देश में झींगा पालन तेजी से बढ़ रहा है. ताजा आंकड़ों पर जाएं तो देश में झींगा का उत्पादन 11 लाख टन को पार कर चुका है. सबसे ज्यादा झींगा एक्सपोर्ट होता है. लेकिन उत्पादन लागत ज्यादा होने की वजह से इंटरनेशनल मार्केट में उसे बेचने में परेशानी आती है. झींगा पालन पूरी तरह से एल वनमेई पर निर्भर है. ये अमेरिकन सीड है. लेकिन अच्छी बात ये है कि अब भारत में भी झींगा के लिए सीड तैयार किया जा रहा है. ब्रीडिंग सेंटर में देसी सीड तैयार किया जा रहा है.
ऐसे ही एक ब्रीडिंग सेंटर का बुधवार को फिशरीज सेक्रेटरी डॉ. अभिलक्ष लिखी ने दौरा किया. साथ ही वहां मौजूद अधिकारियों को ब्रूडर और सीड दोनों की सप्लाई करने के खास निर्देश भी दिए. झींगा एक्सपर्ट की मानें तो अभी देशभर के ज्यादातर राज्यों में आंध्र प्रदेश की झींगा हैचारियों से सीड की सप्लाई होती है.
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मंगलवार को डॉ. अभिलक्ष लिखी ने अंडमान दौरे पर कोडियाघाट में राजीव गांधी सेंटर फॉर एक्वाकल्चर (आरजीसीए) द्वारा स्थापित पेनियस मोनोडॉन के न्यूक्लियस ब्रीडिंग सेंटर (एनबीसी) का दौरा किया. इस सेंटर का मकसद खासतौर पर झींगा के लिए स्पेसिफिक पैथोजन फ्री (एसपीएफ़) ब्रूड और सीड की सप्लाई करना है. इस मौके पर उन्होंने समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए) और आरजीसीए के अधिकारियों को हैचरी को एसपीएफ पी मोनोडॉन ब्रूडर और सीड की सप्लाई करने के लिए जरूरी निर्देश दिए.
डॉ. लिखी का कहना है कि एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन (EEZ) में फिशरीज की बहुत संभावनाएं हैं. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में लंबी तटरेखा और विशाल भारत के EEZ के साथ फिशरीज संसाधन बहुत हैं. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनुमानित वार्षिक फिशरीज क्षमता करीब 1.48 लाख टन है. इसमें से अब तक केवल 49 हजार टन का ही उत्पादन हुआ है. इतना ही नहीं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में टूना मछली पालन, समुद्री शैवाल और सजावटी मछली पालन समेत मछली पालन केंद्र स्थापित करने की बहुत गुंजाइश है. इसलिए, भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय में मत्स्यपालन विभाग के सचिव डॉ. अभिलाक्ष लिखी ने द्वीपों में मछली पालन से जुड़ी होने वाली गतिविधियों का दौरा किया, साथ ही वैज्ञानिकों, सरकारी अधिकारियों, उद्यमियों, मछुआरों, मछली विक्रेताओं के साथ बातचीत की.
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डॉ. लिखी ने जंगलीघाट मछली बाजार का भी दौरा किया. इस बाजार को नीली क्रांति योजना के तहत स्थापित किया गया था. इस मौके पर उन्होंने स्थानीय मछली विक्रेताओं से बातचीत कर उनकी चुनौतियों को समझा. मछली की मार्केटिंग और मैनेजमेंट में सुधार के लिए रास्ते तलाशे. उन्होंने इस बाजार में उपलब्ध मछलियों की मात्रा और विविधता के बारे में जानकारी ली तथा उसके रखरखाव को और बेहतर बनाने के तरीकों के बारे में भी पूछा. इस दौरान डॉ. लिखी जंगलीघाट मछली लैंडिंग सेंटर भी गए. उन्होंने मछुआरों से उनकी वर्तमान मछली पकड़ने की प्रथाओं, पकड़ी गई मछलियों की विविधता, उनके अर्थशास्त्र, लैंडिंग सेंटर में मौजूद सुविधा और वर्तमान परिचालन चुनौतियों के बारे में गहराई से बातचीत की. मछुआरों ने ड्रेजिंग, जल सुविधा, बर्फ संयंत्र, डीजल सब्सिडी आदि जैसे मुद्दों पर चर्चा की और उन्हें हल करने का अनुरोध किया.
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