100 रुपये में ब‍िकता है इस मुर्गी का एक अंडा, जानें क्या है खास

100 रुपये में ब‍िकता है इस मुर्गी का एक अंडा, जानें क्या है खास

देशी में अंडों की बहुत मांग है. इसे देखते हुए बीते कुछ दशकों में अंडों के बाजार ने र‍िकॉर्ड स्पीड पकड़ी है. लेक‍िन, अब बाजार में मुर्गि‍यों की नस्लों के आधार पर अंडों की मांग होने लगी है. ज‍िसमें अभी तक सामान्य तौर पर कड़कनाथ मुर्गे के अंडे को सबसे महंंगा माना जाता है. लेक‍िन, ये सच नहीं है.

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100 रुपये में ब‍िकता है इस मुर्गी का एक अंडा, जानें क्या है खास egg

पोल्ट्री के तहत सिर्फ मुर्गे-मुर्गी ही नहीं पाले जाते हैं, बल्कि बत्तख, टर्की, तीतर-बटेर आदि भी पाले जाते हैं. लेकिन हमारे देश में खासतौर पर मुर्गे-मुर्गी के अंडे और मीट को ही खाया जाता है. लेकिन, मुर्गे-मुर्गी में भी कई ऐसी खास नस्ल हैं जिनके कि अंडे और मीट महंगा बिकता है. कड़कनाथ मुर्गे का नाम तो आपने सुना ही होगा. कहा जाता है कि कड़कनाथ मुर्गी का अंडा सबसे महंगा 30 से 35 रुपये का बिकता है. लेकिन देश में देशी मुर्गे-मुर्गी की एक ऐसी भी नस्ल है जिसका एक अंडा सबसे महंगा 100 रुपये का बिकता है. ये असील मुर्गी का अंडा है.

असील मुर्गी का वजन 4 से 5 किलो तक का होता है. 5 किलो वजन का मुर्गा 2 से 2.5 हजार रुपये तक का मिल जाता है. देशी मुर्गे-मुर्गी फार्म के तौर पर कम और बैकयार्ड पोल्ट्री के तहत ज्यादा पाले जाते हैं. इंडियन क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी भी कड़कनाथ मुर्गे पालते हैं. शौकीन लोग ही देशी मुर्गे-मुर्गी के अंडे और मीट का इस्तेमाल करते हैं. 

असील मुर्गी का है 100 रुपये का अंडा

देशी मुर्गे-मुर्गी में असील एक खास नस्ल है. हालांकि देशी में कड़कनाथ, वनश्री, निकोबरी, वनराजा, घागुस और श्रीहिंदी भी है. लेकिन, असील की अपनी एक खास पहचान है. महंगा होने के चलते बैकयार्ड पोल्ट्री  के तहत यह पाले जाते हैं. इसका मीट बहुत कम खाया जाता है. लेकिन अंडे की डिमांड ज्या्दा रहती है. सर्दियों में इसका अंडा 100 रुपये तक का बिक रहा है. दवाई के तौर पर भी असील का अंडा खाया जाता है. बाकी डिमांड के हिसाब से मुर्गी वाला जो मांग ले. हैचरी के लिए सरकारी केन्द्रों से ही असील मुर्गी का अंडा 50 रुपये तक का मिलता है. असील मुर्गी पूरे साल में सिर्फ 60 से 70 अंडे देती है.

फाइटर कौम है असील मुर्गे-मुर्गी का कुनबा

मुगलों के वक्त से देश में असील नस्ल के मुर्गे-मुर्गी पाले जा रहे हैं. फिल्मों में या जहां भी हम मुर्गा की लड़ाई देखते हैं वो असील नस्ल के मुर्गे ही होते हैं. मुगलों के दौर से लेकर नवाब भी मुर्गे लड़ाने का शौक रखते थे. असील नस्ल में रेजा, टीकर, चित्ताद, कागर, नूरिया 89, यारकिन और पीला वैराइटी होती हैं. असील के पंखों में कई रंगों का मिश्रण होता है. इनके अंदर पैदाइशी ही लड़ने की क्षमता होती है. हैदराबाद में एक सरकारी केन्द्र देशी मुर्गे-मुर्गियों पर ही रिसर्च करता है. असील मुख्य रूप से कर्नाटक और आंध्रा प्रदेश में पाया जाता है. लेकिन पंजाब, यूपी, छत्तीसगढ़, झारखंड, कोलकाता और बिहार में भी असील नस्ल खूब पाली जा रही है

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