Drone Didi Scheme: सिलाई मशीन पर हाथ फेरने वाली उंगलियां उड़ा रहीं ड्रोन, पढ़ें झारखंड की रेखा की कहानी

Drone Didi Scheme: सिलाई मशीन पर हाथ फेरने वाली उंगलियां उड़ा रहीं ड्रोन, पढ़ें झारखंड की रेखा की कहानी

ड्रोन दीदी बनने के बाद अपनी खुशी जाहिर करते हुए रेखा कुमारी बताती हैं कि यह उनके लिए बेहद गर्व की बात है. अब वो ड्रोन उड़ाकर खेती में सहयोग कर सकती हैं. साथ ही अपने गांव और आस-पास के किसानों का काम आसान करेंगी. समय की बचत होगी. ग्रामीण महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आएगा क्योंकि वे यह देखेंगे कि गांव की महिलाएं अब ड्रोन उड़ा रही हैं.

ड्रोन दीदी रेखा कुमारीड्रोन दीदी रेखा कुमारी
पवन कुमार
  • Ranchi,
  • Jun 20, 2024,
  • Updated Jun 20, 2024, 2:40 PM IST

ड्रोन भारतीय कृषि में एक क्रांति लाने के लिए तैयार है. कृषि में इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए देश की महिलाओं को चुना गया है. उन्हें ड्रोन दीदी बना कर ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि में तेजी लाने का जिम्मा सौंपा गया है. ड्रोन दीदी ऐसी महिलाएं हैं जो बिल्कुल सामान्य किसान परिवार से आतीं हैं. झारखंड की राजधानी रांची के इटकी प्रखंड एक ऐसी ही महिला हैं रेखा कुमारी, जो ड्रोन दीदी बनकर ना सिर्फ अपने सपनों को उड़ान भर रही हैं बल्कि आस-पास के गांव के किसानों को खेती में सहयोग कर रही हैं और उनका काम आसान बना रही हैं. इसके साथ ही वे अपने काम से गांव की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं. 

इटकी प्रखंड के बनियाटोली गांव की रहनेवाली ड्रोन दीदी रेखा कुमारी का जन्म किसान परिवार में हुआ. हालांकि घर की इकलौती बेटी होने के कारण उन्हें कभी खेत में काम नहीं करने दिया गया, पर खेती के बारे में उनके मन में हमेशा जिज्ञासा बनी रही. रेखा कुमारी ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की है. ससुराल में भी पति और ससुर खेती करते हैं. खेती इनका प्रमुख पेशा है. इससे आजीविका चलती है. रेखा बताती हैं कि अब वे कभी-कभी अपने खेत में जाती हैं और इस तरह से उन्हें खेती बारे में अब काफी जानकारी हो गई है. खेती बाड़ी के अलावा रेखा पशु चारे का दुकान चलाती हैं और सिलाई का काम करती हैं. 

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इस तरह हुआ चयन

रेखा कुमारी ने बताया कि 2022 में शिव शक्ति आजीविका सखी मंडल से जुड़ीं. इसके बाद से ही लगातार महिला समूह के साथ काम कर रही हैं. ड्रोन दीदी के तौर पर कैसे चुनी गईं, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जब ड्रोन दीदी का चयन करने के लिए एचयूआरएल के अधिकारी गांव में आए और महिला समूहों के साथ बैठक की तब सभी ने मिलकर उनके नाम का सुझाव दिया. एचयूआरएल के अधिकारियों ने उनसे इंटरव्यू लिया. तब जाकर उनका चयन हुआ. चयन होने के बाद उन्हें ड्रोन उड़ाने का प्रशिक्षण देने के लिए बिहार के मोतीहारी भेजा गया जहां पर 5 दिनों की ट्रेनिंग हुई. फिर समस्तीपुर में 9 दिन और रांची में 3 दिनों की ट्रेनिंग दी गई. 

इतनी है छिड़काव की फीस

रेखा बताती हैं कि ड्रोन दीदी बनने के बाद उनके जीवन में बहुत बदलाव आया है. उनके अंदर यह आत्मविश्वास आया है कि वे भी जीवन में आगे बढ़ सकती हैं और कुछ बेहतर कर सकती हैं. पहले सिर्फ उन्हें घर के अदंर रहना पड़ता था पर अब काम को लेकर उन्हें बाहर जाने की आजादी मिलती है. उन्होंने बताया कि उनके गांव में लगभग 300 किसान हैं जो बड़े पैमाने पर खेती करते हैं. उनके खेतों में वे कीटनाशक का छिड़काव करने के लिए जाती हैं. प्रति एकड़ छिड़काव करने का 350 रुपये लेती हैं. उन्होंने कहा कि एक वक्त था जब गांव की महिलाएं अपना नाम तक लिखना नहीं जानती थीं पर आज महिलाएं ड्रोन उड़ा रही हैं. 

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छिड़काव करने के लिए आते हैं फोन

रेखा कुमारी बताती हैं कि ड्रोन कंपनी के अधिकारी लगातार गांव में किसानों के साथ बैठक करते हैं और उन्हें ड्रोन से छिड़काव करने के फायदे बताते हैं. इसके अलावा वो भी खुद किसानों को इसके बारे में किसानों को जागरूक करती हैं. इससे किसानों में काफी जागरुकता आई है. रेखा बताती हैं कि अब हर दिन उनके पास छिड़काव करने के लिए चार से पांच फोन आते हैं. पर ड्रोन में बैटरी का बैकअप सही नहीं होने के कारण उन्हें परेशानी होती है. उन्होंने बताया कि वह साइकिल, स्कूटी और कार भी चला लेती हैं पर ड्रोन उनके लिए नया अनुभव है. इसे उड़ाने में उन्हें पायलट वाली फीलिंग आती है.

 

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