में आते हैं और काजू को कम कीमत पर ले जाते हैं. खरीदार 90 से 100 रुपये की दर से यहां से काजू ले जाते हैं.
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इस गांव के किसानों का कहना है कि अगर इस इलाके में कोई प्रोसेसिंग प्लांट होता तो उन्हें अपने काजू को औने-पौने दाम पर नहीं बेचना पड़ता. किसान बताते हैं कि झारखंड में काजू के पेड़ तो चाकुलिया और बहरागोड़ा में काफी हैं. मगर झारखंड में कहीं भी काजू का प्रोसेसिंग प्लांट नहीं है. इसका फायदा बंगाल के लोग उठाते हैं और कम कीमत पर यहां से काजू खरीद कर बंगाल ले जाते हैं. फिर वहां काजू को साफ और प्रोसेसिंग किया जाता है. फिर उसी काजू को पैकिंग करके उनके ही गांव में हजार रुपये के हिसाब से बिक्री कर देते हैं. किसानों का कहना है कि वे काजू की देखरेख और उससे जुड़े काम करते हैं, लेकिन कमाई कहीं और लोग खाते हैं.
किसानों का कहना है कि अगर झारखंड में काजू का कोई प्रोसेसिंग प्लांट हो तो उसका पूरा फायदा यहीं के लोगों को मिलेगा. किसानों को उनकी मेहनत का पूरा पैसा मिलेगा. किसान जान जोखिम में डालकर काजू उगाते हैं और उसे साफ-सफाई कर तैयार करते हैं जबकि बाहर के लोग आकर सिर्फ प्रोसेसिंग और पैकेजिंग कर हजारों रुपेय कमाते हैं.
रॉबिन नाम के एक किसान ने बताया कि वे जंगल में जाकर काजू तोड़ते हैं और उसे सुखाने के बाद पैक कर 90 रुपये किलो बेचते हैं. वे बताते हैं कि जंगल बहुत बड़ा है और वहां काजू ही काजू है. महिला किसान सुनीता दास ने कहा कि जंगल का इलाका 7-10 किलोमीटर में फैला हुआ है और उसमें 25 हजार से अधिक पेड़ हैं. सुनीता ने बताया कि बंगाल के महाजन इस काजू को 100 रुपये किलो खरीद कर ले जाते हैं और उसी काजू को फिर झारखंड में 1000 रुपये किलो बेचा जाता है.
सुनीता ने कहा कि अगर यहां एक छोटा प्रोसेसिंग प्लांट लगा दिया जाए तो पूरे इलाके के लोगों की जिंदगी बदल जाएगी.
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किसान बाबू राम सरदार कहते हैं, हम लोग काजू बागान की सुरक्षा दिन-रात करते हैं. काजू बागान के बाहर हम लोगों ने एक बोर्ड लगा रखा है कि अगर कोई बिना अनुमति के काजू बागान से काजू तोड़ता है तो उसे जुर्माने के तौर पर 2000 रुपये देने पड़ेंगे. गांव वालों का यह निर्णय है कि काजू बागान में सिर्फ गांव के ही लोगों का हक है. अगर कोई बाहरी पकड़ा जाता है तो उसे जुर्माना देना होगा.(अनूप सिन्हा की रिपोर्ट)
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