केरल के इस किसान को मिला पद्मश्री पुरस्कार, इनकी खासियत जानकर रह जाएंगे दंग

केरल के इस किसान को मिला पद्मश्री पुरस्कार, इनकी खासियत जानकर रह जाएंगे दंग

सत्यनारायण बेलेरी ने कहा कि उन्होंने अनुसंधान केंद्रों को चावल की 50 किस्में उपलब्ध कराकर और किसानों को मुफ्त चावल के बीज वितरित करके अनुसंधान और संरक्षण को बढ़ावा दिया. वह चर्काडी रामचन्द्र राव से प्रेरित थे और उन्हें धान की एक ऐसी किस्म मिली जो ढलानों पर उगती है.

कर्नाटक के किसान को मिला पद्मश्री पुरस्कार. (सांकेतिक फोटो)कर्नाटक के किसान को मिला पद्मश्री पुरस्कार. (सांकेतिक फोटो)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 26, 2024,
  • Updated Jan 26, 2024, 10:58 AM IST

26 जनवरी से पहले पद्मश्री पुरस्कार के लिए नामों का ऐलान कर दिया गया. लेकिन इस बार चर्चा का केंद्र सत्यनारायण बेलेरी बने हुए हैं. क्योंकि सत्यनारायण बेलेरी को भी पद्मश्री पुरस्कार मिला है. ऐसे सत्यनारायण एक छोटे से गावं के रहने वाले सीमांत किसान हैं. वे अपने गांव में रहकर खेती करते हैं. खास बात यह है कि खेती करने के साथ- साथ धान के पारंपरिक किस्मों को संरक्षित भी कर रहे हैं. उन्होंने सैंकड़ों पारंपरिक चावल की किस्मों का बीज बैंक तैयार किया है. उनके बीच बैंक को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. उनका कहना है कि परंपरागत किस्मों से ही खेती का विकास हो सकता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सत्यनारायण बेलेरी दक्षिण कन्नड़ से लगभग पांच किलोमीटर दूर केरल के कासरगोड स्थित नेट्टानिगे गांव रहने वाले हैं. वे गांव में चावल की खेती करते हैं. उन्हें इलाके के लोग सीडिंग सत्य के नाम से भी जानते हैं. क्योंकि वे धान के पारंपरिक किस्मों को संरक्षित करने के लिए बीज बैंक तैयार कर रहे हैं. उनके बैंक में अभी 650 से अधिक पारंपरिक चावल की किस्में हैं. पद्मश्री पुरस्कार के लिए अपने नामों की घोषणा किए जाने पर उनका कहना था कि उनकी जिम्मदारी अब और बढ़ गई है. 

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15 साल से कर रहे काम

खास बात यह है कि उन्हें 'राजकायम'चावल की खेती शुरू करने का श्रेय दिया जाता है. उनकी मदद से ही कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में 'राजकायम'चावल की खेती हो रही है. उन्होंने करीब 15 साल पहले इस क्षेत्र में काम शुरू किया था. उन्हें 'पॉलीबैग विधि' के लिए जाना जाता है, जिसमें न केवल स्वदेशी चावल की किस्मों को बल्कि सुपारी, जायफल और काली मिर्च के पारंपरिक बीजों को भी संरक्षित किया जाता है. उनके पास ग्रो बैग में लगभग 100 किस्में हैं.

मुफ्त में बीज का वितरण

सत्यनारायण बेलेरी ने कहा कि उन्होंने अनुसंधान केंद्रों को चावल की 50 किस्में उपलब्ध कराकर और किसानों को मुफ्त चावल के बीज वितरित करके अनुसंधान और संरक्षण को बढ़ावा दिया. वह चर्काडी रामचन्द्र राव से प्रेरित थे और उन्हें धान की एक ऐसी किस्म मिली जो ढलानों पर उगती है. उन्होंने कहा कि इसके बाद से मुझे धीरे-धीरे धान की खेती में रुचि हो गई और मैंने बीज इकट्ठा करना शुरू कर दिया. जब मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास जगह की कमी हो रही है तो मैंने ग्रो बैग में खेती करने का फैसला किया. मुख्य उद्देश्य देसी किस्मों के बीजों का संरक्षण करना और उन्हें किसानों के बीच वितरित करना है.

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खारे पानी में भी कर सकते हैं इसकी खेती

उन्होंने कहा कि उगाई गई कुछ किस्मों का औषधीय महत्व है. हम केवल जैविक खाद का उपयोग करते हैं और हमारे पास पूरे भारत से धान की कुछ दुर्लभ प्रजातियां हैं. उदाहरण के लिए, एडी कुनी किस्म बाढ़ से बच सकती है. इसी तरह मनीला किस्म को खारे पानी में उगया जा सकता है. यह एक सहिष्णु जैविक चावल है. इसके अलावा सुगंधित चावल की किस्में भी उनके बीज बैंक में हैं. सत्यनारायण बेलेरी ने कहा कि मैंने दो नई किस्में शिवम और त्रिनेत्रा भी विकसित की हैं.


 

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