पति की मौत के बाद पत्नी ने शुरू किया पेपर बैग का रोजगार, अपने साथ-साथ कई लोगों को दे रहीं रोजगार

पति की मौत के बाद पत्नी ने शुरू किया पेपर बैग का रोजगार, अपने साथ-साथ कई लोगों को दे रहीं रोजगार

परिस्थितियां प्रतिकूल हों तो समाज में कुछ चीजें प्रतिकूल हो जाती हैं. पति की मौत के बाद कोविड काल आ गया था. फिर हमने सैनिटाइजर, मास्क और ग्लव्स बनाने का अपना पुराना काम किया. जो काफी अच्छा चला, बाद में मेरे मन में पेपर बैग बनाने का विचार आया. इसके लिए मुझे प्रधानमंत्री रोजगार योजना से 25 लाख रुपये का लोन भी मिला.

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क‍िसान तक
  • Shahjahanpur,
  • Dec 08, 2023,
  • Updated Dec 08, 2023, 3:13 PM IST

यूपी के शाहजहांपुर में 5 साल पहले पति की मौत के बाद पत्नी ने कुछ ऐसा किया जो लोगों के लिए मिसाल साबित हो रहा है. उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी अंधेरी जिंदगी में फिर से रोशनी ला दी है. उन्होंने पेपर बैग बनाने का बिजनेस शुरू किया. इस रोजगार के जरिए वह अब दूसरों को भी रोजगार मुहैया करा रही हैं. इसके अलावा उन्होंने अपने ससुर की विरासत को भी संजोकर रखा है और अपने घर में 100 साल पुरानी किताबों की लाइब्रेरी बना रखी है. रचना मोहन कहती हैं कि किताब में जो है वो आपको कहीं नहीं मिलेगा. इस आधुनिक युग में बच्चे किताबों के माध्यम से साहित्य से जुड़ेंगे तो अपने संस्कारों को नहीं भूल पाएंगे.

दरअसल, 5 साल पहले रचना मोहन के पति की मौत के बाद करवाला चमकनी की रहने वाली रचना के सामने अंधेरा छा गया. उनके सामने दो बच्चों, एक बेटी और एक बेटे की परवरिश और घर चलाने की ज़िम्मेदारी थी. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

कोविड में इन चीजों का किया था रोजगार

रचना मोहन कहती हैं कि परिस्थितियां प्रतिकूल हों तो समाज में कुछ चीजें प्रतिकूल भी हो जाती हैं. पति की मौत के बाद कोविड काल आ गया था. फिर हमने सैनिटाइजर, मास्क और ग्लव्स बनाने का अपना पुराना काम किया. जो काफी अच्छा चला, बाद में मेरे मन में पेपर बैग बनाने का विचार आया. इसके लिए मुझे प्रधानमंत्री रोजगार योजना से 25 लाख रुपये का लोन भी मिला. इसके बाद जगह की कमी के कारण मैंने अपने घर की छत पर पेपर बैग प्लांट लगवाया और आज करीब एक दर्जन लोगों को रोजगार मुहैया कराया है.

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अपने साथ कई अन्य लोगों को दे रहीं रोजगार

इसके अलावा इनडायरेक्टली लगभग 30 लोग मेरे इस रोजगार से अपना रोजगार चला रहे हैं. उनका बेटा भी पेपर बनाने में अपनी मां की मदद करता है. रचना का कहना है कि अब वह सामाजिक कार्य भी करती हैं. जिसमें लड़कियों की शिक्षा में जो कुछ बाकी है या हासिल किया जा सकता है. वह उतना ही सहयोग करती है. उन्होंने अपने घर में ही करीब 100 साल पुरानी किताबों की लाइब्रेरी भी खोल रखी है. जिसमें उपन्यास, इतिहास, हिंदी साहित्य, दार्शनिक और आयुर्वेद की पुस्तकें हैं. रचना मोहन का कहना है कि किताबों का शौक उन्हें अपने ससुर से विरासत में मिला है. यह उनकी विरासत है जो उन्होंने मुझे सौंपी है.

किताबों से दूर हो रहे बच्चे- रचना

रचना का कहना है कि आजकल बच्चे मोबाइल फोन से जुड़े हुए हैं जिसके कारण वे किताबों से पूरी तरह दूर हो गए हैं. लेकिन किताब में जो है वो आपको कहीं नहीं मिलेगा. इस आधुनिक युग में बच्चे किताबों के माध्यम से साहित्य से जुड़ेंगे तो अपने संस्कारों को नहीं भूल पाएंगे. फिलहाल विपरीत परिस्थितियों में रचना मोहन ने इस रोजगार के माध्यम से अपने जीवन में फिर से रोशनी ला दी है. अपने रोजगार को बढ़ाने के लिए अब उन्होंने ग्लोबल इन्वेस्टर समिट के एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं. फिलहाल रचना मोहन पर ये लाइने सटीक के बैठती हैं कि, "वो पथ क्या पथिक परीक्षा क्या, जिस पथ पर बिखरे सूल ना हो, नाभिक की धैर्य परीक्षा क्या, जब धाराएं प्रतिकूल न हो."

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