अदरक की खेती को नुकसान पहुंचाते हैं ये रोग, यहां पढ़ें प्रबंधन के उपाय

अदरक की खेती को नुकसान पहुंचाते हैं ये रोग, यहां पढ़ें प्रबंधन के उपाय

यह अदरक की एक प्रमुख बीमारी है. यह रोग पौधौं की निचली पत्तियों से शुरू होता है. जो पहले पीले हो जाते हैं. इसके बाद तने से कंद से जुड़ाव के स्थान पर गलन शुरू हो जाता है. इसके कारण खींचने पर जड़ के पास के कंद टूट कर अलग हो जाते है.

अदरक की खेती (सांकेतिक तस्वीर)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 09, 2024,
  • Updated May 09, 2024, 8:31 AM IST

अदरक की खेती किसानों के लिए फायदेमंद होती है क्योंकि इसकी मांग पूरे साल भर बनी रहती है. इसलिए किसानों को इसके हमेशा अच्छी कीमत भी मिलती है. पर कीट और रोग अदरक की खेती के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं. क्योंकि इसके कारण किसानों को खूब नुकसान होता है. इसलिए इसकी खेती में रोग और कीट प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. इससे किसानों को अच्छी पैदावार हासिल होती है और अच्छी कमाई भी होती है.

अदरक में होने वाले रोगों की बात करें तो इसकी खेती में मुख्य तौर पर राइजोम राट, पीलीया, पत्ती धब्बा रोग और उकठा रोग होता है. उचित प्रबंधन से इन रोगों से खेत को बचाया जा सकता है. 

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अदरक में होने वाले रोग

राइजोम राटः यह अदरक की एक प्रमुख बीमारी है. यह रोग पौधौं की निचली पत्तियों से शुरू होता है. जो पीले हो जाते हैं. इसके बाद तने से कंद के जुड़ाव के स्थान पर गलन शुरू हो जाता है. इसके कारण खींचने पर जड़ के पास के कंद टूट कर अलग हो जाता है. इसके बाद कंद में सड़न और बदबू आने लगती है. सितंबर-अक्तूबर महीने में बारिश कम होने पर इस रोग का प्रकोप देखने के लिए मिलता है. इस रोग से पूरी फसल प्रभावित हो जाती है. 

प्रबंधनः 

  • अदरक के कंद को रखते समय और उसका भंडारण करने के बाद बीज के लिए उसका इस्तेमाल करते समय कंद को 2.5 ग्राम मेटालेक्सिल प्रति लीटर पानी में मिलाकर आवश्यकतानुसार आधे घंटे तक उपचारित करना चाहिए. 
  • एक की खेत में बार-बार अदरक की खेती नहीं करनी चाहिए. फसल चक्र अपनाना चाहिए. तीन चार फसल के बाद अदरक की खेती करनी चाहिए.
  • अदरक के खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए. ताकि खेत में जलजमाव की समस्या नहीं हो. क्योंकि अदरक के खेत में पानी जमा होने से नुकसान हो सकता है.
  • यह रोग शुरूआत में एक दो पौधौं से ही शुरू होता है. इसलिए अगर पौधों में शुरूआत में बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो फिर कंद को उखाड़ कर खेत से बाहर फेंक देना चाहिए. जिस जगह से कंद को उखाड़ा गया है वहां की मिट्टी को तीन ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को एक लीटर पानी की दर से घोल बना दे और उस गड्डे को अच्छी तरह से गीला कर दें. जिससे रोग का संक्रमण मिट्टी से स्वस्थ पौधौं तक नहीं पहुंच सके. 
  • मेटालेक्सिल की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर पौधों में छिड़काव करना चाहिए. 

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पीलिया रोग

इस रोग को येलो डीजीज भी कहा जाता है. यह फंगस जनित बीमारी है जो फ्यूजेरियम फंगस के द्वारा होती है. इस रोग में पत्तियां किनारे से सूखने लगती हैं. बाद में पूरी पत्तियां सूखकर पीली पड़ जाती है. इस रोग में भी जमीन के पास कंद और तने के जुड़ाव के स्थान पर पौधा सड़ जाता है. इस रोग का प्रसार बीज और मिट्टी से होता है. पत्ते सूख जाने के कारण पौधों में प्रकाश संश्लेषण प्र्क्रिया नहीं हो पाती है. इसके कारण पैदावार प्रभावित होती है. 

प्रबंधन

  • इस रोग के उपचार के लिए कार्बेन्डाजिम की एक ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर बीच को एक घंटे तक घोल में डुबा कर रखना चाहिए. 
  • इस रोग से बचाव के लिए तीन साल तक फसल चक्र अपनाना चाहिए. 

 

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