70 वर्षीय जगजीत सिंह डल्लेवाल किसान आंदोलन 2.0 का चेहरा बनकर उभरे हैं. बीमार किसान नेता की नाजुक सेहत ने सरकार, विपक्ष और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट का भी ध्यान खींचा है. हजारों किसानों और भारी सुरक्षा व्यवस्था से घिरे डल्लेवाल ने आंदोलन में फिर से प्राण फूंक दिए हैं. उन्होंने न केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानूनी गारंटी सहित किसानों की मांगों पर ध्यान खींचा है, बल्कि वे गांधीवादी तरीके से आमरण अनशन के जरिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.
प्रोस्टेट कैंसर से ग्रसित होने के बावजूद डल्लेवाल ने किसानों के हित के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी है. वे 26 नवंबर से अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं, जिससे किसान आंदोलन में नई जान आ गई है. 13 फरवरी, 2024 को संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाने के लिए 'दिल्ली मार्च' शुरू करने के लिए हाथ मिलाया था. तब से हज़ारों किसान शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं.
हालांकि, हरियाणा पुलिस ने किसानों को राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंचने से रोकने के लिए भारी बैरिकेड्स, आंसू गैस (यहाँ तक कि ड्रोन के ज़रिए), वाटर कैनन का इस्तेमाल कर चुकी है. सैकड़ों किसान शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डटे हुए हैं और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. बैरिकेड्स तोड़ने की बार-बार की गई कोशिशों पर पुलिस ने आपत्ति जताते हुए विरोध किया है. दिल्ली मार्च के दौरान रोके जाने के परिणामस्वरूप पिछले कुछ दिनों में कई किसान हरियाणा पुलिस की कार्रवाई में घायल हुए हैं. 300 से ज़्यादा दिनों से किसान आंदोलन में डटे हुए हैं और पीछे हटने से इनकार कर रहे हैं.
फ़रीदकोट के डल्लेवाल गांव में जन्मे जगजीत सिंह डल्लेवाल एक अनुभवी किसान नेता हैं. वे बीकेयू (एकता सिद्धूपुर) के प्रमुख के रूप में लगातार किसान विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे हैं. वे खासकर पंजाब के मालवा क्षेत्र में विरोध-प्रदर्शनों में शामिल रहे हैं. कार्यकर्ता अन्ना हजारे से प्रेरित होकर डल्लेवाल ने किसानों की मांगों को लेकर 2018 में 11 दिन का अनशन किया था. वे मूल किसान आंदोलन में भी एक प्रमुख भागीदार थे. डल्लेवाल आमरण अनशन शुरू करने से पहले अपनी जमीन-जायदाद परिवार को सौंप चुके हैं.
जगजीत सिंह डल्लेवाल का आमरण अनशन किसान आंदोलन के लिए एक रैली प्वाइंट बन गया है, जिसके कारण आंदोलन फिर चर्चा में आ गया है और किसानों के मुद्दे फिर से सुर्खियों में हैं. अपने अडिग रुख के लिए जाने जाने वाले डल्लेवाल ने खनौरी बॉर्डर पर अपना अनशन शुरू किया. हालांकि, राज्य पुलिस ने उन्हें पहले अस्पताल में भर्ती कराया था, लेकिन वे अपना विरोध जारी रखने के लिए चार दिन बाद ही सीमा पर लौट आए.
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डल्लेवाल के कारण किसानों का मुद्दा संसद पहुंच गया है और कई राजनीतिक नेताओं और किसान संगठनों ने एकजुटता दिखाने और उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेने के लिए खनौरी का दौरा कर चुके हैं. कांग्रेस सांसद प्रताप बाजवा, पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग, विधायक परगट सिंह, शिअद नेता बलविंदर सिंह भूंदर, हरियाणा कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा, जय प्रकाश, आप सांसद मलविंदर कंग, पर्यावरणविद् बलबीर सीचेवाल और पूर्व मंत्री चेतन सिंह जौरा माजरा समेत कई प्रमुख नेता डल्लेवाल से मिल चुके हैं. हरियाणा के कई किसान संगठनों और खाप पंचायतों के सदस्यों ने भी उनसे मुलाकात की है, साथ ही प्रभावशाली किसान नेता राकेश टिकैत ने भी उनसे मुलाकात की है.
डल्लेवाल के अनशन से पहले, 13 फरवरी को शुरू हुए किसानों के आंदोलन ने गति खो दी थी. किसान सीमाओं पर डटे रहे, लेकिन महत्वपूर्ण घटनाक्रम कम ही हुए. डल्लेवाल के आमरण अनशन शुरू करने के फैसले ने कहानी को बदल दिया, जिससे आंदोलन में नई ताकत और एकता आई. हालांकि उनका स्वास्थ्य नाजुक बना हुआ है, लेकिन उनका संकल्प अडिग है, जिससे प्रशासन और सरकार दोनों ही चिंतित हैं.
हरियाणा के किसान नेता और डल्लेवाल के करीबी सहयोगी अभिमन्यु कोहाड़ ने आंदोलन के देशव्यापी असर को लेकर बयान दिया. कोहाड़ ने कहा, "इस अनशन ने पूरे देश में एक मजबूत संदेश दिया है. चाहे संसद हो, सुप्रीम कोर्ट हो या आम आदमी, हर कोई अब किसानों के मुद्दों और डल्लेवाल के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित है."
कोहाड़ ने कहा कि डल्लेवाल का अनशन एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी की मांग पूरी करने को लेकर है. उन्होंने कहा, "कृषि क्षेत्र पर बनी संसदीय समिति भी एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग से सहमत है. उन्होंने भी इसकी सिफारिश की है. अब, इस पर काम करना सरकार पर निर्भर है."
डल्लेवाल के अनशन की बढ़ती गति ने खनौरी बॉर्डर पर राजनीतिक नेताओं की एक धारा को आकर्षित किया है. कांग्रेस के सांसद और कई राजनीतिक दलों के नेता डल्लेवाल से मिलने पहुंच चुके हैं. (असीम बस्सी)