जी20 को ग्रुप ऑफ 20 भी कहा जाता है. यह आर्थिक सहयोग का एक प्रमुख मंच है. इस साल जी20 का शिखर सम्मेलन 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित होने जा रहा है. वहीं इस सम्मेलन की मेजबानी भारत कर रहा है. इस शिखर सम्मेलन में दुनिया की कई महाशक्तियों का मिलन होगा. इस दौरान मेहमान भारत के संस्कृति, सभ्यता और कृषि समेत तमाम उपलब्धियों से परिचित होंगे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जी20 शिखर सम्मेलन के एक कार्यक्रम के दौरान केंद्र सरकार ओडिशा के कोरापुट और मयूरभंज जिले कि रहने वाली दो प्रगतिशील महिला किसानों को भी मौका देगी जो मोटे अनाजों की खूबियां अपना अनुभव और ज्ञान साझा करेंगी.
दरअसल, आदिवासी समुदाय से आने वाली 36 साल की महिला किसान रायमती घुरिया और 45 साल की महिला किसान सुबासा मोहंता, दोनों इस मंच के माध्यम से यह बताने की कोशिश करेंगी ऐसे समय में जब मोटे अनाजों की खेती शुरू करने के बाद जब बहुत से लोग इसमें व्यापार करने के इच्छुक नहीं थे, तो उन्होंने कैसे अपनी बुलंद हौसलों के बल पर सफलता की कहानी गढ़ी.
बता दें कि भूमिया समुदाय से आने वाली महिला किसान घुरिया को बीज संरक्षक के तौर पर जाना जाता है. राज्य कृषि विभाग के अनुसार, कोरापुट के कुंडरा ब्लॉक के अंतर्गत नुआगुडा गांव की मूल निवासी, घुरिया ने स्वदेशी धान की 72 से अधिक पारंपरिक किस्मों और मोटे अनाजों की 30 से अधिक किस्मों का संरक्षण किया है.
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इतने बड़े मंच का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किए जाने पर, जहां दुनिया भर के नेता शामिल होंगे", घुरिया ने कहा, "मैं बताऊंगी कि कैसे मोटे अनाजों की खेती ने मेरे जैसी कई आदिवासी महिलाओं के जीवन को बदल दिया है. मैं मोटे अनाजों की देसी किस्में और चावल की कुछ पारंपरिक किस्मों को भी दिखाऊँगी, जिन्हें मैंने वर्षों से संरक्षित किया है.
मालूम हो कि, महिला किसान घुरिया एक किसान उपज कंपनी भी बनाई हैं जो स्थानीय आदिवासी किसानों से मोटे अनाजों को खरीदती है, जो बदले में उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेचने में मदद करती है. इसके अलावा, वह कुंडरा ब्लॉक में मिलेट्स टिफिन सेंटर के संचालन में किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का समर्थन करती हैं. घुरिया 2012 से एक फार्म स्कूल भी चला रही हैं, जिसमें किसानों को मिलेट्स की खेती और फसल प्रबंधन के लिए ट्रेनिंग दिया जाता है.
मयूरभंज जिले के जशीपुर ब्लॉक के सिंगारपुर गांव की रहने वाली महिला किसान मोहंता वैश्विक मंच पर पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके उन्होंने धान और रागी की खेती में कैसे सफलता हासिल की हैं, उसके बारे में बताएंगी.
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उन्होंने कहा, “मिलेट्स कभी आदिवासियों का मुख्य भोजन था, लेकिन खेतों से लगभग गायब हो गया था. जब मैंने मिलेट्स की खेती शुरू की, तो धीरे-धीरे इलाके के अन्य किसानों ने भी खेती करना शुरू कर दिया. मैंने शुरुआत में उन्हें मिलेट्स की खेती के लिए प्रोत्साहित भी किया. मिलेट्स, धान की खेती से बेहतर रिटर्न देता है.”