देश के कई हिस्सों में ठंड अपने चरम पर है, जिसका असर मानव के साथ ही फसलों और पशुओं पर पड़ रहा है. लेकिन, सच ये भी है कि पानी में रहने वाली मछलियों को भी ठंड लगती हैं. ठंड लगने से मछलियों की मौत हो सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक ठंड के मौसम में मत्स्य पालकों को विशेष ध्यान देना पड़ता है क्योंकि इस दौरान तापमान कम होने पर कई प्रकार के रोग मछलियों में आ सकते हैं. इससे मछलियों की मौत भी हो सकती है. नतीजतन किसानों को नुकसान हो सकता है.
इन परिस्थियों से बचने के मछली पालकों को पहले से ही उपाय अपनाने चाहिए. रोग प्रबंधन मछली पालन में सफलता का मंत्र है. केंद्रीय मात्सियिकी शिक्षण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ मोहम्मद अकलाकुर ने ठंड के मौसम में मछलियों को बीमारी से बचाने के टिप्स दिए हैं.
डॉक्टर अकलाकुर ने बताया कि मुख्यतौर पर मछलियों में तीन से चार तरह की बीमारी होती है. सबसे अधिक बीमारी बैक्टिरिया के कारण होती है. दूसरी तरह की बीमारियां वायरस के कारण होती हैं, तीसरी तरह की बीमारियां फंगस के कारण होती हैं और चौथी पारासाइट्स के कारण होती हैं. उन्होंने बताया की सघन खेती की तकनीक में या फिर खास कर ठंडे के दिनों में बैक्टिरिया जनित रोग मछलियों में होते हैं. बैक्टिरिया जनित बीमारी होने पर मछलियों की मौत होती है.
केंद्रीय मात्सियिकी शिक्षण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ मोहम्मद अकलाकुर बताते हैं कि मछलियों को एक टेल ड्रॉप बीमारी भी लगती है. इस बीमारी से संक्रमित मछलियों की पूंछ टूट जाती है. इसके अलावा ड्रॉप्सी होता है, जिसमें मछलियों की मौत पेट फूलने से हो जाती है. यह सभी बीमारियां इससे पहले बड़ा रूप ले लेंं, इन्हें रोकना बहुत जरूरी होता है. इन बीमारियों की रोकथाम अलग-अलग माध्यमों मे अलग अलग तरीके से की जाती है.
केंद्रीय मात्सियिकी शिक्षण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ मोहम्मद अकलाकुर बताते हैं कि जो किसान तालाब में मछली पालन कर रहे हैं, वो अधिक ठंड पड़ने पर तालाब में चूने का उपयोग करें. इस प्रक्रिया को किसानों को पूरे ठंड के मौसम में प्रति सप्ताह दोहराने की आवश्यकता होती है. वहीं गर्मी के मौसम में भी 15 दिनों के अंतराल पर चूने का प्रयोग करना चाहिए. इससे तालाब में बैक्टिरिया पनपने से रुक जाएगा और मछलिया बीमारी से बच जाएंगी. वहीं अगर किसान आरएएस या बॉटोफ्लॉक में मछली पालन कर रहे हैं तो उन्हें की बढ़िया गुणवत्ता वाला सेनेटाइजर का इस्तेमाल करना चाहिए.
केंद्रीय मात्सियिकी शिक्षण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ मोहम्मद अकलाकुर बताते हैं कि इस तरह से मछलिया बैक्टिरिया और फंगस इंफेक्शन से सुरक्षित रखा जा सकता. पारासाइटस खास कर कॉमन पारासाइट्स से बचाव के लिए क्लीनर या दूसरे तरह के डेल्टा मेथरीन का इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि जो भी दवा की मात्रा निर्धारित की गई है उससे कम मात्रा में ही दवाओं का छिड़काव करें. इन दवाओं का इस्तेमाल आईएमसी कार्प और कैट फिश दोनों के लिए किया जा सकता है.
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