किन्‍नौर में गिरता जा रहा ड्राई फ्रूट्स का उत्‍पादन, किसान सेब की नई किस्‍मों की खेती पर दे रहे जोर

किन्‍नौर में गिरता जा रहा ड्राई फ्रूट्स का उत्‍पादन, किसान सेब की नई किस्‍मों की खेती पर दे रहे जोर

हिमाचल प्रदेश का किन्‍नौर अपने पारंपरिक उत्‍पाद सूखे मेवों के लिए जाना जाता है, लेकिन अब किसान सेब की खेती की ओर रूख कर रहे हैं. यही वजह है कि अब सूखे मेवों का उत्‍पादन गिर गया है और कीमतों में वृद्धि हो गई. इस कारण से लोग इसे खरीदने से बच रहे हैं.

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किन्‍नौर में गिरता जा रहा ड्राई फ्रूट्स का उत्‍पादन, किसान सेब की नई किस्‍मों की खेती पर दे रहे जोरड्राई फ्रूट्स की खेती छोड़ सेब की नई किस्‍में उगा रहे किन्‍नौर के किसान. (फाइल फोटो)

पर्यटन, जैविक उत्‍पादों और पारंपरिक उत्पाद ड्राई फ्रूट्स के लिए प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश के किन्‍नौर जिले में अब किसान सेब की खेती पर ज्‍यादा जोर दे रहे हैं. ड्राई फ्रूट्स की खेती से बचते हुए किसान सेब या अन्‍य वैकल्‍पि‍क खेती अपना रहे हैं. यह दावा क्षेत्र के किसानों ने किया है. रामपुर में मेला खत्‍म होने के बाद भी सामान बेच रहे ड्राई फ्रूट विक्रेता ने कहा कि पारंपरिक किन्नौरी उत्पादों का उत्पादन घट रहा है, क्योंकि ज्‍यादातर किसान अब सेब की नई किस्मों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.

किन्नौर के लियो गांव के अतुल नेगी ने बताया कि वह कई वर्षों से मेले में बेचने के लिए सूखे मेवे लाते रहे हैं. पहले वे 12-15 क्विंटल खुबानी और तीन से चार क्विंटल बादाम लाते थे. लेकिन, इस साल वे सिर्फ एक क्विंटल खुबानी और 30 किलो बादाम लाए हैं. उत्पादन में कमी के कारण सूखे मेवों की कीमतें बढ़ रही हैं और उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है.

मेले में कम मात्रा में दिखे ड्राइफ्रूट्स

मेले में बादाम, खुबानी, चिलगोजा, राजमा, मटर, काला जीरा और शिलाजीत जैसे किन्नौरी सूखे मेवे तो उपलब्ध थे, लेकिन पिछले वर्षों के मुकालबले इनकी मात्रा बहुत कम थी. ऊंचे दामों के कारण सूखे मेवे लोगों की खरीद क्षमता से बाहर हो गए हैं. यही वजह रही कि अधिकांश लोग इन्हें खरीद नहीं पाए.

रिस्पा गांव के किसान यशवंत सिंह ने बताया कि वे पिछले चार-पांच सालों से मेले में सूखे मेवे और जैविक उत्पाद बेचने आते रहे हैं. लेकिन, इस साल उन्हें बाजार में रौनक कम दिखाई दी. उनके उत्पादों में कम ग्राहक रुचि दिखा रहे हैं. उन्होंने कहा कि ज्‍यादा से ज्‍यादा किसान अपनी खाली जमीन पर सेब की खेती कर रहे हैं.

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सूखे मेवे की खेती का रकबा घटा

बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि कि सूखे मेवे की खेती में ज्‍यादा मेहनत तो लगती ही है. साथ ही खेती की लागत भी ज्‍यादा होती है, जबकि सेब की नई किस्में तेजी से बढ़ रही हैं और उत्‍पादन में अच्छे परिणाम सामने आ रहे है. यही वजह है कि सूखे मेवों के लिए समर्पित क्षेत्र (रकबा) घट रहा है.

इंपोर्टेड सेब उगा रहे किसान

बागवानी विभाग के विशेषज्ञ डॉ. अश्विनी कुमार ने मंगलवार को बताया कि इंपोर्टेड सेब की नई किस्मों की पैदावार बेहतर होती है और ये चार से पांच साल में फल देने लगती हैं, जिससे किसानों को जल्दी फायदा मिलता है. उन्होंने कहा कि किसान तेजी से पारंपरिक खेती से दूर हो रहे हैं और हर साल कई लोग सेब की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.

क्‍या बोले अध‍िकारी

वहीं, इसके लेकर कृषि विभाग के विषय विशेषज्ञ डॉ. राजेश जायसवाल ने कहा कि किसानों को सब्सिडी देकर पारंपरिक उपज की खेती को बढ़ावा देने की कोशि‍श की जा रही है. उन्होंने जोर देकर कहा कि इन उत्पादों में उच्च पोषण और औषधीय गुण हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद हैं. (पीटीआई)

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