एमपी विधानसभा की 230 सीटों के लिए 17 नवंबर को मतदान के बाद 2500 से ज्यादा उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद हो गया था. अब सभी की निगाहें 3 दिसंबर को होने वाली मतगणना पर टिकी हैं. चुनाव के दौरान यह माना जा रहा था कि सूबे की सत्ता में 15 साल से काबिज शिवराज सरकार के विरुद्ध Anti Incumbency लहर होने के कारण कांग्रेस मजबूत स्थिति में है. इस बीच तमाम सर्वे एजेंसियों के Exit Poll के आधार पर भाजपा को सत्ता में आने या कांग्रेस के लिए बेहद कड़ी चुनौती पेश करने की बात सामने आ रही है. चुनाव आयोग के मतदान संबंधी आंकड़ों से भी कुछ अप्रत्याशित रुझान सामने आ रहे हैं. इसमें महिलाओं और आदिवासियों की उम्मीद से ज्यादा वोटिंग करने की बात सामने आई है. इसके आधार पर यह माना जा रहा है महिलाओं और आदिवासियों के वोट जिस पार्टी के खाते में गए हैं, उसी पार्टी के पक्ष में अप्रत्याशित चुनाव परिणाम भी देखने को मिलेंगे.
आम तौर पर चुनाव में महिलाएं वोट डालने के लिए पुरुषों की तुलना में कम निकलती हैं. मगर इस चुनाव में महिलाओं ने मतदान करने में पुरुषों से न केवल बराबरी करने की होड़ की, बल्कि 3 दर्जन से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं ने पुरुषों को वोटिंग में पीछे भी छोड़ दिया. पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अधिक मत प्रतिशत होने की बात यदाकदा ही चुनाव में देखने को मिलती है.
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एमपी चुनाव में इस बार कुल 77.15 प्रतिशत रिकॉर्ड वोटिंग हुई. इनमें पुरुषों का मत प्रतिशत 78.23 और महिलाओं का 76.03 प्रतिशत रहा. वहीं 2018 के चुनाव में 75.63 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मतदान के दौरान मत प्रतिशत के मामले में 15 जिलों की 40 से ज्यादा विधान सभा सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों को मतदान में फिसड्डी साबित कर दिया. इनमें विंध्य बुंदेलखंड क्षेत्र की महिलाओं ने पुरुषों काे मतदान में हिस्सेदारी को लेकर खूब आइना दिखाया.
क्षेत्रवार मतदान के आंकड़ों के मुताबिक विंध क्षेत्र में पन्ना जिले की दो सीट पवई और पन्ना के अलावा सतना जिले की 7 में से 6 सीटों पर महिलाओं का मत प्रतिशत अप्रत्याशित रूप से पुरुषों की तुलना में ज्यादा रहा. वहीं रीवा जिले की 8 में से 7 सीटों पर महिलाओं ने मतदान के मामले में पुरुषों से बाजी मार ली. पन्ना, सतना और रीवा जिलों में रोचक बात यह देखने को मिली कि इन तीनों ही जिलों के शहरी विधानसभा क्षेत्रों में पुरुषों का मत प्रतिशत ज्यादा रहा. वहीं इन जिलों की सभी ग्रामीण सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट दिए. इसी ट्रैंड के साथ सीधी जिले की 4 में से 3, सिंगरौली की 3 में से 1, कटनी जिले की 4 में से 1 और शहडोल की सभी 3 सीटों पर महिलाओं का मत प्रतिशत ज्यादा रहा.
वहीं मालवा, निमाड़ और मध्य क्षेत्र के अनूपपुर, उमरिया, जबलपुर, मंडला, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल और भोपाल जिले की दर्जन भर से ज्यादा सीटों पर महिलाओं के पुरुषों को मतदान में कांटे की टक्कर दी. इनमें कुछ सीटों पर महिलाएं मामूली अंतर से मतदान में पुरुषों से आगे या पीछे रहीं. मसलन, भोपाल दक्षिण पश्चिम सीट पर पुरुषों का मत प्रतिशत 58.61 और महिलाओं का 59.66 प्रतिशत रहा. इसी जिले में गोविंदपुरा सीट पर 63.05 प्रतिशत पुरुषों ने और 63.02 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया.
एमपी की कुल 230 सीट में से 35 सीट अनुसूचित जाति और 47 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. शेष 148 सीटें सामान्य वर्ग के लिए हैं. इस बार के चुनाव में निर्वाचन आयोग ने आदिवासी समुदायों के लिए सुरक्षित 47 सीटों पर कम मतदान वाले 50-50 मतदान केंद्र चिन्हित किए थे. इन केंद्रों से जुड़े इलाकों में आयोग ने मतदान में हिस्सा लेने के लिए सघन जागरूकता अभियान चलाया. आयोग के अनुसार आदिवासियों के लिए सुरक्षित 47 में से 15 सीटों पर इस चुनाव में मतदान का स्तर बढ़ा है.
राज्य में सर्वाधिक 90.10 प्रतिशत मतदान रतलाम जिले की सैलाना सीट पर हुआ. यह सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है. वहीं सबसे कम मतदान (54.37 प्रतिशत) अलीराजपुर जिले की जोबट सीट पर हुआ. यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इससे इतर कम मतदान वाली सीटें ग्वालियर पूर्व (57.94 प्रतिशत), भिंड (58.56 प्रतिशत) और भोपाल दक्षिण पश्चिम (59.11 प्रतिशत) अनारक्षित सीटें हैं.
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जानकारों का मानना है कि रिकॉर्ड मतदान होने के बीच महिलाओं और आदिवासी समुदायों का मत प्रतिशत बढ़ना, सत्ता के दोनों दावेदार दल भाजपा और कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले परिणाम दे सकता है. एक तरफ गरीब महिलाओं के लिए शुरू की गई लाड़ली योजनाओं को महिलाओं का मत प्रतिशत बढ़ाने में प्रमुख कारक बताया जा रहा है, वहीं आदिवासियों के मत प्रतिशत में इजाफे को सत्तारूढ़ दल के प्रति नाराजगी का प्रकटीकरण भी माना जा रहा है.
इस चुनाव में वैसे तो शुरू से ही ग्रामीण इलाकों में सत्तारूढ़ भाजपा को लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा था, मगर ग्रामीण इलाकों में ही महिलाओं की रिकॉर्ड वोटिंग कुछ और ही संकेत दे रही है. अगर लाडली योजना ने महिलाओं को मतदान केंद्रों तक पहुंचाया है, तब फिर यह कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि यही महिलाएं 'मामा शिवराज' को सत्ता तक भी पहुंचा देंगी.