भारत में खेती-बाड़ी के बाद किसानों का रुख तेजी से पशुपालन की ओर बढ़ रहा है. कमाई के लिहाज से भी पशुपालन किसानों और पशुपालकों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है. लेकिन पशुपालकों को बेमौसम बारिश में पशुओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए. बेमौसम बारिश में दुधारू पशुओं को कई बार ऐसी बीमारियां लग जाती हैं, जिससे उनकी मौत तक हो जाती है. लंगड़ा बुखार भी इसी तरह की एक बीमारी है जो पशुओं को बेमौसम बारिश में होने वाली खतरनाक और जानलेवा बीमारी है.
यह रोग पशुओं के शरीर में कई गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है. ऐसे में आइए जानते हैं, लंगड़ा बुखार कैसे फैलता है और इसके लक्षण क्या हैं. अगर आप एक पशुपालक हैं तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि लंगड़ा बुखार का उपचार क्या है.
बात करें लंगड़ा बुखार की तो ये बेमौसम होने वाली बारिश के दिनों में मिट्टी के जरिए पैदा होता है. इस रोग के पीछे जिस जीवाणु का हाथ होता है, उसका नाम क्लोस्ट्रीडियम चौवई है, जो सालों तक मिट्टी में जीवित रह सकते हैं. यह गीली मिट्टी से किसी घाव के जरिए फैलते हैं. आमतौर पर यह रोग 06 से 24 महीने की उम्र के मवेशियों को होता है.
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पशु को जब लंगड़ा बुखार हो जाता है तो उसके शरीर का तापमान 107 डिग्री तक पहुंच जाता है. यानी पशु को इस दौरान बहुत तेज बुखार हो जाता है. इस दौरान पशु खाना-पीना पूरी तरह से छोड़ देते हैं. साथ ही पशुओं के अगले या पिछले पैरों में सूजन आ जाती है जिसकी वजह से वह लंगड़ा कर चलने लगते हैं. लंगड़ा बुखार के दौरान पशु के पैरों में बहुत ज्यादा दर्द रहने लगता है. वहीं लंगड़ा बुखार होने के बाद कई बार पशुओं की दो या तीन दिनों में मृत्यु भी हो जाती है.
लंगड़ा बुखार एक ऐसा रोग है, जिसके होने पर इसका उपचार करना थोड़ा मुश्किल होता है. इसलिए पशुपालकों को इस रोग से पशुओं को बचा कर रखना ही एकमात्र विकल्प होता है. इसके अलावा अगर पशु को यह रोग हो जाता है और सूजन अधिक हो जाती है, तो मवेशियों को चीरा लगाकर उसे इससे राहत दिलाई जा सकती है. इन सबके अलावा कई बार पशुओं को कुछ दवाएं भी दी जाती हैं, ताकि पशु को दर्द से राहत मिले और इस रोग से छुटकारा मिल सके. ऐसे में आप इन उपायों को अपनाकर अपने मवेशियों को इस रोग से बचा सकते हैं.
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