भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और पशुपालन का विशेष महत्व है. सकल घरेलू कृषि उत्पाद (gross domestic agricultural product) में पशुपालन का योगदान 28-30% है. छोटे, भूमिहीन और सीमांत किसानों के लिए जिनके पास फसल उगाने और बड़े जानवरों को पालने के पैसे नहीं हैं. वो भेड़, बकरी, सूअर और मुर्गी जैसे छोटे जानवरों को पालना आजीविका का एक साधन है और गरीबी से लड़ने का आधार है. विश्व में हमारा स्थान बकरियों की संख्या में दूसरा, भेड़ों की संख्या में तीसरा तथा मुर्गी पालन में सातवां है. कम खर्च, कम जगह और कम मेहनत में अधिक मुनाफा कमाने में छोटे जानवरों का अहम योगदान है. ऐसे में आइए जानते हैं मुर्गी पालन कर रहे लोग कैसे अपनी मुर्गियों को ठंड में सर्दी जुकाम से बचाकर रख सकते हैं.
मुर्गी पालन का व्यवसाय हमारे देश में बहुत तेजी से बढ़ रहा है और लाखों लोगों की आजीविका का साधन बन गया है. गरीबी और बेरोजगार युवाओं के लिए यह एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है. NARBARD और अन्य प्रमुख बैंक भी इस व्यवसाय को लोकप्रिय बनाने के लिए लोन दे रहे हैं. लेकिन ठंड के मौसम में अक्सर मुर्गियों को ठंड लगने का खतरा रहता है. जिससे मुर्गीपालकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं इसका इलाज और उपचार.
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ठंड के मौसम में, बारिश में भीगने पर या खुले में मुर्गियों, खासकर चूजों को यह रोग तब होता है जब वे बाहर रहते हैं. मुर्गियों का सुस्त रहना, कलगी का नीला पड़ना, भोजन और पानी कम पीना, चोंच से पतला लार निकलना, चूज़े और मुर्गियों का एक साथ रहना इस बीमारी को और फैलाता है.
टेट्रासाइक्लिन, स्टेक्लिन की 1/4 गोली सुबह-शाम दें. सल्फाडीमिडीन (16 प्रतिशत घोल) 10 मिलीलीटर को 1 लीटर पानी में मिलाकर पिलाएं.
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