भारतीय रसोई में मशरूम की मांग तेजी से बढ़ रही है. यही कारण है कि अधिकांश किसान अब पारंपरिक फसलों के साथ-साथ मशरूम की खेती की ओर भी रुख कर रहे हैं. वैसे तो पूरी दुनिया में मशरूम की 2000 से अधिक किस्में पाई जाती हैं, लेकिन मशरूम की कुछ किस्मों की खपत भारत में सबसे ज्यादा है. वहीं दूसरी ओर किसान अलग-अलग किस्म के मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. इतना ही नहीं कई किसान अपने साथ-साथ दूसरे किसानों की भी भलाई में लगे हुए हैं. ऐसे में आज हम एक ऐसे सफल किसान के बारे में बात करेंगे जो न सिर्फ खुद बल्कि दूसरों को भी ट्रेनिंग देकर सफल बनाने की कोशिश कर रहा है.
ओडिशा में पुरी जिले के पिपली शहर में, संतोष मिश्रा का कलिंगा मशरूम सेंटर उनकी कड़ी मेहनत और लगन का एक परिणाम है. दंडमुकुंदपुर गांव के बीजेबी कॉलेज से ग्रेजुएट संतोष ने क्षेत्र में मशरूम की खेती में क्रांति ला दी है. हालांकि संतोष का सफर चुनौतियों से भरा था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. ग्रेजुएशन के बाद पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद संतोष मिश्रा उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सके.
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ऐसे में, उन्होंने 1989 में भुवनेश्वर में ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ओयूएटी) में मशरूम खेती प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया. अपने मीडिया साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि उस समय उनके पास अपनी बचत के 36 रुपये थे. जिससे उन्होंने ओयूएटी से ऑयस्टर मशरूम स्पॉन (बीज) की चार बोतलें खरीदीं.
संतोष ने मशरूम की खेती और स्पॉन उत्पादन के लिए एक अलग विधि बनाई है और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने अपने गांव में एक स्पॉन उत्पादन-सह-प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया है. जहां वह दो किस्मों के बीज पैदा करते हैं. एक धान के भूसे वाला मशरूम (वोल्वेरिएला वोल्वेसी) और दूसरा ऑयस्टर मशरूम. वह कलिंगा मशरूम के बीज ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, असम और पांडिचेरी के लोगों को 15 रुपये प्रति बोतल की दर से बेचते हैं. उनकी प्रतिदिन 5,000 बोतल स्पॉन उत्पादन करने की क्षमता है और वर्तमान में वह प्रति दिन 2,000 बोतल (30,000 रुपये) का उत्पादन कर रहे हैं. संतोष अब मशरूम का उपयोग करके मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार करने की योजना बना रहे हैं.
इस प्रशिक्षण केंद्र में, वह पहले से ही अचार, पापड़, वड़ी (सूखे पकौड़े) और सूप पाउडर तैयार करने के लिए मशरूम का प्रसंस्करण कर रहे हैं. फिलहाल प्रशिक्षण केंद्र में ऑयस्टर मशरूम को मशीन में सुखाकर पाउडर बनाया जाता है. इस पाउडर का उपयोग वड़ी, पापड़, अचार, पकौड़े और चपाती (गेहूं के आटे के साथ मिश्रित), चीनी मुक्त बिस्कुट और स्नैक्स बनाने के लिए किया जा सकता है. अपने काम के लिए, संतोष को 2005 में राज्य पुरस्कार मिला और 2011 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा सम्मानित किया गया. उन्हें 2013 में गुजरात शिखर सम्मेलन में वैश्विक कृषि पुरस्कार मिला और उसके बाद 2021 में ओडिशा नागरिक पुरस्कार मिला.