Baghpat News: उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्वच्छ भारत मिशन फेज-2 के तहत सरूरपुर कला और खट्टा प्रहलादपुर गांव की गोशाला में बायोगैस बनाने के लिए बायोगैस प्लांट का निर्माण पूरा हो चुका है.बायोगैस प्लांट से ग्रामीणों को जहां सस्ती घरेलू गैस मिलेगी, वहीं बिजली की समस्या कम होगी. इससे ग्राम पंचायतों की आमदनी भी बढ़ेगी. यहां के बाद अन्य गांवों में यह प्लांट लगाए जाएंगे. बताया जा रहा है कि प्रत्येक बायोगैस प्लांट से 5 किलोवाट की विद्युत सप्लाई भी मिलेगी जिससे बिजली की समस्या दूर होगी.
जानकारी के मुताबिक, सरूरपुर कलां और खट्टा प्रहलादपुर गांव में बन रहे बायोगैस प्लांट गोशाला के अंदर है. जहां बायोगैस बनाने के लिए संरक्षित किए गए गोवंशों के गोबर का प्रयोग किया जाएगा. इस तरह वहां गैस के लिए गोबर खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. दरअसल, स्वच्छ भारत मिशन फेज-2 में शासन ने ग्राम पंचायतों में बायोगैस प्लांट स्थापित कराने की योजना बनाई गई थी. एक बायोगैस प्लांट पर 24 लाख रुपये बजट खर्च करना निर्धारित किया गया था. इसके तहत खट्टा प्रहलादपुर और सरूरपुर कलां गोशाला का बायोगैस प्लांट के लिए चयन किया गया था. जिसमे ग्राम पंचायतों को मिले बजट से बायोगैस प्लांट का निर्माण शुरू कराया गया है. वहीं 48 लाख रुपये से दोनों गांवों में लग रहे बायोगैस प्लांट से पाइपलाइन के जरिए ग्रामीणों के घरों में कनेक्शन दिए जाएंगे.
किसान तक से बातचीत में बागपत के डीपीआरओ (DPRO) अमित कुमार त्यागी ने बताया कि गोशाला में बनने वाली बायोगैस प्लांट का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. अभी तक 70 प्रतिशत सिलेंडरों में गैस भरी जा चुकी है. उन्होंने कहा कि जल्द ही बायोगैस की सप्लाई पाइपों के जरिए ग्रामीणों इलाकों में शुरू हो जाएगा. त्यागी ने आगे बताया कि गैस के साथ बिजली भी मिलेगी. उन्होंने बताया कि बायोगैस बनाने के लिए संरक्षित किए गए गोवंशों के गोबर का प्रयोग किया जाएगा. इस तरह वहां गैस के लिए गोबर खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी.इससे आने वाले दिनों में ग्रामीणों को सस्ती घरेलू गैस उपलब्ध होगी, वहीं ग्राम पंचायत की आमदनी भी बढ़ेगी.
बता दें कि बायोगैस का उत्पादन एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा होता है, जिसके तहत कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायोगैस में बदलते है. इस गैस को जैविक गैस या बायोगैस इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) द्वारा होता है.
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यह गैस विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने और प्रकाश व्यवस्था के लिए उर्जा की आपूर्ति को पूरा करती है. साथ ही बायोगैस तकनीक अवायवीय पाचन (anaerobic digestion) के बाद उच्च गुणवत्ता वाली खाद प्रदान करती है जो कि सामान्य उर्वरक की तुलना से बहुत अच्छी होती है. क्या आप जानते हैं कि इस तकनीक के माध्यम से वनों की कटाई को रोका जा सकता है और पारिस्थितिकी संतुलन (ecological balance) को प्राप्त किया जा सकता है.
दरअसल, बायोगैस निर्माण की प्रक्रिया दो चरणों में होती है. अम्ल निर्माण स्तर और मिथेन निर्माण स्तर. प्रथम स्तर में गोबर में मौजूद अम्ल निर्माण करनेवाले बैक्टीरिया के समूह द्वारा कचरे में मौजूद बायो डिग्रेडेबल कॉम्प्लेक्स ऑर्गेनिक कंपाउंड को सक्रिय किया जाता है. इस स्तर पर मुख्य उत्पादक ऑर्गेनिक एसिड होते हैं, इसलिए इसे एसिड फॉर्मिंग स्तर कहा जाता है. दूसरे स्तर में मिथेनोजेनिक बैक्टीरिया को मिथेन गैस बनाने के लिए ऑर्गेनिक एसिड के ऊपर सक्रिय किया जाता है. हालांकि जानवरों के गोबर को बायोगैस प्लांट के लिए मुख्य कच्चा पदार्थ माना जाता है, लेकिन इसके अलावा मल, मुर्गियों की बीट और कृषि जन्य कचरे का भी इस्तेमाल किया जाता है.
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