भारत के उत्तरी क्षेत्रों में, खासकर मार्च/अप्रैल से अक्टूबर/नवंबर तक के गर्मियों के महीनों के दौरान, मछली पालन किसानों के लिए अपनी आय बढ़ाने का एक एक बहुत बड़ा मौका देता है. लेकिन गर्मी के दिनों में मछली पालन एक चुनौती भरा काम हो जाता है क्योंकि तापमान बढ़ने से मछलियों का उत्पादन घटता है. इससे किसानों की कमाई भी कम हो जाती है. ऐसे में एक्सपर्ट के बताए कुछ टिप्स को ध्यान में रखकर गर्मी में मछली उत्पादन को बनाए रखा जा सकता है.
गर्मी के मौसम में सबसे बड़ी चिंता पानी के तापमान को बनाए रखना है, ताकि मछलियों को बढ़ने के लिए उपयुक्त तापमान मिलता रहे. इसे लेकर एक्सपर्ट पानी की गहराई 5-6 फीट बनाए रखने की सलाह देते हैं, ताकि पानी की सतह की परत के नीचे मछलियों के लिए पर्याप्त जगह हो. यह जगह गर्मी में अधिक गर्म हो सकती है, खासकर जब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो. अगर पानी का स्तर 5-6 फीट बनाए रखें तो पानी की ऊपरी गर्म सतह के नीचे मछलियां ठंडे पानी में रह सकती हैं. इससे उनके विकास पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा.
गर्मी में पानी में ऑक्सीजन का सही स्तर बनाए रखना भी चुनौती है. सुबह के वक्त मछलियां पानी के ऊपरी सतह पर अधिक एक्टिव रहती हैं जिससे पानी में ऑक्सीजन स्तर घटता है. इससे मछलियों की सेहत पर बुरा असर होता है. इस प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को सुबह के वक्त तालाब में साफ हवा का इंतजाम करना चाहिए. इसके लिए तालाब में साफ पानी डालें या फिर एयरेटर की मदद से पानी में ऑक्सीजन दें जिससे मछलियों को बहुत राहत मिलेगी. पानी में ऑक्सीजन का स्तर सामान्य होते ही मछलियों को सांस के लिए पानी के ऊपरी सतह पर आने की जरूरत कम हो जाएगी.
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ऑक्सीजन की समस्या दूर होने के बाद किसानों को पानी की क्वालिटी भी बनाए रखने की जरूरत होती है. पानी की क्वालिटी सुधारने के लिए तालाब में पानी को बदलते रहना चाहिए. पानी शुद्ध हो और क्वालिटी अच्छी हो तो उसमें मछलियों के पोषक तत्व भी अधिक होते हैं. इससे पानी में जलीय घास यानी प्लेंकटन के पनपने की संभावना अधिक हो जाती है. इससे मछलियों को पौष्टिक चारा मिल जाता है. दूसरी ओर मछलियों के तालाब का पानी खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल करें तो फसलों को अधिक पोषक तत्व मिल जाते हैं. खाद का प्रयोग कम हो जाता है.
एक्सपर्ट बताते हैं कि गर्मी में पानी का रंग बदल जाए या उसमें अल्गी का प्रसार अधिक दिखे तो किसान को सावधान हो जाना चाहिए. इससे पानी की खराब क्वालिटी का संकेत मिलता है. इस संकेत को गंभीरता से लेना चाहिए और मछलियों को दिए जाने वाले आहार या चारे को रोक देना चाहिए. अगर तालाब में फीड दिया जा रहा है या किसी तरह का पोषत तत्व डाला जा रहा है, तो उसे रोक देना चाहिए. जब तक पानी का रंग सुधर न जाए तब तक फीड रोके रखना चाहिए.
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पानी की क्वालिटी सुधारने के लिए पानी का पीएच मान भी मेंटेन रखना चाहिए. यह 7.5-8.5 तक सही माना जाता है. इसके लिए पानी में चूना या फिटकरी मिला सकते हैं. जिप्सम का प्रयोग भी किया जाता है. इससे पीएच मान मेंटेन रहने के साथ ही पानी में किसी तरह का रोग नहीं फैलता. अगर तालाब में किसी तरह का रोग फैल गया हो तो किसान को तुरंत वेटनरी डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. इन खास बातों का ध्यान रखते हुए किसान मछली का उत्पादन बढ़ा सकते हैं. साथ ही कमाई के नुकसान से भी बच सकते हैं.
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