खेत में दौड़ रहे ट्रैक्टर से उठती धूल के बीच परमजीत कौर गन्ने की बोआई के लिए खेत तैयार रही थीं. कुछ दूर खड़े लोग इस दृश्य को देख रहे थे. रामलाल ने कहा, देख लीजिए इस महिला ने किसानी में धमाल मचा रखा है. स्वयं ट्रैक्टर चला रही है. परमजीत कौर के साथ उनकी चारों बेटियां भी खेत में ट्रैक्टर चलाती हैं. मां के साथ खेती में काम करके बेटियों को भी किसानी का जुनून सवार हो गया है. परमजीत कौर उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिला पिसावां ब्लाक के जिगनिया शिवराजपुर की हैं. पति की बीमारी के चलते मौत हो जाने के बाद परमजीत ने 'अपनों' के तमाम ताने झेले, पर हौसला नहीं टूटा. वह बताती हैं कि पति धरमपाल के जीवित रहते उन्होंने कभी घर की चौखट पार नहीं की थी. पति के इलाज में कर्ज हो गया था. 2015 में धरमपाल ने दुनिया से अलविदा कह दिया.
परमजीत कौर के मुताबिक, परिवार के लोगों ने खेती बेचकर पंजाब वापस लौटने की सलाह दी थी. कर्जदारों के दबाव में उन्हें चार एकड़ खेती भी बेचनी पड़ी थी. पति के गुजरने के वक्त खेत में पांच एकड़ गन्ना था. चीनी मिल से पर्चियां नहीं मिल रहीं थीं. इसी बीच उनके घर हरियावां चीनी मिल के क्षेत्रीय गन्ना अधिकारी अनुज सिंह चौहान से मुलाकात हुई. अनुज ने हिम्मत दी और फिर परमजीत ने पंजाब लौटने का निर्णय बदल कर खेती करने में जुट गई.
गन्ना विभाग जुड़कर परमजीत उन्नतिशील किस्मों की पौध बनाती हैं. पहली बार में 50 हजार गांठ लगाई थी. इसमें तीस हजार पौधे बेचे थे. फिर एक लाख गांठ की नर्सरी डाली जिसमें चार लाख रुपये का फ़ायदा हुआ. इसके बाद परमजीत कौर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. पति की बीमारी में जो कर्ज़ लिया था, उसको चुकता कर कृषि यंत्र बैंक बनाया. तीन बेटियों की शादी करने के साथ-साथ बेटे को पंजाब में पढ़ाई करा रही हैं.
स्वयं सहायता समूह बनाकर आज दो दर्जन से अधिक महिलाओं को इस पौध बनाने के कार्य से जोड़कर उनके जीवन में गन्ने की मिठास घोलकर आत्मनिर्भर बना रही हैं. इसके अलावा गन्ना शोध संस्थान शाहजहांपुर से जैव फफूंद नाशक बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर ख़ुद की कंपनी बनाने के प्रयास में जुटी हैं.
हरियावां चीनी मिल के अनुज सिंह ने बताया, परमजीत गन्ना का काफी अच्छा उत्पादन करती हैं. इन्हें गन्ना तत्कालीन गन्ना आयुक्त संजय आर भूसरेड्डी भी सम्मानित कर चुके हैं. इसके साथ ही ज़िले में गन्ने की खेती में अपनी अलग पहचान बनाई है.
गन्ने की खेती में ड्रिप सिंचाई के फायदों के बारे में बताते हुए परमजीत कौर कहती हैं कि इस विधि को अपनाने से कई फायदे हैं. जैसे पानी केवल पौधों की जड़ों में देने से पानी की बचत, मेड़ और नालियां बनाने की आवश्यकता नहीं होती है. पैदावार और फसल की गुणवत्ता में बढ़ोतरी, खरपतवार पर प्रभावी नियंत्रण, सिंचाई के साथ ही खाद के प्रयोग में छिड़काव पद्धति की तुलना में अधिक बचत होती है. वहीं पहले की तुलना में 10 से 15 प्रतिशत गन्ने का उत्पादन भी बढ़ा है. (रिपोर्ट/मोहित शुक्ला)
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