हिसार के भगाना की अंतरराष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ी अंतिम पंघाल को अर्जुन अवार्ड देकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सममानित किया है. सम्मान पाकर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि हरियाणा की छौरियां छोरे से कम नहीं है. हरियाणा की लड़कियां अगर कुश्ती में आगे बढने की सोचे तो उन्हें मुकाम हासिल हो जाते है, उन्हें अपनी मंजिल मिल जाती है और वे शिखर पर पहुंच जाती है. राष्ट्रपति से सम्मान पाने के बाद हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने भी दिल्ली के हरियाणा भवन में अंतिम पंघाल को पुरस्कार दिया है. कुश्ती खिलाड़ी अंतिम नेशनल और पांच इंटरनेशनल मेडल जीत कर देश व दुनिया में अपना परचम लहरा चुकी है.उन्होंने कई मेडल खिताब अपने नाम किए हैं. अब अंतिम पंघाल ओलिंपिक की तैयारी कर रही हैं.
अंतिम पंघाल ने पहली बार एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया था. वह पहली भारतीय खिलाडी हैं जिसने दो बार वर्ल्ड चैपियनशिप जीत कर गोल्ड मेडल हासिल किया है. अब उनका सपना देश के लिए ओलिंपिक में गोल्ड जीतने का है. पिता राम निवास और माता कृष्णा देवी को बेटी के अवार्ड मिलने पर बहुत खुशी है. अंतिम ने गांव की लड़कियों को कुश्ती खेलते हुए देखा और खेलना शुरू कर दिया था. पहलवानी सिखाने के लिए गांव में अच्छे कोच नहीं थे, इसलिए उनके पिता ने अपनी बेटी को कुश्ती का चैंपियन बनाने के लिए आठ साल पहले ही पूरे परिवार के साथ गांव छोड़ दिया था और हिसार आ गए थे. उनके पिता रामनिवास ने कुश्ती में बेटी के सपने को पूरा करने के लिए तीन साल किराये के मकान में गुजारे और बेटी को प्रशिक्षण दिलाया.
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माता-पिता के संघर्ष और अंतिम की मेहनत का ही फल है कि उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया है. अंतिम ने आठ साल पहले अपने कुश्ती करियर की शुरुआत की थी और पहली बार भगाना गांव के अखाड़े में उतरी थी. उसके बाद से लेकर अब तक वह गांव, जिला और प्रदेश से लेकर देश विदेश तक कई दंगल अपने नाम कर चुकी है. वह कुश्ती में अपने दांव से प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को शिकस्त देने माहिर है. अपनी इसी खूबी से उन्होंने ना सिर्फ कुश्ती की दुनिया में अपना परचम लहराया है बल्कि मेडल जीत कर देश को विश्व स्तर एक नई पहचान दिलाई. अब अर्जुन अवार्ड पाकर खेल की दुनिया में नई ऊंचाईयों छू लिया है.
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अंतिम पंघाल को अर्जुन अवार्ड मिलने से पूरे परिवार में खुशी का माहौल है. अंमित पंघाल चार बहनो में सबसे छोटी है. वह हिसार महावीर स्टेडियम में कुश्ती का प्रशिक्षण ले रही है. अंतिम की बडी बहन सरिता भी कबड्डी खेल में नेशनल खिलाडी है, जबकि माता कृष्णा देवी और पिता रामनिवास घर में पशुपालन का काम करते है.अर्जुन अवार्ड पाने का तक सफर तय करने में अंतिम को आठ साल लग गए. इन दौरान उन्होंने अथक मेहनत औऱ प्रयास किया है. रोज सुबह चार बजे से उठकर वह अपना प्रैक्टिस शुरू कर देती थीं.
प्रतियोगिताओ में अंतरराष्ट्रीय मेडल
राष्ट्रीय मेडल