पशुओं को बरसीम के साथ खिलाएं ये औषधीय पौधा तो बढ़ जाएगा दूध, प्रोटीन-फाइबर मिलेगा भरपूर

पशुओं को बरसीम के साथ खिलाएं ये औषधीय पौधा तो बढ़ जाएगा दूध, प्रोटीन-फाइबर मिलेगा भरपूर

पशुओं को चंद्रशूर खिलाकर दूध उत्पादन बढ़ा सकते हैं. यह एक औषधीय पौधा है. इसके बीज का आकार बहुत छोटा होता है इसलिए प्रति एकड़ इसकी खेती में 1.5 से 2 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा चंद्रशूर की उन्नत किस्में जीए-1 और एचएलएस-4 पूरे देश के लिए खास कर हरियाणा, पंजाब. हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में खेती के लिए बताई गई है.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 28, 2024,
  • Updated May 28, 2024, 6:08 PM IST

चंद्रशूर एक औषधीय पौधा है. यह एक तिलहनी पौधा है जो एक साल तक बढ़ता है. यह पौधा काफी तेजी से बढ़ता है. इसे असारिया, आरिया, हालिम जैसे नामों से जाना जाता है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में कमर्शियल तौर पर इसकी खेती की जाती है. इसके पौधे की ऊंचाई 30 से 60 सेंटीमीटर तक होती है. इसके पौधे की उम्र तीन से चार महीने की होती है और इसके फूल सफेद और गुलाबी रंग के होते हैं. बलुई और दोमट मिट्टी में इसकी खेती की जाती है. साथ ही इसकी खेती में जल निकासी की बेहतर व्यवस्था भी की जाती है. इसकी अच्छी पैदावार के लिए अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में खेत को अच्छे से तैयार करने के बाद इसकी बुवाई की जाती है. 

इसके बीज का आकार बहुत छोटा होता है. इसलिए प्रति एकड़ इसकी खेती में 1.5 से 2 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा चंद्रशूर की उन्नत किस्में जीए-1 और एचएलएस-4 पूरे देश के लिए खास कर हरियाणा, पंजाब. हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में खेती के लिए बताई गई है. इसकी खेती में पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 30 सेमी और बीज की गहराई एक से दो सेमी रखना चाहिए. चंद्रशूर की खेती के लिए लगभग 6 टन गोबर प्रति एकड़ के अलावा सड़ी गली खाद को एक साथ मिलाकर खेत में मिलाकर अच्छे से खेत को तैयार करना चाहिए. इसके अलावा 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलोग्राम फॉस्फोरस भी खेत में डालना चाहिए.

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हरे चारे के रूप में इस्तेमाल

चंद्रशूर के पौधों को बरसीम में मिलाकर हरे चारे के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है. इसके बीजों में पाया जाने वाला तत्व ग्लेक्टगॉग दूध उत्पादन को बढ़ाने में सहायक साबित होता है. यह डोपामिन रिसेप्सटर के साथ रिएक्ट करके प्रोलेक्टिन की मात्रा को बढ़ाता है. यह दूध की मात्रा भी बढ़ाने में सहायक होता है. इससे किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सकती है. रिसर्च में यह भी पता चला है कि दूधारू पशुओं के आहार में चंद्रशूर को शामिल करने पर दूध में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन और लैक्टोज की मात्रा बढ़ जाती है जिससे दूध की क्वालिटी अच्छी हो जाती है. 

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औषधीय गुणों से होता है भरपूर

इसके बीज औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं. इसलिए आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की औषधीयों को बनाने में किया जाता है. यह बीज लाल भूरे रंग का बेलनाकार में होता है. इसके बीज पानी के संपर्क में आने पर लसलसे हो जाते हैं. इसके बीज में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर भी पाए जाते हैं. इसके अलावा इनमें अन्य तत्व जैसे आयरन कैल्शियम, फॉलिक एसिड, विटामिन ए और सी भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. चंद्रशूर के बीजों का उपयोग बायोफोर्टिफाइड दही वाली ब्रेड बनाने के लिए किया जा रहा है. इसके बीजों का उपयोग ओमेगा थ्री फैटी एसिड और आयरन से भरपूर बिस्किट और पेय बनाने में किया जाता है. इसके अलावा इसके तेल में प्रचुर मात्रा में अल्फा लिनोलेनिक एसिड होता है. भविष्य में फायदे के लिए इसकी खेती की जा सकती है.

 

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