Bird Flu के पैथोजन टीके की लो डोज तैयार, बूस्टर पर जारी है रिसर्च  

Bird Flu के पैथोजन टीके की लो डोज तैयार, बूस्टर पर जारी है रिसर्च  

एनआईएचएसएडी, भोपाल ने दो तरह के बर्ड फ्लू लो पैथोजन और हाई पैथोजन में से लो पैथोजन का टीका तैयार कर लिया है. वहीं हाई पैथोजन पर अभी रिसर्च जारी है. सूत्रों की मानें तो लो पैथोजन वाला टीका बनाने की टेक्नोलॉजी 26 दिसम्बर तक अधिकारिक रूप से किसी एक या दो कंपनियों को दे दी जाएगी. 

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Bird Flu के पैथोजन टीके की लो डोज तैयार, बूस्टर पर जारी है रिसर्च  एक पोल्ट्री फार्म में बंद लेयर बर्ड.

बर्ड फ्लू का नाम सुनते ही सर्दी में भी पोल्ट्री फार्मर के पसीने छूट जाते हैं. अगर सात समंदर पार भी मुर्गियों को बर्ड फ्लू होता है तो देश के पोल्ट्री वाले बैचेन हो उठते हैं. और हों भी क्यों न, मुर्गियों में बर्ड फ्लू की रिपोर्ट पक्की होते ही पोल्ट्री का तो मानों शटर ही गिरा दिया जाता है. लेकिन अच्छी खबर यह है कि राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (एनआईएचएसएडी), भोपाल ने पोल्ट्री फार्मर की परेशानी को काफी हद तक दूर करने की कोशिश की है.

राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (एनआईएचएसएडी), ने दो तरह के बर्ड फ्लू लो पैथोजन और हाई पैथोजन में से लो पैथोजन का टीका तैयार कर लिया है. वहीं हाई पैथोजन पर अभी रिसर्च जारी है. सूत्रों की मानें तो लो पैथोजन वाला टीका बनाने की टेक्नोलॉजी 26 दिसम्बर तक अधिकारिक रूप से किसी एक या दो कंपनियों को दे दी जाएगी. 

लो पैथोजन से ऐसी हो जाती हैं मुर्गियां 

एक्सजर्ट की मानें तो मुर्गियों में ज्यादातर एच-9 और एन-2 के लो पैथोजन का असर देखा जाता है. लो पैथोजन से पीड़ित मुर्गियां 50 से 60 फीसद तक अंडा देना कम कर देती हैं. मुर्गियों में सांस की बीमारी हो जाती है. 7 से 8 फीसद तक मुर्गियां मर भी जाती हैं. अभी तक इसके प्रभाव को कम करने के लिए दूसरे देशों टीका मंगाना पड़ता था. लेकिन इसे भोपाल के इस संस्थान में तैयार कर लिया गया है. एक बार लगा यह टीका 6 महीने तक मुर्गियोको लो पैथोजन से दूर रखेगा. 

हाई पैथोजन के टीके पर चल रही है रिसर्च

सूत्रों की मानें तो भोपाल के इस संस्थान में हाई पैथोजन का टीका तैयार करने पर रिसर्च चल रही है. जल्द  ही टीका बनकर तैयार हो जाएगा. हाई पैथोजन को एवियन इन्‍फ्लुएंजा भी कहा जाता है. अगर मुर्गियों के बीच एवियन इन्‍फ्लुएंजा फैलता है तो फिर ऐसे हालात में मुर्गियों को जमीना में दफनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता है. मुर्गियों में इसके लक्षण जुकाम होना, छींक आना और सांस की बीमारी होना हैं. 

संस्थान के डॉयरेक्टर अनिकेत सन्याल ने बताया कि अभी हाई पैथोजन का टीका बाजार तक आने में थोड़ा वक्त लगेगा. क्योंकि एक टीका बनाने के बाद उससे जुड़े और भी बहुत सारे काम होते हैं जिन्हें पूरा करना होता है. गौरतलब रहे कि देश में साल 2003 से बर्ड फ्लू के केस आ रहे हैं. कई बार पोल्ट्री कारोबार को इसके चलते बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. अगर एक बार यह बीमारी मुर्गियों में फैल जाए तो आम इंसान कई महीने तक चिकन और अंडे को हाथ नहीं लगाता है. 
 

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