बिहार सरकार का सहकारिता विभाग इन दिनों गेहूं खरीद में व्यस्त है. खेतों में लगभग पूरी तरह से गेहूं की फसल कट चुकी है, लेकिन किसानों की गाड़ियां सरकारी गोदामों के बजाय निजी व्यापारियों के गोदामों की ओर दौड़ रही हैं. वहीं, सरकारी खरीदारी की गाड़ी अब भी पहले गियर में अटकी हुई है. अप्रैल माह अब विदा होने को है, लेकिन सरकारी गेहूं खरीद के आंकड़ों पर नजर डालें तो लक्ष्य से अभी भी काफी दूर हैं. यूं कहें कि बिहार सरकार की गेहूं खरीद की रफ्तार कछुए की चाल से भी धीमी लग रही है. वैसे तो कछुआ भी धीरे–धीरे लक्ष्य तक पहुंच जाता है, लेकिन इस बार भी पिछले वर्षों की तरह लक्ष्य तक पहुंचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है.
स्थिति यह है कि सरकार किसानों से पैक्स के माध्यम से गेहूं बेचने की अपील कर रही है, लेकिन किसान अपने ही रंग में हैं. उनका कहना है कि जब निजी व्यापारियों से सरकारी दर से बेहतर मूल्य मिल रहा है, तो वे सरकार को गेहूं क्यों बेचें? बोनस देने की बात अगर की जाए तो सोचा जा सकता है. सरकार केवल इस बात को अपनी उपलब्धि बता रही है कि इस वर्ष केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 150 रुपये की बढ़ोतरी की है.
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विभाग भी यह स्वीकार कर रहा है कि किसानों को निजी बाजार से ज्यादा मूल्य मिल रहा है, जो उनके लिए फायदेमंद है. लेकिन अन्य राज्यों में गेहूं पर मिलने वाले बोनस को बिहार में लागू करने पर सरकार चुप्पी साधे हुए है. हालांकि अप्रैल की शुरुआत में रुक-रुक कर हुई बारिश ने गेहूं की गुणवत्ता को प्रभावित किया है जिससे निजी बाजार में गेहूं के दाम में कमी आई है.
सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने राज्य के किसानों से अपील की है कि वे अपना गेहूं एमएसपी पर बेचें. उन्होंने कहा है कि सरकार किसानों से गेहूं खरीद कर 48 घंटे के भीतर उनके नामित बैंक खाते में भुगतान कर रही है. मंत्री ने बताया कि राज्य के 20 उच्च गेहूं उत्पादक जिलों और वहां के उच्च उत्पादक पंचायतों के किसानों से संपर्क कर उन्हें तय एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. साथ ही कोरोना काल में जिन किसानों ने सरकार को गेहूं बेचा था, उनसे भी संपर्क कर उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है. हालांकि अभी की स्थिति को देखते हुए भी मंत्री को भरोसा है कि इस बार निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति कर ली जाएगी.
इस साल बिहार में लगभग 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुवाई की गई है और लगभग 84 लाख टन गेहूं उत्पादन होने का अनुमान है. इस साल रोहतास, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, बक्सर, भोजपुर, सिवान, गया, सारण, नालंदा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, सासाराम, गोपालगंज, औरंगाबाद, बेगूसराय, पटना, दरभंगा और अन्य जिलों में गेहूं की खरीदारी अधिक की जाएगी. वहीं, राज्य में 1 अप्रैल से गेहूं अधिप्राप्ति प्रारंभ हुई है, जो 15 जून तक चलेगी. लेकिन खबर लिखने तक सहकारिता विभाग ने केवल 1265 किसानों से 2314.383 मीट्रिक टन गेहूं की खरीदारी की है. जबकि इस साल लक्ष्य 2 लाख मीट्रिक टन है.
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इस वर्ष रबी विपणन मौसम में पैक्सों और व्यापार मंडलों के माध्यम से 1.50 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य तय किया गया है. इसके लिए राज्य में 5291 सहकारी समितियों को नामित किया गया है.
सहकारिता विभाग के आंकड़ों के अनुसार अभी तक सबसे अधिक पटना जिला में 246 सहकारी समितियों द्वारा 186 किसानों से 302.100 मीट्रिक टन गेहूं की खरीदा गया है. पश्चिम चंपारण में 260 समितियों द्वारा 45 किसानों से 201.75 मीट्रिक टन और पूर्वी चंपारण 306 समितियों द्वारा 44 किसानों से 170.05 मीट्रिक टन गेहूं की खरीदारी हुई है. वहीं कई पैक्सों द्वारा अब तक गेहूं खरीदारी की शुरुआत भी नहीं हो पाई है.
दरभंगा जिले के बेलवाड़ा पंचायत के पैक्स अध्यक्ष धीरेंद्र कुमार का कहना है कि किसान गेहूं निजी व्यापारियों को बेच रहे हैं. व्यापारी खुद खेतों में जाकर किसानों से गेहूं खरीद रहे हैं. वह बताते हैं कि प्राइवेट बाजार में गेहूं का भाव 2500 से 2600 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल रहा है, जबकि सरकार का समर्थन मूल्य 2425 रुपये प्रति क्विंटल है. पटना जिले के किसान करुण शंकर का कहना है कि बारिश के कारण गेहूं के दाम में प्रति क्विंटल 100 रुपये की गिरावट आई है. वे कहते हैं कि अगर राज्य सरकार एमएसपी पर 20 प्रतिशत बोनस देती, तो किसान सरकार को ही अपना गेहूं बेचते.