गाओलाओ मवेशियों की एक शुद्ध भारतीय नस्ल है, जिसे मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पाला जाता है. वहीं मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा, दुर्ग और राजनांदगांव जिले, जबकि महाराष्ट्र के वर्धा और नागपुर जिले में पाला जाता है. गाओलाओ गाय को आर्वी और गॉलगानी गाय के नाम से भी जाना जाता है. इस नस्ल के मवेशियों की कद काठी अच्छी होती है. शरीर पर सफेद से सलेटी रंग होता है. सिर लंबा, कान के आकार मध्यम और सींग छोटे होते हैं. यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 470-725 लीटर दूध देती है. वहीं दूध में 4.32 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है. गाओलाओ गाय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह गाय ज्यादा से ज्यादा तापमान में रह लेती हैं.
कोसली एक 'देसी' मवेशी नस्ल है जो मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के मध्य मैदानी इलाकों में पाई जाती है. इस क्षेत्र का प्राचीन नाम कौशल था, जो भगवान श्रीराम के मामा के नाम पर रखा गया था, और इसलिए इसका नाम कोसली पड़ा. कोसली गाय छत्तीसगढ़ की एक मात्र रजिस्टर्ड गाय है. वहीं इसको मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर और जांजगीर जिलों के आसपास के क्षेत्रों में पाला जाता है. वहीं यह गाय छोटे कद काठी की होती है.
कोंकण कपिला एक देशी नस्ल की गाय है जो महाराष्ट्र और गोवा के कोंकण क्षेत्र में पाई जाती है. इस नस्ल को साल 2018 में राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, भारत द्वारा पंजीकृत किया गया था. कपिला अपने आध्यात्मिक गुण के मामले में एक असाधारण और पूजनीय नस्ल है, और इसका नाम प्राचीन ऋषि कपिला से विरासत में मिला है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे इस मवेशी नस्ल की देखभाल करते थे. कपिला दक्षिण कर्नाटक और केरल के कासरगोड क्षेत्रों की मूल निवासी है. यह जंगल के चारे और न्यूनतम अतिरिक्त चारे पर आसानी से रह लेती है.
घुमुसारी एक देसी नस्ल है जो ओडिशा के गंजम के भंजनगर (घुमुसारी) उप-मंडल और फुलबनी जिले के आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है. वहीं घुमुसारी नस्ल का नाम उसके मूल स्थान घुमसूर क्षेत्र से लिया गया है. ओडिशा के बिंझारपुरी और खरियार मवेशियों की तरह ही घुमुसरी गाय को भी 'देशी' नाम से जाना जाता है. घुमुसारी नस्ल मुख्य रूप से भारवाहक मवेशियों की नस्ल है, हालांकि कभी-कभी इन्हें दूध और खाद के लिए भी पाला जाता है. वहीं इन मवेशियों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है, जिसका मुख्य कारण देशी क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण बैलों की अनुपलब्धता है. इस गिरावट को रोकने और नस्ल के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं.
कृष्णा वैली नस्ल के मवेशियों की उत्पत्ति कर्नाटक के बीजापुर, बागलकोट और बेलगाम जिले के उन क्षेत्रों में हुई है जहां से कृष्णा, घटप्रभा और मालाप्रभा नदियां होकर गुजरती हैं. कृष्णा वैली नस्ल के मवेशियों को हैदराबाद के दक्षिण-पश्चिमी भाग में भी पाला जाता है. इसके अलावा, महाराष्ट्र के सतारा, सांगली और सोलापुर जिले में भी पाला जाता है. कृष्णा वैली दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल है. यानी इस नस्ल का पालन दूध के अलावा भारवाहक के लिए किया जाता है. दरअसल, कृष्णा वैली मवेशी एक भारवाहक नस्ल हैं और मुख्य रूप से कृषि उद्देश्यों के लिए पाले जाते हैं.
लद्दाखी नस्ल के मवेशी उच्च ऊंचाई वाले रेगिस्तानी क्षेत्र में वहां पाए जाते हैं जहां पानी का मुख्य स्रोत पहाड़ों पर शीतकालीन बर्फबारी होती है. इस नस्ल के मवेशियों का मूल निवास स्थान जम्मू-कश्मीर का लेह-लद्दाख क्षेत्र है, और इनका प्रजनन क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के लेह और कारगिल जिलों में और उसके आसपास है. इस नस्ल के मवेशी ठंडी जलवायु और हाइपोक्सिक (ऑक्सीजन आपूर्ति में कमी) स्थितियों में भी आसानी से रह लेते हैं. इसके अलावा, इस नस्ल के मवेशी जल्दी बीमार नहीं पड़ते हैं, क्योंकि इस नस्ल के मवेशियों का रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होता है. इस गाय का पालन करना छोटे पशुपालकों के लिए लाभकारी होता है.
कांकरेज गाय एक देशी नस्ल की गाय है. यह भारत में एक लोकप्रिय नस्ल है, जो अपने दूध उत्पादन क्षमता के लिए जानी जाती है. गुजरात राज्य में बनास कंथा, खेड़ा, महेसाणा, साबर कांथा और कच्छ क्षेत्र में जबकि, राजस्थान में बाड़मेर और जोधपुर क्षेत्र में कांकरेज गाय और बैल बहुतायत में हैं. कांकरेज गाय और बैल दोनों ही किसान के पसंदीदा हैं. इस नस्ल का पालन कृषि के काम में और दूध के लिए, यानी दोहरे काम के लिए किया जाता है. कांकरेज गाय को कई नामों से पुकारा जाता है जिनमें वगाडि़या, वागड़, बोनई, नागर और तालाबड़ा आदि नाम शामिल है. इसका नाम गुजरात के बनासकांठा जिले के भौगोलिक क्षेत्र यानी कांक तालुका के नाम पर रखा गया है.
भारत के लगभग सभी राज्यों में देसी गायों की अलग-अलग नस्लें पाई जाती हैं, लेकिन इनमें से सबसे ज्यादा गुजरात में पाई जाती हैं. दरअसल गुजरात में चार रजिस्टर्ड देसी गायों की नस्लें पाई जाती हैं जिनमें कांकरेज, डांगी, गिर और डगरी गाय आदि शामिल हैं. गाय की देसी नस्ल डगरी गाय गुजरात की एक पारंपरिक खेती वाली मवेशी नस्ल है, जिसे "गुजरात मालवी" के नाम से भी जाना जाता है. वहीं बोली में डगरी का अर्थ 'देसी' या पुराना या मूल होता है. गुजरात में पाई जाने वाली अन्य नस्लों की तुलना में डगरी गाय बहुत कम दूध देती है. एनडीडीबी के अनुसार डगरी गाय एक ब्यान्त में औसतन 316 लीटर तक दूध देती है, जबकि अधिकतम 650 लीटर और न्यूनतम 75 लीटर तक दूध देती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today