गाय-भैंस, भेड़-बकरी और सूअरों में होने वाली खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) जानलेवा बीमारी है. इस बीमारी से कोई एक-दो देश नहीं वर्ल्ड का डेयरी सेक्टर परेशान है. दूषित चारा और दूषित पानी पीने से पशुओं में एफएमडी रोग जल्दी फैलता है. बरसात के दौरान खासतौर पर पशु खुले में चरने के दौरान दूषित चारा-पानी खा और पी लेते हैं. खुले में पड़ी कुछ सड़ी-गली चीजें खाने से भी होता है. फार्म पर नए आने वाले पशु से भी ये बीमारी लग जाती है. पहले से ही एफएमडी से पीड़ित पशु के साथ रहने से भी हो जाती है.
इस बीमारी के चलते जहां पशु का दूध उत्पादन घट जाता है, वहीं पशु की मौत भी हो जाती है. एफएमडी वैक्सीनेशन अभियान से सरकार पर करोड़ों रुपये का बोझ पड़ता है. साथ ही पशुपालकों को भी खासा नुकसान उठाना पड़ता है. दूध उत्पाीदन घटने, पशु के इलाज और पशु की मौत होने के मामले में पशुपालक को कितना नुकसान होता है अब इसका आंकलन आसानी से किया जा सकेगा. लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (LUVAS) हिसार, हरियाणा ने इसके लिए एक खास ऐप तैयार किया है.
Artificial Insemination: 300 रुपये में मिलेगी एक हजार वाली सेक्स सॉर्टेड सीमेन की स्ट्रा, जानें कैसे
ऐप को तैयार करने वाली टीम में शामिल डॉ. स्वाति दाहिया ने किसान तक को बताया कि हमारी इस ऐप को कॉपी राइट का सर्टिफिकेट मिल गया है. जल्दन ही गूगल प्लेा स्टोीर पर अपलोड कर दिया जाएगा. इस ऐप का फायदा लेने के लिए इसे अपने मोबाइल में डाउनलोड करना होगा. और जब एफएमडी बीमारी फैलेने से पशुपालकों को जो नुकसान होगा तो उसके आंकड़े ऐप में अपलोड करने होंगे. जैसे दूध कितना घटा. बीमारी और वैक्सीनेशन पर कितना खर्च हुआ. पशु की अगर मौत हुई तो उस पशु के बारे में पूरी जानकारी भरनी होगी.
डॉ. स्वाति ने बताया कि हमने ऐप को एफएमडी बीमारी को ध्यान में रखते हुए बनाया है. इस खास ऐप पर सिर्फ एफएमडी बीमारी से होने वाले नुकसान का ही आंकलन किया जा सकेगा. लेकिन और दूसरी बीमारियों से होने वाले नुकसान का भी आंकलन करना है तो ठीक इसी तरह की दूसरी ऐप तैयार करनी होगी.
एनीमल एक्सपर्ट विजेन्द्र मलिक ने किसान तक को बताया कि एफएमडी पीड़ित किसी भी पशु जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी और सूअरों के लक्षण ये हैं कि उन्हें 104 से 106 एफ तक तेज बुखार आएगा. भूख कम हो जाएगी. पशु सुस्त रहने लगता है. मुंह से बहुत ज्यादा लार टपकना शुरू हो जाती है. मुंह में फफोले हो जाते हैं. खासतौर पर जीभ और मसूड़ों पर फफोले बहुत ज्यादा हो जाते हैं. पशु के पैर में खुर के बीच घाव हो जाते हैं, जो अल्सर होता है. गाभिन पशु का गर्भपात हो जाता है. थन में सूजन और पशु में बांझपन की बीमारी आ जाती है.
ये भी पढ़ें: डेटा बोलता है: ऐसा क्या हुआ कि सिर्फ एक ही साल में बढ़ गया करोड़ों अंडों और मुर्गों का उत्पादन, जानें वजह
विजेन्द्र का कहना है कि पशुओं में एफएमडी की रोकथाम करना बहुत आसान है. इसमे कोई पैसा भी खर्च नहीं होता है. सबसे पहले तो अपने पशु का रजिस्ट्रेशन कराएं. उसके कान में ईयर टैग डलवाएं. किसी भी पशु स्वास्य्ले केन्द्र पर साल में दो बार फ्री लगने वाले एफएमडी के टीके लगवाएं. टीका लगवाने के बाद इस बात का खास ख्याल रखें कि टीका लगने पर 10 से 15 दिन में पशु में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है. इसलिए तब तक पशु का खास ख्याल रखें. बरसात के दौरान पशु के बैठने और खड़े होने की जगह को साफ और सूखा रखें.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today