उत्तर प्रदेश के कुशीनगर और बिहार में चंपारण के गंडक नदी में पाई जाने वाली चेपुआ मछली को अब सेहत का खजाना माना जाता है. यह मछली केवल भारत और नेपाल के गंडक नदी की शाखा नारायणी नदी में पाई जाती है और खाने वालों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन से कम नहीं है. इसे खासतौर पर भूजे के साथ खाया जाता है, जो खाने के अनुभव को और भी खास बना देता है. इसकी पौष्टिकता और विशेषता के कारण अब इसकी कीमत 480 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी है. पहले यह मछली केवल स्थानीय बाजारों में उपलब्ध थी, लेकिन अब स्वास्थ्य लाभों के कारण इसे दूर-दूर से लोग खरीदने के लिए आकर्षित हो रहे हैं.
इस मछली के उत्पादन में वृद्धि के लिए ब्रीडिंग सेंटर की आवश्यकता है, ताकि चेपुआ मछली के बीज से अधिक उत्पादन किया जा सके. अमेरिकी फूड सोसायटी ने 2015 में एक शोध शुरू किया था, जिसका उद्देश्य चेपुआ मछली की पौष्टिकता को प्रमाणित करना था. यह अध्ययन लगभग दो वर्षों तक चला और मार्च 2023 में अमेरिकी जर्नल "जनरल फूड्स" में प्रकाशित हुआ. इस अध्ययन में यह पुष्टि की गई कि चेपुआ मछली में ओमेगा-3 की प्रचुर मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है. इसके अलावा, इस मछली में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड्स के साथ-साथ प्रोटीन, जिंक, मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयरन और पोटेशियम जैसे अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इस मछली की पौष्टिकता हिलसा और सॉलमन मछलियों के समान ही है.
चेपुआ मछली का वैज्ञानिक नाम Aspidoporam morra है और यह केवल नारायणी और गंडक नदी में पाई जाती है. यह मछली नेपाल के नवलपरासी से लेकर उत्तर प्रदेश के कुशीनगर और बिहार के गंडक नदी के छह स्थानों पर ही उपलब्ध है. कुशीनगर के पनियावां क्षेत्र में इस मछली की संख्या बहुत अधिक है, और यहां के ढाबों में इसे विशेष रूप से ताजे मसालों के साथ पकाया जाता है. आज पनियावां में चेपुआ मछली से जुड़े ढाबों की संख्या लगातार बढ़ रही है, और यह मछली यहां के स्थानीय व्यापार का अहम हिस्सा बन चुकी है.
चेपुआ मछली को आमतौर पर स्थानीय लोग अपने पारंपरिक तरीकों से पकाते हैं. इसे आमतौर पर तली हुई, करी या ग्रिल करके खाया जाता है. हर विधि में इसके स्वाद का अलग ही अनुभव होता है. गंडक नदी के किनारे बसे गांवों में मछली के साथ कुछ विशेष मसालों का मिश्रण किया जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी अधिक बढ़ जाता है.
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इस मछली के पहचान दिलाने के लिए कुशीनगर के पनियावां और आसपास के क्षेत्र में इसे उत्पादन और बीज आपूर्ति का बड़ा केंद्र बनाने के प्रयास चल रहे हैं. वैज्ञानिक इस दिशा में शोध कर रहे हैं कि चेपुआ मछली को अन्य स्थानों पर भी विकसित किया जा सके, जिससे इसका उत्पादन बढ़ सके. पश्चिमी चंपारण (बिहार) में भी इस मछली के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ब्रीडिंग की योजना बनाई जा रही है. अगर इस दिशा में कार्य किया गया तो इस मछली के कारोबार से रोजगार की संभावना काफी बढ़ सकती है.
चेपुआ मछली दुनिया भर में एक नई पहचान बना सकती है. गंडक नदी में पाई जाने वाली चेपुआ मछली न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए अहम है, बल्कि नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी आवश्यक है. मछली पालन से जुड़ा व्यवसाय हजारों परिवारों का जीवन यापन का एक अहम हिस्सा है. इस मछली की मांग बढ़ने से स्थानीय मछुआरों को रोजगार मिलता है और यह नदी की जैविक विविधता को भी बनाए रखने में सहायक होती है.
पनियावां में विशेष रूप से ढाबे पर इस मछली का स्वाद चखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. सरसों के तेल में तवे पर फ्राई की गई इस मछली का स्वाद मसालेदार और कुरकुरा होता है, गंडक नदी की चेपुआ मछली न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह एक बेहतरीन विकल्प है. इसकी पोषकता और वैश्विक रुचि को देखते हुए, यह मछली आने वाले समय में एक महत्वपूर्ण आहार बन सकती है.
चेपुआ मछली के उत्पादन और ब्रीडिंग पर हो रहे शोध से यह उम्मीद जताई जा रही है कि भविष्य में यह मछली और भी व्यापक स्तर पर उपलब्ध होगी, और यह क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान देगी. अभी स्थानीय मछुआरे इसे अपने पारंपरिक तरीकों से पकड़ते हैं और इसका व्यापार करते है.
चेपुआ मछली के उत्पादन और ब्रीडिंग पर हो रहे शोध से यह उम्मीद जताई जा रही है कि भविष्य में यह मछली व्यापक स्तर पर उपलब्ध होगी. इसके उत्पादन में वृद्धि से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यह पूरे क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत भी बन सकता है. चेपुआ मछली के उत्पादन में वृद्धि के साथ यह मछली भारतीय बाजार के अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी जगह बना सकती है. इसके पोषण संबंधी गुण और स्वादिष्टा के कारण, यह मछली दुनिया भर में एक नया आहार विकल्प बन सकती है.
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