कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है. खेती-किसानी के क्षेत्र में नए तकनीक में तेजी से प्रगति के साथ ही महिलाओं की भागीदारी भी काफी बढ़ी है. विश्व आर्थिक मंच की ‘महिला किसानों के विकास पर आधारित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लिंग-समावेशी (लिंग-समावेशी का मतलब है, किसी भी लिंग या लिंग पहचान के प्रति भेदभाव न करना) कृषि तकनीक उत्पादकता को बढ़ाती है और महिलाओं को सशक्त बनाती है.
इस बात का उल्लेख करते हुए कि रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं को कृषि में अपनी पूर्ण भागीदारी और क्षमता को सीमित करने वाली कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला किसान अक्सर घरेलू जिम्मेदारियों और खेती-किसानी का दोहरा बोझ उठाती हैं, जिससे उनका समय और उत्पादकता सीमित हो जाती है. सामाजिक मानदंड संसाधनों तक उनकी पहुंच और नियंत्रण को रोकता है, जिससे डिजिटल कृषि तकनीक में हाल के नवाचारों सहित कृषि प्रगति में पूरी तरह से योगदान करने और लाभ उठाने की उनकी क्षमता भी बाधित होती है.
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उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कृषि में महिलाओं की भूमिका पर रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में महिलाओं की भागीदारी मुख्य रूप से अधिक है, कपास, गन्ना, चाय, कॉफी और काजू जैसी खेती और इसके बिजनेस में लगभग 50 प्रतिशत है. इसके अलावा महिलाएं अक्सर खेत में लगी रहती हैं और मुख्य रूप से कटाई में शामिल रहती हैं. अपनी मुख्य भागीदारी के बावजूद, महिलाएं पुरुषों की तुलना में 60 प्रतिशत तक कम कमाती हैं और उन्हें आर्थिक, प्रशिक्षण और तकनीक तक सीमित पहुंच का सामना करना पड़ता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उनके काम की मांग और लंबे समय तक काम करने का भी उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
‘कृषि के नारीकरण’ की प्रवृत्ति की बात करते हुए कहा गया है कि कृषि क्षेत्र में अधिक महिलाएं पहली पसंद बन रही हैं. मोबाइल और इंटरनेट कवरेज में बढ़ोतरी भी लिंग-समावेशी कृषि तकनीक समाधानों को अपनाने के लिए एक आकर्षक व्यावसायिक मामला बनता जा रहा है. साथ ही महिला किसान प्रमुख ग्राहक के रूप में उभर रही हैं, जो अपनी अनूठी चुनौतियों का समाधान करने वाले कृषि तकनीक समाधानों की आवश्यकता पर बल देती हैं.
भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों के गांव छोड़कर शहरों में पलायन के कारण भारत में कृषि के बढ़ते नारीकरण को उजागर किया है. कृषि का नारीकरण केवल एक अस्थायी प्रवृत्ति नहीं है, बल्कि एक संरचनात्मक बदलाव है जिसके लिए लंबी रणनीति की आवश्यकता है.
इसके अलावा, इसी अवधि में महिलाओं के बीच प्राथमिक कृषि मजदूरों की हिस्सेदारी में 23.4 प्रतिशत से 16.6 प्रतिशत की गिरावट से पता चलता है कि महिलाएं अधिक बाजार पर ध्यान केंद्रित करने की ओर बढ़ रही हैं. कृषि में काम करने वाली महिलाओं की उम्र 45 से अधिक की तुलना में 15 से 45 वर्ष के बीच होने की संभावना दोगुनी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे-जैसे अधिक महिलाएं कृषि क्षेत्र में प्रमुख भूमिकाएं निभा रही हैं और कई व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करके तकनीक को जल्दी अपना रही हैं. इससे एक नया बाजार उभर रहा है.