तीन साल के बाद एक बार फिर किसान विरोध प्रदर्शन ने भारत की राजनीति को हिलाकर रख दिया है. एक बार फिर पंजाब और हरियाणा समेत देश के कुछ और हिस्सों के किसान मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी एमएसपी गारंटी कानून को लेकर सड़कों पर हैं. गुरुवार शाम एक बार फिर सरकार के साथ तीसरे दौर की वार्ता होनी है. इस बीच इस प्रदर्शन के दो नामों का जिक्र बार-बार हो रहा है, सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह दल्लेवाल. ये दो चेहरे किसानों के हक के लिए लड़ने वालों की बड़ी आवाज बन गए हैं. आखिर कौन हैं ये दोनों लोग और कैसे किसान विरोध प्रदर्शन को आगे बढ़ा रहे हैं.
सरवन सिंह पंढेर जहां किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) और किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के समन्वयक हैं तो वहीं जगजीत सिंह दल्लेवाल, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. पंजाब के किसान समूह अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली की ओर मार्च करने के लिए फिर से सड़कों पर उतरे हैं. इन किसानों को बड़े पैमाने पर सुरक्षा बल की टुकड़ियों का सामना करना पड़ा. इन्हें रोकने के लिए मल्टी-लेयर बैरिकेड्स लगाए गए और साथ ही लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले का इस्तेमाल तक किया गया. इन सबके बीच ही दो नए किसान नेता सुर्खियों में आए, सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह दल्लेवाल. ये दोनों किसान नेता न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी और अन्य मांगों के साथ ऋण माफी के विरोध में अपने संगठनों के 'दिल्ली चलो' आह्वान में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.
ये दोनों किसान संघों के मुख्य प्रतिनिधि भी हैं. पिछले दिनों जब पीयूष गोयल और अर्जुन मुंडा सहित केंद्रीय मंत्रियों के एक समूह ने किसानों से मुलाकात की तो ये दोनों नेता उनके प्रतिनिधि बने थे. आठ फरवरी और 12 फरवरी को चंडीगढ़ में उनके साथ दो दौर की मीटिंग्स हुईं जो बेनतीजा रहीं. केएमएम और एसकेएम (गैर-राजनीतिक) देश भर के किसान संघों का एक बड़ा समूह है. दिल्ली चलो आंदोलन में मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसान समूह शामिल हैं.
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पंढेर, अमृतसर के एक किसान हैं जिनकी यूनियन केएमएससी पंजाब के 16 जिलों में काम करती है. केएमएससी साल 2020-21 में अब निरस्त कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का हिस्सा था. लेकिन अब यह अपना रास्ता खुद बना रहा है. साल 2020 में, जब पंजाब के 32 किसान संघों ने कृषि कानूनों के विरोध में एक अक्टूबर, 2020 से रेल रोको आह्वान किया था, तो केएमएससी ने भी 24 सितंबर से इसी तरह की अपील की थी.
22 नवंबर को बाकी किसान संघों ने रेल रोको आंदोलन वापस ले लिया. केएमएससी ने इसे 26 नवंबर को खत्म किया. उसी समय किसानों ने दिल्ली की ओर मार्च करना शुरू कर दिया था. उसी साल 11 दिसंबर को केएमएससी 3000 से ज्यादा ट्रैक्टरों के काफिले के साथ दिल्ली की ओर रवाना हुआ था. उस समय दिल्ली की सीमाओं पर केएमएससी ने अपना अलग मंच बनाया.
पंजाब और कई और राज्यों के अधिकांश किसान संघों ने सिंघू में एक मंच के नीचे आंदोलन करने के लिए एसकेएम का गठन किया था. केएमएससी, एसकेएम का हिस्सा नहीं था, लेकिन इसने विभिन्न विरोध प्रदर्शनों में उनके साथ सहयोग किया. एसकेएम के ट्रैक्टर परेड आह्वान के बाद, कई किसान 26 जनवरी, 2022 को लाल किले पर धार्मिक झंडे फहराने पहुंचे थे. इसके बाद केएमएससी के कुछ नेता दिल्ली के रिंग रोड पर चले गए थे. तब एसकेएम के वरिष्ठ नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने उन्हें 'देशद्रोही' कहा था.
नौ दिसंबर 2021 को साल भर चले किसान आंदोलन के खत्म होने के बाद केएमएससी ने राज्य भर में अपना आधार बढ़ाते हुए, पूरे पंजाब में अपने कार्यक्रम आयोजित करने शुरू कर दिए थे. नवंबर 2023 में उत्तर भारत की 18 कृषि यूनियनों के एक समूह से, पंढेर के नेतृत्व में केएमएम जनवरी 2024 में 100 से अधिक यूनियनों का एक संगठन बन गया.
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एसकेएम (गैर-राजनीतिक) के समन्वयक दल्लेवाल एक फरीदकोट स्थित किसान हैं. वो पंजाब के 19 जिलों में सक्रिय भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के अध्यक्ष भी हैं. कुछ महीने पहले ही केएमएम ने एसकेएम (गैर-राजनीतिक) के साथ मिलकर काम करना शुरू किया था. उन्होंने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए दो जनवरी 2024 को दिल्ली चलो का आह्वान किया. दल्लेवाल और पंढेर दोनों ने कहा कि उन्हें फरवरी की शुरुआत में ही केंद्र सरकार से प्रतिक्रिया मिल गई थी.
एसकेएम (गैर-राजनीतिक) करीब 150 कृषि संघों का एक समूह है. जुलाई 2022 में दल्लेवाल ने कई किसान नेताओं के साथ मिलकर अपने नए संगठन संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) के फरवरी 2022 में पंजाब विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमाई थी. इस साल जनवरी में, बलबीर सिंह राजेवाल के नेतृत्व में पांच किसान संगठन भी एसकेएम में लौट आए. हालांकि राजेवाल ने चुनाव लड़ने के अलावा एसएसएम का गठन किया था.
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