मुर्गी पालन जितना अंडों के लिए किया जाता है उससे कहीं ज्यादा चिकन के लिए भी होता है. चिकन के लिए पाले जाने वाले मुर्गों को ब्रायलर मुर्गा पालन कहा जाता है. ये पूरा कारोबार मुर्गों के वजन पर टिका होता है. मुर्गे के रेट भी उसके वजन के हिसाब से ही तय होते हैं. 20 से 25 दिन में मुर्गा खाने के लिए तैयार हो जाता है. सबसे कम वजन का मुर्गा महंगे दाम पर बिकता है. पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि अगर मुर्गा पालन प्लान करके किया जाए तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
इसके लिए जरूरी है कि मुर्गे के फीड से लेकर बाजार के बदलते हालात पर बराबर नजर बनाकर रखी जाए. इतना ही नहीं खाने की बदलती आदतों को ध्यान में रखते हुए प्रचार-प्रसार का भी सहारा लिया जाए. लागत को कम करने की कोशिश की जानी चाहिए. पोल्ट्री फार्म में आने वाली बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण करके भी मुनाफे को बढ़ाया जा सकता है.
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पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि पोल्ट्री सेक्टर में कच्चे माल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. कच्चे माल की कमी भी सामने आने लगी है. डिमांड के मुकाबले ज्यादा उत्पादन नुकसान की बड़ी वजह बन रहा है. ऐसे ही और भी कारण हैं जिसके चलते ब्रायलर मुर्गा पालन में मुनाफा कम होता जा रहा है.
पोल्ट्री एक्सपर्ट का मानना है कि हर एक सेक्टर में कुछ परेशानियां ऐसी होती हैं जिन्हें नियंत्रित किया जा सकता है. अगर प्लान बनाकर ऐसी परेशानियों से निपटा जाए तो फिर मुनाफा बढ़ सकता है.
अच्छा रिजल्ट देने वाला कम लागत का फीड इस्तेमाल करें.
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