पशुओं के लिए जानलेवा है ये बीमारी, इलाज भी है मुश्किल, जानें पहचान और बचाव का तरीका

पशुओं के लिए जानलेवा है ये बीमारी, इलाज भी है मुश्किल, जानें पहचान और बचाव का तरीका

जोह्न की बीमारी एक धीमी लेकिन खतरनाक बीमारी है जो मवेशियों के स्वास्थ्य और किसान की आय दोनों को प्रभावित कर सकती है. इससे बचाव ही सबसे अच्छा उपाय है. पशुपालकों को समय-समय पर जांच, सावधानी और वैज्ञानिक तरीके अपनाकर अपने पशुओं को इस बीमारी से बचाना चाहिए.

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पशुओं के लिए जानलेवा है ये बीमारी, इलाज भी है मुश्किल, जानें पहचान और बचाव का तरीकापशुओं के लिए जानलेवा है ये बीमारी

जोह्न की बीमारी, जिसे पैराट्यूबरकुलोसिस भी कहते हैं, एक गंभीर आंतों की बीमारी है जो गाय, भैंस, बकरी और भेड़ जैसे पालतू जानवरों को प्रभावित करती है. यह बीमारी माइकोबैक्टीरियम एवियम उपप्रजाति पैराट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium avium subspecies paratuberculosis, MAP)नामक बैक्टीरिया के कारण होती है. इसका इलाज मुश्किल और खर्चीला होता है, इसलिए बचाव और जल्दी पहचान बहुत जरूरी है.

कैसे फैलती है ये बीमारी?

बीमारी संक्रमित जानवर के मल, दूध, थनों (टीट्स) या संक्रमित पानी/चारे के संपर्क में आने से फैलती है.
बछड़े अपनी मां से गर्भ में या दूध पीते समय संक्रमित हो सकते हैं.
यह बीमारी धीरे-धीरे फैलती है और लक्षण दिखने में कई साल लग जाते हैं.
संक्रमित जानवर लक्षण दिखने से पहले भी बीमारी फैला सकते हैं.

क्या हैं इसके लक्षण?

  • लगातार पतला दस्त (डायरिया)
  • तेजी से वजन कम होना
  • दूध का उत्पादन घट जाना
  • भूख बनी रहती है, लेकिन जानवर धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है
  • ये लक्षण अक्सर 3 से 5 साल की उम्र में दिखाई देते हैं, खासकर तनाव (जैसे बिक्री या यात्रा) के बाद.

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भारत में स्थिति कैसी है?

भारत में बड़ी संख्या में मवेशी इस बीमारी से प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन कभी जांच नहीं करवाई जाती.
यहां स्थानीय जांच किट या निदान साधन की कमी है, जबकि विदेशों में ELISA किट जैसे उपकरण आम हैं और तेजी से निदान में मदद करते हैं.

कैसे होता है जांच और निदान?

  • खून की जांच (Serology/ELISA) – शरीर में बीमारी से लड़ने वाली एंटीबॉडी का पता चलता है.
  • मल जांच (Fecal Test) – मल में मौजूद बैक्टीरिया की पहचान होती है.
  • पीसीआर और कल्चर टेस्ट – यह अधिक सटीक होते हैं, लेकिन महंगे और समय लेने वाले हैं.
  • पोस्टमार्टम (Necropsy) – मृत पशु में बीमारी की पुष्टि की जाती है.

नोट: कोई एक टेस्ट पूरी तरह सटीक नहीं होता, इसलिए दो या ज्यादा टेस्ट मिलाकर सही निष्कर्ष निकाला जाता है.

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बचाव और नियंत्रण कैसे करें?

  • स्वस्थ जानवरों को संक्रमित जानवरों से दूर रखें.
  • संक्रमित जानवरों को पहचानकर अलग करें और आवश्यकता अनुसार हटा दें.
  • हर 6 से 12 महीने में टेस्ट कराएं.
  • बछड़ों को साफ-सुथरे माहौल में रखें और सिर्फ स्वस्थ मां का दूध दें.
  • संक्रमित जानवरों के मल को सही ढंग से नष्ट करें ताकि वह चारे और पानी को दूषित न करे.

पशुपालकों और पशु चिकित्सकों के लिए सुझाव

  • अगर झुंड में जोह्न की बीमारी का इतिहास नहीं है, तो बचाव के सभी उपाय अपनाएं.
  • अगर बीमारी की पुष्टि हो गई है, तो पूरे झुंड की नियमित जांच और निगरानी करें.
  • राष्ट्रीय परीक्षण योजना में शामिल होकर बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है.
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