Goat Farming: पशुपालक के छूने-सहलाने पर और तेजी से बढ़ती है इस बकरी की ग्रोथ, जानें डिटेल

Goat Farming: पशुपालक के छूने-सहलाने पर और तेजी से बढ़ती है इस बकरी की ग्रोथ, जानें डिटेल

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. एमके सिंह ने बताया कि दिन में एक बार अगर जमनापारी नस्ल‍ की बकरी का पालक उसे छूता और सहलाता है तो ये बहुत खुश होती है और इसकी ग्रोथ तेजी से बढ़ती है.

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Goat Farming: पशुपालक के छूने-सहलाने पर और तेजी से बढ़ती है इस बकरी की ग्रोथ, जानें डिटेलसीआईआरजी, मथुरा में जमनापारी की नस्ल बढ़ाने की रिसर्च पर काम चल रहा है. फोटो क्रेडिट-किसान तक

वैसे तो ये हर जानवर का स्वभाव होता है कि वो अपने से बड़े जानवर को देखकर डरता है और अपने पालने वाले के आश्रय को तलाशता है. लेकिन ये स्वभाव इस खास नस्ल की बकरी में ज्यादा देखा जाता है. इतना ही नहीं ये हयुमन टच को बहुत पसंद करती है. अगर पशुपालक इन्हें छूता है और इनके शरीर को सहलाता है या मालिश करता है तो ये बहुत खुश होती हैं. जमनापारी नस्ल की ये बकरी उम्मीद करती है कि दिन में कम से कम एक बार तो उसकी देखभाल करने वाला पशुपालक उसके पास आए. 

ये खुद भी पशुपालक से बहुत लाड़ दिखाती है. अपने सिर को उसके शरीर से रगड़ती है. ये इस बात की निशानी है कि बकरी को अपने पशुपालक पर बहुत प्यार आ रहा है. ये कहना है केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा के प्रिंसीपल साइंटिस्टम डॉ. एमके सिंह का. 

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इसलिए औरों से अलग है जमनापारी बकरी का स्वभाव

डॉ. एमके सिंह ने किसान तक को बताया कि जमनापारी नस्ल की बकरी का गृहनगर इटावा का एक गांव है. वहां आज भी इस नस्ल की बकरी चार-पांच की संख्या में पाली जाती है. इसके लिए अलग से कोई बाड़ा या शेड तैयार नहीं किया जाता है. घर में ही ये यहां-वहां घूमती-फिरती रहती है. कभी दिल किया तो चारपाई पर बैठ गई और कही दिल चाह तो आंगन में घूमने लगी. घर-परिवार के सदस्यों  के बीच में घुसकर भी बैठती है और साथ में खाना खाती है. यही वजह है कि ये हयुमन टच को बहुत पसंद करती है. 

शेड में गंदगी है तो खड़ी रहेगी लेकिन बैठेगी नहीं 

डॉ. एमके सिंह ने बताया कि जमनापारी नस्ल की बकरी साफ-सफाई बहुत पसंद करती है. जैसे अगर इसके शेड में गंदगी है या जमीन गीली हो रही है तो ये पूरी रात जमीन पर नहीं बैठेगी. खड़े-खड़े ही पूरी रात गुजर देगी. गंदगी के पास भी खड़ा होना पसंद नहीं करती है. जहां गंदगी पड़ी होती है तो वहां से दूर हटकर खड़ी होगी. मौका मिलता है तो गंदगी होने पर शेड से बाहर भी आ जाती है.  

जमनापरी नस्ल की खासियत एक नजर में 

जमनापरी बकरी इटावा, यूपी के चकरनगर और गढ़पुरा इलाके में बहुत पाई जाती हैं. यह इलाका यमुना और चम्बल के बीहड़ वाला है. यहां बकरियों के लिए चराई की अच्छी सुविधा है. यह यूपी की एक खास नस्ल है. इसके अलावा यह मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी पाई जाती है. 

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लम्बाई में बड़े आकार वाली बकरी है. इसके कान भी लम्बे नीचे की ओर लटके हुए होते हैं.  

रंग आमतौर पर सफेद, लेकिन कभी-कभी कान-गले पर लाल रंग की धारियां भी होती हैं. 

इसकी नाक उभरी हुई होती है और उसके आसपास बालों के गुच्छे होते हैं. 

बकरे-बकरी दोनों के पैर के पीछे ऊपर लम्बे बाल होते हैं.

बकरे और बकरी दोनों में ही सींग पाए जाते हैं. 

बकरे का वजन 45 किलो और बकरी का वजन 38 किलो तक होता है. 

बकरा 90 से 100 सेमी और बकरी 70 से 80 सेमी ऊंची होती हैं.  

जमनापुरी बकरियां अपने 200 दिन के दूधकाल में एवरेज 500 लीटर तक दूध देती हैं.  

एक साल में जमनापरी बकरी 21 से 26 किलो तक की हो जाती है.

जमनापरी का बच्चा 4 किलो वजन तक का होता है. 

20 से 25 महीने की उम्र पर पहला बच्चा  देती है. 

दूध के साथ ही यह मीट के लिए भी पाली जाती है. 

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा लगातार जमनापरी बकरी पर रिसर्च करता है. 

देश में जमनापरी बकरियों की कुल संख्या 25.56 लाख है. 

प्योर जमनापरी ब्रीड बकरियों की संख्या 11.78 लाख है. 

 

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