किसी भी देश के विकास का रास्ता गांव से होकर गुजरता है. आज के इस आधुनिक दौर में स्मार्ट सिटी के साथ सरकार स्मार्ट गांव विकसित करने की ओर बढ़ी है. लेकिन फिर भी कई ऐसे गांव हैं,जो आज भी विकास की मुख्यधारा से पीछे हैं. बिहार राज्य के कैमूर जिले का एक ऐसा ही गांव भुड़कुड़ा है. यहां के लोग आज भी विकास की मुख्यधारा में आने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. कैमूर की पहाड़ियों की गोद में बसा यह गांव आज भी रोटी, कपड़ा और मकान के इंतजार में है. वहीं इस गांव की जमीनी हकीकत जानने के लिए किसान तक भी पहाड़ी रास्तों को पार करते हुए इस गांव तक पहुंचा.
जिला मुख्यालय भभुआ से करीब चालीस किलोमीटर दूर भगवानपुर प्रखंड के रामगढ़ पंचायत का आखिरी गांव भुड़कुड़ा है. गांव की आबादी करीब दो सौ के आसपास है. वहीं आज भी इस गांव के लोगों को अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए दो से तीन घंटा का सफर तय करके भगवानपुर जाना पड़ता है.
भुड़कुड़ा गांव के सफर के दौरान छताप गांव के रहने वाले बीरबल सिंह कहते हैं कि आज भी जीवन कीड़े मकोड़ों की तरह गुजर रहा है. सरकारी सुविधा के नाम पर केवल मजाक किया जा रहा है. कोई सुध लेने वाला नहीं है. वैसे बीरबल सिंह के गांव तक दो साल पहले प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़क बनाई गई है जो सेमरा से मसानी गांव के बीच करीब दस किलोमीटर की है. लेकिन उस सड़क की स्थिति बहुत बढ़िया नहीं कही जा सकती है. वहीं इस गांव के बाद भुड़कुड़ा गांव तक जाने के लिए लोगों को झरना और पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है.
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भभुआ से बाइक से डेढ़ घंटे का सफर तय करने के बाद आखिरकार भुड़कुड़ा गांव पहुंचे. जहां मुलाकात हुई इस गांव के इकलौते दुकानदार कैलाश सिंह से. इन्होंने बताया कि गांव में पांचवीं तक विद्यालय है. वही अस्पताल के नाम पर टूटी फूटी बिल्डिंग है. यहां के विद्यालय में शिक्षक दो से तीन दिन के अंतराल पर आते हैं. वहीं अस्पताल में डॉक्टर कब आए हैं, यह पता ही नहीं हैं. अस्पताल की स्थिति देख कैलाश सिंह की बातों में कहीं न कहीं सत्यता दिख रही थी. इसी गांव के सागर खरवार कहते हैं कि उन्हें इलाज के लिए दो घंटे से ढाई घंटे का सफर तय करने के बाद पहाड़ों को पार करके के भगवानपुर या भभुआ जाना पड़ता है. अगर किसी मरीज की तबीयत ज्यादा खराब है तो वह रास्ते में ही मर जाता है.
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गांव में नल जल योजना के तहत सोलर युक्त पानी की टंकी लगाई गई है. लेकिन उस टंकी का सोलर और स्टार्टर सभी जर्जर अवस्था में हैं. रामावती देवी, दुर्गा कुमारी सहित अंजलि कुमारी कहती हैं कि पानी की टंकी लगने के बाद भी आज तक इसके पानी का उपयोग नहीं कर पाए हैं. आज भी गांव का इकलौता कुआं पानी की जरूरतों को पूरा कर रहा है.
वहीं बाबूलाल खरवार कहते हैं कि यहां के किसान केवल खाने भर का ही धान,चना और मक्का उगाते हैं. वह भी भगवान के सहारे है. अगर अच्छी बारिश हुई तो खेती होगी वरना नहीं होगी. वहीं इस गांव में कभी भी मंत्री, विधायक और सरकारी कर्मचारी नहीं आते हैं. दो सौ आबादी वाले इस गांव के लोगों को आज भी सरकारी योजनाओं सहित विकास का इंतजार है.